अशोक कोचेटा,शिवुपरी। एक जमाने में सिंधिया राजवंश की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिवपुरी का कोई मुकाबला नहीं था। यहां जन्म लेने वाले लोग अपने भाग्य को सराहते थे। क्योंकि शिवपुरी जैसा पर्यावरण प्रदेश में कहीं नहीं था। यहां का मनभावन मौसम बाहर से आने वाले लोगों को भी मोहित कर देता था।
शहर मेें जल संकट की कोई कमी नहीं थी और मजाक-मजाक में कहा जाता था कि शिवपुरी में हाथभर खोदो तो जमीन से पानी निकल आता है। अधिकांश घरों में कुएं बने हुए थे। खदान शिवपुरी का सबसे बड़ा रोजगार था और जिससे प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से लाखों लोगों का पेट पलता था।
समय के साथ-साथ यह आशा थी कि शिवपुरी विकास के नए कीर्तिमान की ओर अग्रसर होगा। लेकिन पता नहीं इस शहर को किसकी नजर लगी अथवा यह राजनैतिक प्रतिशोध का शिकार हुआ जिसके फलस्वरूप विकास की गति निरंतर पीछे होती चली गई।
एक जमाने में संभाग के अन्य जिले शिवपुरी के आगे पानी भरते थे। परंतु आज स्थिति यह है कि शिवपुरी की तुलना में पिछड़े माने जाने वाले दतिया, श्योपुर और गुना जिले भी कहीं आगे निकल गए। विकास तो विकास शिवपुरीवासी बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं और स्वच्छता के स्थान शिवपुरी की गिनती अब गंदे शहरों में होने लगी।
लेकिन प्रदेश में बने नए राजनैतिक समीकरण से यह आशा बंधी है कि शिवपुरी एक बार फिर से विकास की दौड़ मेें शामिल होगा। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या शिवपुरी अपने प्राचीन गौरव को प्राप्त कर उससे भी आगे निकलने में समर्थ होगा और यहां के जनप्रतिनिधियों की यह एक परीक्षा की भी घड़ी है।
शिवपुरी में जनप्रतिनिधियों के नाम पर सिंधिया परिवार राजनीति में आसीन है और ऐसा भी नहीं कि सिंधिया परिवार के सदस्यों की विकास में रूचि नहीं है। यदि हमारे मन में र्दुभावना नहीं है तो कौन इस बात को भूल सकता है कि इस क्षेत्र को गुना-ईटावा रेल लाईन दिलाने की दुर्लभ उपलब्धि स्व. माधवराव सिंधिया के खाते में दर्ज है और उनके कट्टर से कट्टर राजनैतिक विरोधी भी इससे इंकार नहीं कर सकते।
स्व. माधवराव सिंधिया की कनिष्ठ बहन यशोधरा राजे सिंधिया भी शिवपुरी में 30 से अधिक वर्षो से सक्रिय हैं और विकास कार्यो में उनकी रूचि झलकती भी है। जनहित के कार्यो मेें अन्य जनप्रतिनिधियों की तुलना में वह अव्वल रहती हैं। शिवपुरी को पानी के संकट से मुक्ति दिलाने के लिए जितने भागीरथी प्रयास उन्होंने किए उसका कोई मुकाबला नहीं है। यह बात सही है कि इसके बाद भी उनके प्रयास पूरी तरह से परवान नहीं चढ़ सके ।
लेकिन इससे उनकी भूमिका पर सवाल नहीं लगाया जा सकता। यशोधरा राजे सिंधिया के भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अपने पिता के असामाजिक निधन के बाद लगभग 20 सालों से क्षेत्र की राजनीति में सक्रिय हैंं। वह गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र से चार बार सांसद रहे हैं। हालांकि पिछले चुनाव में वह पराजित हो गए थे। केन्द्रीय मंत्री के रूप में क्षेत्र के प्रति उनकी भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता।
लेकिन कुछ धरातल की सच्चाईयां ऐसी हैं जिसके फलस्वरूप यशोधरा राजे और ज्योतिरादित्य सिंधिया क्षेत्रीय विकास में अपनी भूमिका चाहते हुए भी निभा नहीं सके। ज्योतिरादित्य सिंधिया 2002 से सांसद हैं और प्रदेश मेें 2003 से भाजपा सत्ता में आ गई।
केन्द्र में कांग्रेस की सरकार में ज्योतिरादित्य सिंधिया मंत्री बने और उनके तथा यशोधरा राजे के प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि शिवपुरी को सिंध जलावर्धन योजना का लाभ मिला। 2007 में मंजूर हुई यह योजना आज तक पूरी तरह से क्रियान्वित नहीं हो पाई और एक तरह से भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। इसके लिए मूल रूप से राजनैतिक टकराहट जिम्मेदार है।
इसी कारण 100 करोड़ से अधिक का सीवेज प्रोजेक्ट भी पूरी तरह से धराशाही हो गया और शिवपुरी विकास की दौड़ में पिछड़ती चली गई। ट्यूबवेलों के अंधाधुंध खनन से शिवपुरी में भूमिगत जल का स्तर 1000 फुट से भी नीचे पहुंच गया और पेयजल संकट ने सारी सीमाएं तोड़ दी। भ्रष्टाचार के कारण सिंध जल का पानी लोगों के घरों तक नहीं पहुंच पाया।
इस कारण पेयजल परिवहन की योजना बनी और यह योजना भी नगर पालिका के कथित जनप्रतिनिधियों के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। राजनैतिक टकराहट के कारण विकास के धरातल पर भी शिवपुरी लगातार पिछ़ता गया। यह विकसित तो नहीं हुआ लेकिन इसने अपने पुराने गौरव को भी खो दिया।
स्थिति इतनी बद्तर है कि शिवपुरी में अभी तक वायपास का निर्माण नहीं हुआ और शहर में फोर लेन का निर्माण कार्य भूमिपूजन के बावजूद भी अधूरा पड़ा है। परंतु अब ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल हो गए हैं और वह राज्यसभा सदस्य और केन्द्रीय मंत्री भी बन जाएंगे।
प्रदेश मंत्रिमंडल में उनकी बुआ यशोधरा राजे सिंधिया का आना भी तय है। जिसे समन्वय कहते हैं, वह अब पूरी तरह से स्थापित हो गया है तथा एक-दूसरे पर दोष मडऩे की बात अब कोई न तो कह सकता और न ही कहने की स्थिति में है। ऐसी स्थिति में विकास के अगुवा बने सिंधिया परिवार के सबसे पहले शिवपुरी को भीषण जलसंकट से उभारना चाहिए।
ताकि सिंध का जल लोगों के घर-घर तक पहुंचे और पानी के लिए शिवपुरी का एक भी नागरिक परेशान न रहे। इसके लिए क्या किया जा सकता है और कैसे लीकेज पाईप लाइन से मुक्ति दिलाकर सिंध के जल की सुलभता निश्चित की जा सकती है, यह जनप्रतिनिधियों के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता है।
जल संकट से मुक्ति के अलावा शहर इस समय भीषण गंदगी के दौर से गुजर रहा है। भ्रष्टाचार ने इस गंदगी को और बढ़ावा दिया है। नगर पालिका द्वारा नालियां इस तरह की बनाई गई हैं, जिससे मलवा पूरा का पूरा नालियोंं में जमा रहता है। शहर को साफ स्वच्छ बनाने के लिए और नागरिकों को प्रेरित करने के लिए क्या किया जाना चाहिए यह जन प्रतिनिधियों के सोच विचार का प्रमुख विषय अवश्य होना चाहिए।
इसके बाद तय किया जाए कि खदाने बंद होने से शहर जो विकास की दौड़ में पिछड़ गया है उसे कैसे आगे लाया जाए। क्या शिवपुरी का औद्योगिकीकरण इस तरह से किया जाए ताकि बेरोजगारी समाप्त हो सके अथवा औद्योगिकीकरण के विकल्प के रूप में कोई अन्य रास्ता ऐसा निकाला जाए जिससे शिवपुरी की सुंदरता यथावत रह सके और आदर्श शहर के रूप में शिवपुरी पुन: अपना यशस्वी स्थान प्राप्त कर सके।
लेखक सांध्य दैनिक तरूण सत्ता के संपादक ओरशिवपुरी जिले के वरिष्ठ पत्रकार हैं
