बनवासी आदिवासी समाज ने भी मनाई धूमधाम से भगवान बिरसा मुंडा जंयती, पढिए भगवान बिरसा मुंडा के विषय में- Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। 15 नवंबर 21 को भगवान बिरसा मुंडा जयंती के उपलक्ष में बनवासी आदिवासी समाज द्वारा ग्राम नोहरी कला शिवपुरी में आयोजित किया गया कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से माननीय जिला संघचालक विपिन जी शर्मा एवं सह विभाग संयोजक समरसता रमेश शिवहरे जिला संयोजक राजशेखर गुप्ता नगर संयोजक मिश्रा जी राम सिंह रजक एवं जिला सद्भावना संयोजक सूरज जी जैन तथा सुरेश राठौर उपस्थित हुए कार्यक्रम में सभी ने भगवान बिरसा मुंडा जी को चंदन रोली से तिलक कर माल्यार्पण किया गया कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के माननीय माननीय संघचालक जी द्वारा बिरसा मुंडा जी के जीवन परिचय एवं समाज के लिए किए गए कार्यों तथा अंग्रेजी हुकूमत के साथ किए गए संघर्ष पर विस्तार से प्रकाश डाला अंत में प्रसाद वितरण कराया गया।

पढिए भगवान बिरसा मुंडा का पूरा जीवन परिचय

जंगल-जमीन के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने वाले बिरसा मुंडा की याद में 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाता है। देश की राजनितिक पार्टियां खासकर भाजपा बिरसा मुंडा को भगवान कह कर पुकारती है. वहीं मुंडा जाति के लोग बिरसा मुंडा को भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं। 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की 146 वीं जयंती मनाई गई

क्रूर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाने वाले आदिवासियों के लोक नायक बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1857 में झारखंड के रांची जिले के इलीहतु गाँव में हुआ था। जब वो सिर्फ 25 साल के थे तब वो अंग्रेजों से स्वतंत्रता और अपने हक़ की लड़ाई के दौरन शहीद हो गए थे। बिरसा आदिवासियों को फिरंगी शासन से मुक्त होकर सम्मान से जीने के लिए प्रेरित करते थे। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में आदिवासी बिरसा मुंडा का अहम योगदान रहा है।

बिरसा बन गए थे डेविड

बिरसा मुंडा एक आदिवासी तबके से संबध रखते थे उनके पिता का नाम सुगना मुंडा और माँ का नाम करमी हटू था। वो बेहद गरीब थे और घुमन्तु खेती से अपना घर चलाते थे। बिरसा को बासुरी और कद्दू से बने एक तारा को बजाना काफी पसंद था। बिरसा को पढ़ाने के लिए उनके माता-पिता ने उन्हें उनके मामा के पास अयुबत्तू गाँव भेज दिया। बिरसा पढ़ने में काफी अच्छे थे उनकी पठाई देकर एक शिक्षक ने उन्हें क्रिश्चन स्कूल में दाखिला लेने का मश्वरा दिया। उस वक़्त क्रिश्चन स्कूल में सिर्फ ईसाई बच्चे ही पढ़ते थे, स्कूल में पढ़ने के लिए बिरसा ने ईसाई धर्म अपना लिया और अपना नाम डेविड रख दिया।

पढाई छोड ईसाई धर्मांतरण को रोकने के लिए उठाई आवाज

बिरसा ने ईसाई स्कूल से पढाई छोड़ने के बाद हिन्दू धर्म के प्रभाव में आ गये, इसके बाद वह खुद ईसाई धर्म परिवर्तन का विरोध करने के लिए आदिवासियों में जागरूकता फैलाने लगे. उस दौर में ईसाई लोग भोलेभाले आदिवासियों को बेहला-फुसला कर ईसाई धर्म में परिवर्तित कर रहे थे। अंग्रेज भी आदिवासियों को ईसाई बनाने के लिए मजबूर कर रहे थे, उनका शारीरिक और चारित्रिक शोषण करते थे। बिरसा ने आदिवासियों को ईसाई बनने से ना सिर्फ रोका बल्कि गौ हत्या का विरोध किया।

स्वयं को घोषित किया भगवान

साल 1895 में बिरसा मुंडा को लगा की उनके अंदर अलौकिक ईश्वरीय शक्तियां हैं और उन्होंने खुद को ही भगवान विष्णु का अवतार घोषित कर दिया, उस वक़्त आदिवासी उन्हें भगवान की भांति पूजने लगे, बिरसा एक अच्छे नेता थे लोग उनकी बातों से प्रभावित हो रहे थे। जो लोग ईसाई धर्म में चले गए थे वो वापस हिन्दू धर्म में आने लगे. आदिवासियों ने धर्म परिवर्तन के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दिया।

लगान माफी के लिए बोला था अंग्रेजो के थाने पर धावा

बिरसा मुंडा अंग्रेजों के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन चुके थे। साल 1897 से लेकर 1900 तक बिरसा और मुंडा आदिवासियों ने अंग्रेजों को नाकों तले चने चबवा दिए थे। 1897 में बिरसा मुंडा सहित उनके 400 आदिवासी सैनिकों ने तीर कमानों से खूंटी थाने में धावा बोल दिया था। लगान माफ़ी के लिए बिरसा ने खूब आंदोलन किया था।

ऐसे हुए जंगल से गिरफ्तार

1898 में तांगा नदी के किनारे बिरसा ने अंग्रेजी सेना पर हमला कर दिया था, और अंग्रेजों को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था, बाद में कई आदिवासियों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और धीरे-धीरे बिरसा की सेना कमजोर पड़ने लगी। साल 3 फरवरी 1900 को अंग्रेजी सेना ने बिरसा और उनके समर्थकों को जंगल से गिरफ्तार कर लिया था।

9 जून 1990 के दिन बिरसा मुंडा की संदेहास्पद मृत्यु

9 जून 1990 के दिन बिरसा मुंडा की संदेहास्पद मृत्यु हो गई। जेल में रहने के दौरान ही उनके प्राण छूट गए, अंग्रेजों ने बताया बिरसा की मौत हैजा के काऱण हुई लेकिन यह अभी भी एक राज़ है कि आखिर बिरसा की मौत कैसे हुई। सिर्फ 25 साल की उम्र में बिरसा मुंडा शहीद हो गए लेकिन उनकी मौत ने आदिवासियों सहित देश के स्वतंत्रता सैनानियों के अंदर आज़ादी पाने का जोश भर दिया। बिरसा ने अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई जमींदारी और राजस्व व्यवस्था के खिलाफ तो लड़ाई लड़ी ही साथ ही उन्होंने जंगल और जमीन की रक्षा करने के लिए अंग्रेजों से युद्द किया । बिरसा ने सूदखोर महाजनों के खिलाफ भी जंग का एलान किया था।
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