शिवपुरी। प्रदेश में नम्बर वन का खिताब हांसिल करने वाला शिवपुरी जिला चिकित्सालय अव्यवस्थाओं की चपेट में आ चुका हैं। शासन द्वारा चिकित्सालय पर करोड़ों रूपया इस उद्देश्य के साथ व्यय किया गया था कि जिले भर से आने वाले रोगियों को समुचित उपचार उपलब्ध हो सके। साथ ही शिवपुरी से ग्वालियर रैफर करने का सिलसिला थम सके।
लेकिन जिला चिकित्सालय की हालत बद से बदतर स्थिति में पहुंच चुकी हैं। फिर चाहे वह मेडीकल वार्ड हो, जच्चा वार्ड हो अथवा आईसीयू हो। चिकित्सालय में अव्यवस्थाओं का आलम यह है कि यहां पर इलाज कराने वाले रोगियों के लिए पेयजल की भी समुचित व्यवस्था नहीं है। ग्रीष्म ऋतु के प्रारंभ होते ही चिकित्सालय में विभिन्न प्रकार की बीमारियों के रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।
लेकिन रोगियों को जिला चिकित्सालय में पलंग तक की व्यवस्था उपलब्ध नहीं हो पा रही है। मजबूरन मरीजों को बरामदे में शरण लेना पड़ रही हैं। जिला चिकित्सालय की अव्यवस्थाओं के चलते सैकड़ों मरीज यहां से निजी चिकित्सालयों की ओर रूख करने के लिए विवश हो रहे हैं।
आईसीयू बना अवैध वसूली का केन्द्र
जिला चिकित्सालय में इलाज कराने आने वाले रोगियों को चिकित्सकों की मनमानी एवं अवैैध बसूली के चलते समुचित इलाज नहीं मिल पा रहा है। ऐसा बताया गया है कि जिन रोगियों द्वारा यहां पर पदस्थ चिकित्सकों को अवैध रूप से पैसा दे दिया जाता है उनको तो आईसीयू में भर्ती कर उनकी अच्छी सेवा की जाती है।
दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले गरीब तबके के रोगी जो चिकित्सकों को पैसा नहीं दे पाते हैं उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार आईसीयू में विधिवत किसी भी चिकित्सक की पदस्थी नहीं हैं। मेडीकल वार्ड के चिकित्सकों के हवाले आईसीयू को संचालित किया जा रहा है। जबकि आईसीयू में गंभीर बीमारी के रोगियों को भर्ती किया जाता हैं। जब आईसीयू में विधिवत कोई चिकित्सक ही उपलब्ध नहीं है तो इलाज क्या खाक होगा?
दवा तो दूर पेयजल भी नहीं है मरीजों को नसीब
ऐसी भीषण गर्मी के मौसम में जिला चिकित्सालय में भर्ती मरीज को ही नहीं उसके साथ सहयोगी को भी पीने के लिए पेयजल की आवश्यकता होती हैं। लेकिन जिला चिकित्सालय में देखा गया है कि यहां पर मरीजों को पेयजल की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है।
मरीजों की मानें तो चिकित्सालय प्रबंधन द्वारा एक या दो टेंकर पानी टंकी में डलबाया जाता है जो चिकित्सालय में भर्ती मरीजों की संख्या एवं कूलरों में पानी की खपत को देखते हुए कम पड़ जाता हैं। जबकि इसके विपरीत जिला चिकित्सालय प्रबंधन द्वारा 8 से 10 टेंकरों का खपत दर्शाकर शासन को आर्थिक क्षति पहुंचाई जा रही हैं। जब जिला चिकित्सालय में भर्ती रोगियों को पेयजल तक की समुचित व्यवस्था नहीं है तो दवायें कैसे उपलब्ध हो सकती हैं?
चिकित्सालय भवन के कई कमरे पड़े हैं खाली, मरीज बरामदे में
करोड़ों रूपए की लागत से बनाए गए चिकित्सालय में दर्जनों कमरे खाली पड़े हुए हैं, साथ ही उनमें पलंगों की भी व्यवस्था हैं, जो धूल खा रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद भी चिकित्सालय में इलाज करा रहे रोगियों को बरामदे में पड़े रहना पड़ रहा हैं।
मेडीकल वार्ड में 90 पलंगों की व्यवस्था हैं जबकि आज के समय में चिकित्सालय में लगभग 250-300 मरीज भर्ती हैं। जो यहां पर इलाज करा रहे हैं। जिला चिकित्सालय के विस्तार के साथ-साथ ही जिले में जनसंख्या का भी दवाब बढ़ा हैं। लेकिन पूर्व से ही 90 पलंगों की जो व्यवस्था थी। उसको बढ़ाने का प्रयास जिला चिकित्सालय प्रबंधन द्वारा नहीं किया गया। इसे जिला प्रबंधन की लापरवाही माना जाए या कुछ और?