आज ही के दिन लावारिस हुई थी शिवपुरी, 100 साल से माधो के लिए तरस रही है - Updesh Awasthee

Bhopal Samachar
अपनी रोजी-रोटी में व्यस्त शिवपुरी के लोगों को शायद ही पता हो कि आज, यानी 5 जून का दिन, शिवपुरी के इतिहास का एक बड़ा दिन है। आज से 100 साल पहले, आज ही के दिन, शिवपुरी शहर के संस्थापक और शिवपुरी को जिला बनाने वाले महाराजा माधो राव सिंधिया कैलाशवासी हो गए थे। शिवपुरी के प्रति उनका प्रेम इस बात से प्रमाणित होता है कि उनकी अस्थियां आज भी शिवपुरी में सुरक्षित हैं, जबकि उनका निधन पेरिस में हुआ था और वह ग्वालियर के महाराजा थे। 

History - What was ancient Shivpuri like?

कहानी बड़ी लंबी है, लेकिन संक्षिप्त में बताऊं तो सिंधिया राजवंश में "माधो राव सिंधिया" एक ऐसा नाम है जिसके बारे में "ना भूतो ना भविष्यति" कहा जा सकता है। इतना कंस्ट्रक्टिव और क्रिएटिव राजा सिंधिया राजवंश के इतिहास में कोई और नहीं हुआ। शिवपुरी के लिए तो माधो राव सिंधिया पिता तुल्य हैं। सन 1900 से पहले शिवपुरी, नरवर जिले का देहात हुआ करता था। इस पहाड़ पर सिर्फ जंगल था और पानी नहीं था, इसलिए कोई भी रहने के लिए नहीं आता था। हालांकि, एक छोटी सी आबादी थी जो पुरानी शिवपुरी में नीलगर चौराहा के आसपास रहा करती थी और शिवपुरी नरवर जिले की कचहरी (तहसील) हुआ करता था।  

History - Story of modernization of Shivpuri

1886 में जब माधो राव सिंधिया ग्वालियर के महाराजा बने, तो उन्होंने शिवपुरी के लिए उनके मन में पहले से तैयार योजना पर काम शुरू कर दिया। दरअसल, उनकी मां शाख्य राजे सिंधिया को शिवपुरी से बड़ा प्रेम था। वह प्रत्येक विशेष अवसर पर यहां के प्राचीन शिव मंदिर में पूजा करने के लिए आया करती थीं। माधो राव सिंधिया अपनी मां को भगवान से पहले पूजा करते थे। इसलिए उन्होंने अपनी मां की याद में शिवपुरी को आधुनिक शहर बनाने का फैसला किया। बहुत कम लोग जानते हैं कि शिवपुरी की छत्री में जो मूर्ति रखी है, वह मां शाख्य राजे की है और दूसरी छत्री स्वयं माधो राव सिंधिया की है, जिसमें उनकी अस्थियां रखी हुई हैं। लोग यह भी नहीं जानते कि मां शाख्य राजे के नाम पर शिवपुरी में एक झील भी है। आगरा में सिर्फ एक ताजमहल पत्नी के प्रति प्रेम का प्रतीक है परंतु यहां तो पूरा शिवपुरी शहर ही माता के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। 

माधो राव सिंधिया ने सन 1900 में शिवपुरी प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया और कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि सिर्फ 15 साल में शिवपुरी को देहात से एक अत्याधुनिक शहर बना दिया गया। सन 1915 में शिवपुरी एक आलीशान और शानदार शहर एवं सिंधिया राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी था। एक ऐसा शहर जो भारत के सबसे आधुनिक शहरों में से एक था। जब लोगों के पास बैलगाड़ी नहीं थी, शिवपुरी में रेलगाड़ी चलती थी। जब देश के ज्यादातर किसानों के पास मंडी नहीं थी, शिवपुरी से उत्पाद निर्यात किए जाते थे। कस्टम गेट आज भी शिवपुरी में है, जहां विदेश में विक्रय के लिए जाने वाले उत्पादों का टैक्स कलेक्ट किया जाता था। 

सचमुच कहानी बहुत लंबी है, कैसे उस जमाने में एक राजा ने एक निर्जल देहात को भारत का सबसे आधुनिक शहर बना दिया था, लेकिन आज मुख्य विषय केवल इतना है कि शिवपुरी को एक अभिभावक की तरह सबसे योग्य बनाने वाले राजा की अस्थियां अपनी प्रजा और परिवार के बिना अकेली पड़ी हैं। आज से 100 साल पहले, सन 1925 में, पेरिस में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली थी। उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार, उनकी अस्थियों को पेरिस से शिवपुरी लाया गया। इस प्रकार माधो राव सिंधिया हमेशा के लिए शिवपुरी के हो गए। और आज, जबकि उनकी 100वीं पुण्यतिथि है, उनकी प्रजा और प्रशंसकों के नाम पर उनके सामने कोई नहीं है। यहां तक कि उनका अपना परिवार भी नहीं है। 

100 साल पहले शिवपुरी लावारिस हो गई थी। पिछले 100 साल से शिवपुरी की कोई तरक्की नहीं हुई, कोई विकास नहीं हुआ। किसी भी क्षेत्र की तरक्की तब मानी जाती है, जब वह अपने पिछले बेंचमार्क से आगे बढ़ेगी। 1915 में शिवपुरी भारत के 10 सबसे आधुनिक शहरों में से एक था और आज...। लेखक - उपदेश अवस्थी