प्रशासन के सामने लगाई गुहार: प्रशासन ने नही सुनी तो ग्रामीणो ने खुद ही बना पहाड़ों के बीच रास्ता - Shivpuri News

Bhopal Samachar
पोहरी। कुछ लोग अपनी परेशानियों के हल के लिए दूसरों की मदद की आस लगाते हैं तो कुछ लोग होते हैं जो परेशानियों से दो-दो हाथकर खुद समाधान निकाल लेते हैं। पोहरी तहसील के नागतला मड़खेड़ा में सहरिया परिवारों ने कुछ ऐसा ही उदाहरण पेश किया है। जब पंचायत और प्रशासन ने उनकी तकलीफ को अनसुना किया तो मेहनत करने वाले हाथों ने गेंती फावड़ा उठाया और समाधान के लिए एक रास्ता खुद बना लिया।

नागतला मड़खेडा में करीब 15 सहरिया परिवार ऐसे हैं, जिनके खेत जंगल के नीचे की कछार में हैं। यहां तक जाने का रास्ता बड़ा दुर्गम है। पीड़ियों से ये लोग अपने इन तीन से चार बीघा के खेतों में फसल उगाते हैं और उससे अपने परिवार का पेट पालते हैं। जो अनाज या फसल बचती है, उसे मंडी में बेच देते हैं। कछार में खेत होने से यहां तक किसी भी वाहन का पहुंचना बहुत मुश्किल था।

सहरिया तो मजदूरी के लिए यहां पहुंच जाते थे, लेकिन जब फसल कटने के बाद उसे लाना होता था, तो बड़ी परेशानी आती थी। चढ़ाई होने के कारण यह परेशानी और बढ़ जाती थी। पंचायत में रास्ता बनाने के लिए गुहार लगाई, जब भी प्रशासन के शिविर लगे तो उनसे भी कहा, लेकिन किसी ने नहीं सुना। इसके बाद 15 परिवार के 40 लोगों ने 15 दिनों में एक किमी का रास्ता बना दिया। अब यहां से ट्रैक्टर और दूसरे वाहन आासनी से गुजर सकते हैं।

15 दिन लगातार किया काम
लमसी आदिवासी, धौला आदिवासी, हाकिम आदिवासी, पप्पू आदिवासी आदि ने बताया कि हमारी पीड़ियां यहीं पर खेती का काम कर रही हैं। खेत चट्टानों के बीच कछार में हैं। यहां पर जाना ही मुश्किल है और फसल को लाना तो और भी दुश्कर हो जाता है। कई बार पंचायत में सरपंच से भी रास्ता बनवाने के लिए बोला, लेकिन कुछ नहीं हुआ। शिविर में अधिकारी आते थे और बस आश्वासन देकर चले जाते थे। इसके बाद हमने ही रास्ता बनाने की ठानी। 15 दिन तक सिर्फ चंद घंटों की नींद ली और सुबह से लेकर रात तक सभी ने काम किया और आखिरकार रास्ता निकल ही आया।

पहाड़ों के बीच दुर्गम था रास्ता
इन सहरिया परिवारों के खेत चट्टानों के बीच कछार में हैं। अभी तक यहां जाने के लिए कच्ची पगडंडी का रास्ता ही था। यहां पर पैदल ही जाया जा सकता था। जरूरत पड़ने पर बैल चले जाते थे, लेकिन मोटरसाइकिल या फिर ट्रैक्टर का जाना संभव नहीं था।

गूंज संस्था ने की मदद
गूंज संस्था के समन्वयक अजय यादव ने बताया कि हम लोग यहां पर कुपोषण और स्वच्छता को लेकर काम करते हैं। जब गांव वालों की यह समस्या पता चली तो उनसे कहा कि आप लोग खुद क्यों नहीं इसका रास्ता निकालते हैं। इसके बाद गांव के सभी लोगों को इकठ्ठा किया और फैसला लिया कि खुद ही इस रास्ते को बनाएंगे। 15 दिन यह लोग मजदूरी पर नहीं जा पाते इसके लिए राशन के पैकेट संस्था की ओर से दिए गए। 15 दिनों में ग्रामीणों ने एक उदाहरण स्थापित कर दिया।