सनातन धर्म में उपद्रवी और आतंकवादी के लिए कोई स्थान नहीं: रामकिशोर जी महाराज- Bairad News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। आज सावन के पवित्र माह में बैराड़ के अमरपुर गांव में आयोजित श्रीमद भागवत कथा में कथा व्यास श्री रामकिशोर दास जी महाराज अयोध्या बालों ने कथा के दूसरे दिन शुकदेव की वंदना के बारे में वर्णन करते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत की अमर कथा एवं शुकदेव के जन्म का विस्तार से वर्णन किया। कैसे श्रीकृष्ण ने शुकदेव महाराज को धरती पर भेजा भागवत कथा गायन करने को ताकि कलियुग के लोगों का कल्याण हो सके।

श्रीमद भागवत कथा का बखान करते हुए कथा व्यास श्री रामकिशोर शरण दास जी महाराज ने बताया कि भगवान मानव को जन्म देने से पहले कहते हैं ऐसा कर्म करना जिससे दोबारा जन्म ना लेना पड़े। मानव मुट्ठी बंद करके यह संकल्प दोहराते हुए इस पृथ्वी पर जन्म लेता है। प्रभु भागवत कथा के माध्यम से मानव का यह संकल्प याद दिलाते रहते हैं। भागवत सुनने वालों का भगवान हमेशा कल्याण करते हैं।

मानवता ओर इंसानियत ही सनातन धर्म की पहचान है,इसमें उपद्रवियों और आतंकवादियों के लिए कोई स्थान नही है।महाराज जी ने कहा है जो भगवान को प्रिय हो वही करो, हमेशा भगवान से मिलने का उद्देश्य बना लो, जो प्रभु का मार्ग हो उसे अपना लो, इस संसार में जन्म-मरण से मुक्ति भगवान की कथा ही दिला सकती है। भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण भागवत कथा पृथ्वी के लोगों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं। शुकदेव जी के जन्म के बारे में यह कहा जाता है कि ये महर्षि वेद व्यास के अयोनिज पुत्र थे और यह बारह वर्ष तक माता के गर्भ में रहे।भगवान शिव, पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे। पार्वती जी को कथा सुनते-सुनते नींद आ गयी और उनकी जगह पर वहां बैठे सुखदेव जी ने हुंकारी भरना प्रारम्भ कर दिया। जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई, तब उन्होंने शुकदेव को मारने के लिये दौड़े और उनके पीछे अपना त्रिशूल छोड़ा।

शुकदेव जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागते रहै भागते-भागते वह व्यास जी के आश्रम में आये और सूक्ष्मरूप बनाकर उनकी पत्नी के मुख में घुस गए। वह उनके गर्भ में रह गए। ऐसा कहा जाता है कि ये बारह वर्ष तक गर्भ के बाहर ही नहीं निकले। जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तभी ये गर्भ से बाहर निकले और व्यासजी के पुत्र कहलाये।

गर्भ में ही इन्हें वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान हो गया था। जन्म लेते ही ये बाल्य अवस्था में ही तप हेतु वन की ओर भागे, ऐसी उनकी संसार से विरक्त भावनाएं थी। परंतु वात्सल्य भाव से रोते हुए व्यास भी उनके पीछे भागे। मार्ग में एक जलाशय में कुछ कन्याएं स्नान कर रही थीं, उन्होंने जब शुकदेव महाराज को देखा तो अपनी अवस्था का ध्यान न रख कर शुकदेव का आशीर्वाद लिया।

लेकिन जब शुकदेव के पीछे मोह में पड़े व्यास वहां पहुंचे तो सारी कन्याएं छुप गयीं। ऐसी सांसारिक विरक्ति से शुकदेव महाराज ने तप प्रारम्भ किया। ग्राम अमरपुर में यह आयोजन सियाराम उपाध्याय एवं उपाध्याय परिवार द्वारा आयोजित किया जा रहा है। आज कथा सुनने नवनिर्वाचित जिला पंचायत सदस्य गोविंद शर्मा,नगर परिषद बैराड़ के नवनिर्वाचित उपाध्यक्ष तुलाराम यादव,अखिल शर्मा सहित सैंकड़ो की संख्या में भक्ता उपस्थित रहे।
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