अफसरो ने किसानो के मातम पर बजा दी शहनाई: 1 करोड 72 लाख के सूखा राहत घोटाले में होंगी अधिकारियो और कर्मचारियो पर होगी FIR

Bhopal Samachar
शिवपुरी। जिले में किसानों के सूखा राहत राशि वितरण में हुए 1.72 करोड़ रुपये के घोटाले में प्रशासन ने बड़ा एक्शन लिया है। कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह ने इस घोटाले के जिम्मेदारों पर पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए सभी एसडीएमों को जांच के निर्देश जिला स्तर से दिए गए थे। जांच में दोषी पाए जाने वालों पर एफआइआर कराने के भी निर्देश हैं।

इसके लेकर सभी अनुविभागीय अधिकारी जल्द ही एफआइआर दर्ज कराएंगे। अभी प्रारंभिक तौर पर जांच में जो नाम सामने आए थे उन पर एफआइआर कराई जा रही है। इसमें बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों पर पुलिस प्राथमिकी दर्ज कराने की कार्रवाई की जा रही है। उल्लेखनीय है कि सूखा पड़ने के कारण फसल के नुकसान की भरपाई के लिए सूखा राहत राशि दी जाती है।

सरकार राशि भी जारी कर देती है और शासन को लगता है कि उन्होंने किसानों को उनका हक दे दिया है। लेकिन भ्रष्ट प्रशासनिक तंत्र के बीच यह राशि किसानों के खातों में न जाकर अधिकारियों की जेबें भरने के काम आ जाती है। शिवपुरी में किसानों की सूखा राहत राशि वितरण में बड़ा घोटाला ऑडिट में पकड़ा जा चुका हैै।

इसमें कई अधिकारियों की संदिग्ध भूमिका सामने आई है। इसमें एंट्री करते वक्त खातों का नंबर और नाम बदलकर अनाधिकृत खातों में कपटपूर्ण तरीके से 1.72 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान प्राप्त किया गया था। 120 से अधिक खातों में फर्जी भुगतान किया गया था।

शिवपुरी के युवा पत्रकार और नईदुनिया के संवाददाता ने अभिषेक शर्मा ने किया था खुलासा

इस घोटाले को लेकर कई महीनों से महालेखाकार कार्यालय और जिला प्रशासन के बीच पत्र व्यवहार चल रहा था। प्रशासन ने समय पर प्रतिवेदन भी नहीं भेजा था और घोटाले को छिपाकर रखा था। अभिषेक शर्मा ने जुलाई में इस घोटाले को अपने पाठकों के बीच रखा था। इसके बाद जांच में तेजी आई और अब बड़ी कार्रवाई भी प्रशासन के द्वारा की गई है।

जांच आगे बढ़ने पर बड़ा घोटाला आ सकता है सामने

ऑडिट में यह पाया गया कि 16 रिफंड बिलों की ऑफिस कॉपी ही गायब है। इनकी राशि 73.56 लाख रुपये है। सूखा राहत का यह रिकॉर्ड कलेक्टर से संबंधित है। जब ऑडिट टीम ने इन 16 बिलों के संबंध में जानकारी चाही गई, तो जिले के अधिकारी कोई जवाब भी नहीं दे पाए। रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है।

शुरू में ऑडिट टीम ने रेंडमली बिलों की जांच की थी। इसके बाद जब घोटाला सामने आया और इसमें जिन-जिन लोगों की भूमिका आई उसमें एडीएम ने विभागीय जांच भी बैठा दी। कार्रवाई में देरी न हो इसलिए प्रशासन ने अभी प्रारंभिक तौर पर जो दोषी सामने आए उन पर एफआइआर के निर्देश दे दिए हैं। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ेगी और जिन भी लोगों की संलिप्त्ता सामने आएगी तो उन पर भी कार्रवाई संस्थित की जाएगी।

महालेखाकार ने पकड़ा था घोटाला

सूखा राहत राशि वितरण में शिवपुरी जिले में अन्नादाताओं को दरकिनार कर प्रशासनिक अधिकारियों ने 1.72 करोड़ रुपये का कपटपूर्ण भुगतान अनाधिकृत खातों में कर दिया गया था। 1.72 करोड़ की बड़ी राशि को हड़पने के लिए तहसील के बाबू और उनके रिश्तेदारों के खातों में भी भुगतान डाला। बड़ा घोटाला कोलारस और बदरवास तहसील में अंजाम दिया गया है। यहां पर 66 अपात्र लोगों के खातों में 82.76 लाख रुपये के कपटपूर्ण भुगतान को महालेखाकार ने पकड़ लिया।

यही स्थिति खनियाधाना, पोहरी और पिछोर में भी बनी है। हद यह है कि वर्ष 2018 से कपटपूर्ण भुगतान का खेला गया यह खेल 2019 तक बदस्तूर जारी रहा। वर्ष 2018-19 में शिवपुरी कलेक्टर को 176 करोड़ और वर्ष 2019-20 में 25.91 करोड़ रुपये जारी किए गए थे। राहत बिलों की संवीक्षा और कोषालय की ई-भुगतान सूची में लेखापरीक्षा के दौरान आंकड़ों की शक्ल में बड़ा भ्रष्टाचार पकड़ लिया।

इस साल की शुरुआत में जनवरी और फरवरी में महालेखाकार कार्यालय के ऑडिट दल ने लेखा परीक्षण के दौरान यह गड़बड़ी पकड़ी थी। जिले में पकड़ी गई गड़बड़ी के संबंध में महालेखाकार द्वारा शासन के सचिव को अवगत करा दिया गया था। इसके बाद शिवपुरी प्रशासन से इसके संबंध में प्रतिवेदन मांगा गया था।

नियम और सॉफ्टवेयर के लूपहोल्स का फायदा उठाकर इस तरह किया था घोटाला

अधिकारियों और कर्मचारियों ने मिलकर किसानों के बिलों का भुगतान अपने खुद के और रिश्तेदारों के खातों में करा लिया था। शीर्ष अधिकारियों से लेकर बाबू तक ने नियमों और सॉफ्टवेयर के लूपहोल्स का भी जमकर लाभ उठाया है। सबसे पहले डीडीओ को ई-पैमेंट की पूरी जांच करना चाहिए थी जो नहीं की गई। ऑफिस बिल कॉपी को ई-पेमेंट की डिटेल्स के साथ मिलाना चाहिए था।

वहीं राजस्व विभाग ने आइएफएमआइएस के फेल ट्रांजेक्शन के लूप होल का फायदा उठाया है, जो ट्रांजेक्शन फेल होने पर डीडीओ को अधिकार होता है कि वह गलत डिटेल्स को बदल सके और चालान नंबर के साथ लिंक कर रिफंड बिल लिंक कर दे। यहां पर ऑरिजनल बिलों को लिंक नहीं किया गया और जांच में इनके चालान तक नहीं मिले। तीन साल तक यह खेल चलता रहा। तहसीलदारों ने भी 50 हजार तक के बिल लगाए जिससे फाइल कलेक्टर व एसडीएम तक नहीं पहुंची और उन्होंने अपने स्तर पर इन्हें स्वीकृत कर गड़बड़ी कर दी।

यहां इतना घोटला
पिछोर: 30 लाख रुपये
खनियांधाना: 53.39 लाख रुपये
पोहरी: 5.49 लाख रुपये
कोलारस व बदरवास: 82.76 लाख रुपये

इनका कहना है
इस मामले में जो भी दोषी सामने आए हैं उन पर एफआइआर कराने के निर्देश दिए हैं। प्राथमिकी दर्ज होने के बाद जांच आगे बढेगी और फिर जो भी नाम सामने आएंगे उन पर भी कार्रवाई की जाएगी।
- अक्षय कुमार सिंह, कलेक्टर
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