कोलारस। जिले के कोलारस अनुविभाग के रन्नौद से आ रही हैं कि रन्नौद ग्राम पंचायत की पूर्व सरपंच को अपना जीवन यापन करने के लिए अब जंगल में लकडी बीनने का काम करना पडता हैं। पंचायत विभाग में भ्रष्टाचार तो देखिए आदिवासी पूर्व सरपंच को पीएम आवास तक मंजूर नही हुआ है। कभी आन बान शान से गांव के विकास के निर्णय लेने वाली महिला को अब पेट पालने के लिए लकडी बेचकर गुजारा करना पडता है।
यह तस्वीर पंचायती राज की बदरंग तस्वीर हैं। यह तस्वीर यह भी सिद्ध करती हैं कि आदिवासी समाज आज भी विकास से कितनी दूर हैं,जब यह महिला सरपंच रही होगी तब भी इसके अधिकारो का अपहरण हुआ होगा।
अपनी पीड़ा बताते हुए धनियाबाई कहती हैं कि रिश्वतखोरी करती तो आराम ते आलीशान मकान में रहती, चार पहिया गाड़ी में घूमती, लेकिन सीधेपन में ही रह गई। वे कहती हैं कि अब पांच साल ते मजदूरी करके और दूसरे के खेतों में बटाई करके पेट पाल रई हूं। हाथ पैसा नाइनें फिर काइसे पाल्टी के कार्यक्रमन में जाऊं। कोऊ बड़ो पद हो तो तो मैं कछू करती भी।
उन्होंने बताया कि सरपंच रहते हुए जिन लोगों पर भरोसा किया और उनके काम करवाए, अब वे भी कन्नी काट चुके हैं। स्थिति यह है कि आदिवासी समाज की अन्य महिलाओं के साथ जंगल में लकड़ियां काटने जाना पड़ता है। धनियाबाई कहती हैं कि जब सरपंच थीं तब कुछ नहीं मिला और अब पूर्व सरपंच हूं तो भी कुछ नहीं मिल रहा।
2016 में दिया था पीएम आवास के लिए आवेदन
पूर्व सरपंच धनिया बाई ने बताया कि आवास योजना के तहत साल 2016 में आवेदन दिया था। इसके बाद मामला अटका रहा। आठ महीने पहले आवास योजना के तहत पहली किश्त आई थी इसमें 25 हजार रुपये मिले। इससे घर का थोड़ा बहुत काम कराया। अब सात दिन पहले दूसरी किश्त आई है।
पहले अधिकारी सब काम कर देते थे, लेकिन अब पद नहीं है और गरीब हूं तो कोई सुनने वाला ही नहीं है। धनियाबाई के घर में कुल नौ सदस्य हैं। तीन बेटियों की शादी हो चुकी है। सभी सदस्य कच्चे मकान में ही रहते हैं। पति रामसिंह आदिवासी दूसरे के खेत की रखवाली करने जाते हैं, दसके बदले में 100 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी मिलती हैं,अभी तक वृद्धा अवस्था पेंशन भी पूर्व सरपंच की मंजूर नही हुई हैं।