नगर सरकार के चुनाव में गायब हो गए नगर के विकास के मुद्दे:वादे फ्री बनेगा अध्यक्ष- Shivpuri news

Bhopal Samachar

शिवपुरी। इस समय नगर निकाय के चुनाव का मौसम चल रहा हैं,लेकिन इस नगर सरकार बनाने के इस चुनाव में नगर विकास के मुद्दे गायब हो चुके हैं। ऐसा इस कारण क्यो की इस बार अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से होगा। शहर से कोई भी वादा किए नगर सरकार की कुर्सी पर अध्यक्ष का बैठना तय हैं। इस प्रकार की चुनावी प्रक्रिया के कारण की शहर का विकास गायब नहीं हो जाए।

प्रचार में विकास और वादा केवल वार्ड तक सिमित
प्रचार में जो वादे और दावे चल रहे हैं वे सिर्फ वार्ड तक ही सीमित हैं। उम्मीदवार पिछले सालों में वार्ड में किए गए खुद के काम गिना रहे हैं। जिन्होंने वार्ड बदला है वे दूसरे वार्ड मे किए गए काम की दुहाई दे रहे हैं। इसके बीच शहर विकास की बात ही नहीं की जा रही है। स्थिति यह है कि पार्षद पद के प्रत्याशियों ने अपने घोषणा पत्र जारी नहीं किए हैं। अध्यक्ष पद का सीधा दावेदार तो नहीं है, लेकिन प्रमुख राजनीतिक दलों ने भी अपनी ओर से कोई घोषणा पत्र जारी नहीं किया है।

शहर की सुंदरता पर ग्रहण सफाई व्यवस्था
सफाई व्यवस्था के लिए नगर पालिका के पास अच्छा खासा अमला है। 500 से अधिक सफाईकर्मी और दो दर्जन कचरा कलेक्शन वाहन होने के बाद भी सफाई व्यवस्था फेल नजर आती है। नियमित रूप से कचरा नहीं उठाया जा रहा है। हाई कोर्ट के दखल के बाद भी शहरी क्षेत्र को सुअरों से मुक्त नहीं कराया जा सका है। शहर की एक भी कॉलोनी ऐसी नहीं है जिसे कचरा मुक्त कहा जा सके। 

पिछली बार के स्वच्छ सर्वेक्षण में भी शहर की परफार्मेंस खराब रही थी और प्रदेश में चौथी सबसे गंदी नगर पालिका रही थी। कचरा कलेक्शन और उसके निपटान की व्यवस्था भी समुचित नहीं है। हेल्पलाइन बनाने से लेकर रात्रि की सफाई व्यवस्था भी लागू की, लेकिन इसे क्रियान्वित ही नहीं किया गया।

बाजार की सडको पर अतिक्रमण,यातायात व्यवस्था
शहर की यातायात व्यवस्था भी समुचित नहीं है। इसका मुख्य कारण है कि कहीं भी नगर पालिका की पार्किंग नहीं है। पार्किंग न होने की वजह से बाजारों में अव्यवस्थित तरीके से वाहन खड़े होते हैं। थीम रोड पर भी बैंकों और कई दुकानों ने आगे तक पार्किंग कर रखी है जो यातायात को बाधित करती है।

कोर्ट रोड, अस्पताल रोड के साथ टेकरी बाजार में भी पार्किंग की व्यवस्था नहीं है। शहर की यातायात व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने किसी प्रत्याशी ने कोई दावा या उपाय प्रचार में नहीं सुझाया है। हालांकि चुनाव की घोषणा के पहले मल्टीलेवल पार्किंग की स्वीकृति मिली है। देखना होगा कि इसे नगर पालिका कितनी तेजी से क्रियान्वित करती है। वही व्यापारियों के द्ववारा बाजार की सडको पर अपना समान रखना इस शहर की यातायात को अवरुद्ध करना सबसे बडी समस्या हैं।

सिंध का आर्शीवाद बदला श्राप में:पाइप लाइन लीकेज समस्या का निदान नही
करीब 13 साल में शहर में सिंध का पानी आना शुरू हुआ है और यह प्रोजेक्ट शुरुआत से लेकर अब तक चर्चा का विषय है। हर दूसरे दिन सिंध की लाइन फूट जाती है और शहर की सड़कें तालाब बन जाती हैं। पूरे घरों में इसका कनेक्शन नहीं हुआ है। कई कालोनियों में तो सिंध की लाइन तक नहीं डली है। इस बार गर्मियों में आठ दिन तक सप्लाई ठप पड़ी रही थी और शहर में बूंद-बूंद पानी को लोग तरसते रहे थे।

सिंध जलावर्धन योजना की सच्चाई हर जनसुनवाई में सामने आ जाती है जहां किसी न किसी कालोनी के रहवासी पानी सप्लाई की समस्या लेकर आते हैं। कई जगहों पर अमृत योजना फेज-2 में इसकी लाइन और टंकियां स्वीकृत हैं। कई जगह काम शुरू नहीं हुआ है।


खेतो में उग रही हैं अवैध कालोनियां
शहर में नगर पालिका द्वारा ही चिन्हित एक सैकड़ा से अधिक अवैध कालोनियां हैं। आधा दर्जन से अधिक पर एफआइआर भी दर्ज हो चुकी है। इसके बाद भी धड़ल्ले से अवैध कालोनियां काटी जा रही हैं। इनमें कालोनाइजर सुविधाएं नहीं देता है और बाद में जनता के दबाव में नगर पालिका को ही व्यवस्था करना पड़ती है। 

जिस कालोनी से टैक्स के रूप में नपा को आय होना चाहिए, वहां उल्टा राशि व्यय करना पड़ती है। कालोनी में हरियाली के लिए जगह भी नहीं छोड़ी जाती है। यदि वैध कालोनियां बनें तो इससे न सिर्फ नगर पालिका की आय बढ़ेगी, बल्कि शहर में हरियाली बढ़ेगी और शहर का विकास भी व्यवस्थित तरीके से होगा।

नगर पालिका के राजस्व बढाने की पहल नही:नामांतरण का मुद्दा भी गायब  
नगर पालिकाओं को अमूमन 100 करोड़ रुपये का बजट ही मिलता है। पिछले कुछ सालों में शहर तेजी से बढ़ा है। ऐसे में आबादी के लिहाज से बजट नाकाफी साबित होता है। बड़ा हिस्सा तो नगर पालिका के स्थापना व्यय पर ही खर्च हो जाता है और विकास के लिए कम राशि बचती है। 

यदि शिवपुरी को नगर निगम बनाने के प्रयास किए जाएं तो ज्यादा बजट मिलेगा और विकास भी बेहतर होगा। इसके लिए पहले प्रयास किए जा चुके हैं, लेकिन नाकाम रहे थे। अब फिर से कोशिश शुरू की गई है। इसमें नगर परिषद की भूमिका अहम होती है। दूसरा यहां नामांतरणों का भी अहम मुद्दा है। नपा में लोग नामांतरण के लिए महीनों तक चक्कर लगाते हैं।
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