शिवपुरी। जिले में कोरोना के बाद से शिक्षा माफिया पालकों पर खुलेआम दबाव बना रहे है। शिक्षा विभाग और कलेक्टर की नाक के नीचे जमकर अभिभावकों को लूट रहे है। ऐसा नहीं है कि इसकी शिकायतें कलेक्टर या उच्च अधिकारीयों तक नहीं पहुंच रही। परंतु इन माफियाओं के हौंसले इतने बुलंद है कि इन्हें किसी का भी डर नहीं है। आज एक ऐसा ही फर्जीबाडा सामने आया है। जिसमें स्कूल के संचालक ने अभिभाषकों को परेशान करने के लिए ऐडबांस डेट की टीसी थमा दी।
शिवपुरी में हालत यह है कि पालक अपने प्राथमिक और माध्यमिक स्तर तक के बच्चों को अन्य विद्यालयों में प्रवेश दिलाने के लिए स्थानांतरण प्रमाण पत्र के खातिर इन स्कूलों की चौखट पर एडयि़ां रगड़ रगड़ कर परेशान हैं लेकिन स्कूल संचालक कोरोना काल की बिना किसी ऑनलाइन पढ़ाई के भारी भरकम फीस वसूली के लिए प्रेशर बना रहे हैं। बिना मनमानी फीस वसूली के स्थानांतरण प्रमाण पत्र देने से भी हाथ खड़े कर रहे हैं, जिसके चलते यहां हजारों बच्चों का भविष्य चौपट होने की स्थिति बन गई है।
दुर्भाग्यपूर्ण हकीकत यह है कि शिक्षा विभाग के जिम्मेदार भी इस तरफ से आंखें मूंदे बैठे हैं जबकि खुद डिप्टी कलेक्टर स्तर की महिला अधिकारी यहां डीपीसी के प्रभार में हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 मखौल बनकर रह गया है। गरीब वर्ग के ऑटो चालक से लेकर घरों पर काम करने वाली कामकाजी महिलाओं और मजदूरों के बच्चों से फीस के नाम पर 8 से 10 हजार रुपए तो कहीं.कहीं तो इससे भी अधिक राशि की मांग की जा रही है, अन्यथा उनकी टीसी और मार्कशीट में ऐसी गड़बडिय़ां की जा रही हैं, कि बच्चों के कक्षा उन्नति का मार्ग ही बंद हो जाए।
पहला मामला
आज स्थानीय संस्कार हायर सेकेंडरी स्कूल जिसका डाइस कोड 23060144801 है। इस विद्यालय मेंं अध्ययनरत छात्रा नाजमी खान नामक बालिका के पिता अब्दुल रशीद का कहना है कि उनकी बेटी कक्षा 1 से इसी विद्यालय में अध्ययनरत है लेकिन लॉकडाउन में रोजगार ठप होने से वह प्राइवेट में पढ़ाने की वजह है बच्ची को सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने स्कूल संचालक को कोरोना काल के भी 5000 फीस के तौर पर दिए।
लेकिन जब बच्ची का स्थानांतरण प्रमाण पत्र उनके हाथ आया तो उसमें बच्ची को सत्र 2020-21 में कक्षा 5 से विद्यालय छोडऩा बताया। इस छात्रा की टीसी पर गौर करें तो संस्कार विद्यालय के प्राचार्य ने उसका प्रवेश ही 1 जुलाई 2015 को कक्षा 5 में होना बताया जबकि छात्रा की जन्म तिथि 2 फ रवरी 2010 है जिसके हिसाब से वह 2015 में 5 साल की होती है, जो अपने आप में ही गंभीर विसंगति मूलक है क्योंकि 5 वर्ष की आयु की बच्ची कक्षा 5 में कैसे दाखिल हो सकती है।
अब इसकी टीसी पर गौर करें तो इसे सत्र 2019- 20 में कक्षा 5 पास बताते हुए 27 अगस्त 20-21 में कक्षा 5 से ही स्कूल छोडऩा बताया है। सवाल उठता है कि 1 जुलाई 2015 को जो बच्चे नाजमी कक्षा 5 में अध्ययनरत थी वह 2019.20 सत्र में पांचवा पास कैसे हुई। और भी देखें तो इसी छात्रा की सत्र 2019-20 की टीसी 27 अगस्त 2021 को कक्षा पांच उत्तीर्ण दर्शाते हुए जारी की गई।
जबकि नियमानुसार बालिका को कक्षा 7 में अध्ययनरत होना चाहिए था क्योंकि कोरोना के चलते सत्र 2020-21 में जनरल प्रमोशन किए गए मगर इस छात्रा के साथ स्कूल प्रबंधन ने मनमानी करते हुए उसे 1 साल पीछे बताया है। अब छात्रा नाजमी की मैपिंग देखें तो वह कक्षा 7 में अध्ययनरत शो हो रही है। एक और चौंकाने वाला पहलू यह की छात्रा को किसी तरह की कोई छात्रवृत्ति इस दौरान नहीं मिली जबकि पोर्टल पर इस छात्रा के नाम की छात्रवृत्ति लगातार सागर संभाग के एक बैंक के अकाउंट में ट्रांसफ र होती रही यह अपने आप में यह बेहद पेचीदा मामला है। इस संबंध में स्कूल संचालक प्राचार्य गोपेंद्र जैन का अपने तर्क हैं उनका कहना है कि विद्यालय प्रबंधन की कोई गलती कहीं नहीं है।
केस क्रमांक 2
एक और उदाहरण देखिए कि किस हद तक बालक को और पालकों के साथ प्राइवेट स्कूल प्रबंधन खिलवाड़ पर उतारू है। प्राइवेट स्कूल क्राइस्ट पब्लिक स्कूल शिवपुरी की छात्रा आलिया मिर्जा के पालक जब विद्यालय में टीसी कटवाने गए तो उन्हें बड़ी जद्दोजहद के बाद मनमानी फ ीस जमा करने के उपरांत जो ट्रांसफ र सर्टिफिकेट दिया गया वह चौंकाने वाला है। डाइस कोड 23060/40/02 वाले क्राइस्ट पब्लिक स्कूल ने जो टीसी थमाई वह 28 सितंबर 2021 की तिथि में दी गई है, जबकि यह तथ्य है कि अभी सितंबर की शुरुआत ही हुई है।
ऐसा नहीं कि एक स्थान पर एडवांस डेट डाली हो बल्कि एक से अधिक स्थानों पर यह एडवांस तिथि अंकित है। यह सब इसलिए कि पालक परेशान हों फि र से विद्यालय प्रबंधन के चक्कर काटें और इस भूल को दुरुस्त कराने के नाम पर फि र से वसूली का सिलसिला शुरू हो।
ऐसे सैकड़ों उदाहरण यहां भरे पड़े हैं जिनमें सीधे.सीधे प्राइवेट स्कूलों द्वारा पालकों के शोषण की गंध आ रही है। कोरोना महामारी के दौर में 90 प्रतिशत प्राइवेट स्कूलों ने किसी तरह की कोई ऑनलाइन पढ़ाई हेतु कोई व्यवस्था नहीं की ना लिंक शेयर किए ना कोई मॉनिटरिंग की लेकिन उन्हें इस डेढ़ वर्ष के कार्यकाल की फीस जरूर भरपूर चाहिए। प्रशासन यहां तमाशाई बना बैठा है शिक्षा विभाग के अधिकारी इस तरफ कोई ध्यान देना मुनासिब नहीं समझ रहे।
यदि राइट टू एजुकेशन की बात की जाए तो कक्षा एक से कक्षा 8 तक के बच्चों को अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा का प्रावधान है और आगे पढ़ाई के लिए मनचाहे विद्यालय में प्रवेश हेतु स्थानांतरण प्रमाण पत्र जारी करना जहां जरूरी है, वहीं स्थानांतरण प्रमाण पत्र के अभाव में प्रवेश देने से भी इनकार किया जाना अनुशासनात्मक कार्यवाही के दायरे में आता है। यहां मिलीभगत इस कदर है कि प्राइवेट स्कूल संचालकों की मनमानी के विरुद्ध किसी तरह का कोई एक्शन आज दिनांक तक विभाग अथवा प्रशासन द्वारा नहीं लिया गया। यदि आरटीई 2009 के प्रावधानों के अनुरूप विद्यालयों के संचालन की बात करें तो यहां 80 प्रतिशत प्राइवेट स्कूलों में ताले पड़े नजर आएंगे, क्योंकि वह इन मापदंडों पर खरे नहीं उतर रहे।