केपी यादव के नाम आते ही.BJP के सोशल कैंपेन ही हवा निकल गई, अब चमत्कार की आस | SHIVPURI NEWS

Bhopal Samachar
शिवुपरी। गुना-शिवुपरी लोक सभा क्षेत्र में नाम वापस लेने की अंतिम तारिख निकल जाने के बाद मुकाबले में 13 प्रत्याशी मुकाबले में रह गए हैं। लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस के प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया और भाजपा के प्रत्याशी केपी सिंह के बीच माना जा रहा हैं। बहुजन समाज पार्टी का इस संसदीय क्षेत्र में अधिक प्रभाव नही हैं।

चुनावी गणित है कि बहुजन कांग्रेस को ज्यादा डैमेज करती है,लेकिन इस चुनाव में माना जा रहा है कि बसपा के उम्मीदवार लोेकेन्द्र सिंह राजपूत किरार होने के कारण कांग्रेस से ज्यादा भाजपा को डैमेज करेंगें। 

मप्र की राजनीति में पूर्व सीएम शिवराज सिंह के कारण किरार समाज का वोट भाजपा का माना जाता रहा हैं। कांग्रेस इस चुनाव में अपनी जीत को पक्की मानते हुए जीत का रिर्काड बनाने के लिए चुनाव लड रही हैं तो वही भाजपा मोदी फैक्टर को लेकर चमत्कार की आस है। प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता होने के कारण सिंधिया समर्थक मंत्रियो के डेरा डालने के कारण प्रचार में आगे दिख रही है। 

संभाग की चार सीटो में इस सीट पर कांग्रेस की मतबूत पकड मानी जा रही हैं। कारण है सिर्फ सिंधिया। सिंधिया अभी तक अपराजेय योद्धा रहे है। अभी तक इस क्षे. में ग्वालियर राजमहल का कोई भी सदस्य प्रतिकूूल से प्रतिकूल प्रतिकूल परिस्थितियो भी नही हारा है। किसी की आंधी हो यहां राजमहल से टकरा सभी आंधिया झुक जाती हैं।

पूरा गणित सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के पक्ष में है लेकिन सिंधिया ने क्षेत्र में पूरी ताकत लगा दी हैं। प्रदेश की सिंधिया समर्थक लॉबी ने अपना डेरा यहा जमा लिया है। मप्र के शासन के मंत्रियो ने भी यहां डेरा डाल लिया हैं।

पिछले लोकसभा चनुाव की बात करे तो महल विरोध के गर्भ से जन्मे जयभान सिंह पवैया को सिंधिया ने 1 लाख 21 हजार वोटो से पराजित किया था। जयभाग सिंह पवैया के अनुपात में इस बार के भाजपा प्रत्याशी केपी यादव ज्यादा मजबूत नजर नही आते हैं। 

केपी यादव सिंधिया समर्थक नेता थे लेकिन विधानसभा चुनाव में टिकिट न मिलने के कारण उन्होने काग्रेस छोड दी। अगर अशोकनगर जिले को छोड दिया जाए तो शिवुपरी और गुना के मतादातओ ने केपी यादव का नाम पहली बार सुना है। 

केपी यादव के नाम फायनल न होने से पूर्व भाजपा के स्थानीय नेता ओर कार्यकर्ताओ ने सोशल पर अपनी पकड बनानी शुरू कर दी थी। सिंधिया पर लगातार हमले किए जा रहे थें। एक भाजपा नेता ने नाम ने छापने की शर्त पर बताया कि हमे बताया गया था कि इस बार सिंधिया के खिलाफ एक बडा ही मजबूत नाम वाला नेता इस रण में उतारा जाऐगा। 

हमने उसी तरह से सोशल के माध्यम से तैयारी शुरू कर दी थी। लेकिन केपी यादव का नाम आते ही हमारे कैपेंन की हवा निकल गई। केपी यादव के नाम से कार्यकर्ताओ में जोश नही रहा है। दिल से भाजपा के लिए कार्यकर्ता काम नही कर रहा हैं। 

इसके विपरित कांग्रेस में उत्साह अधिक हैं। कांग्रेस कार्यकर्ता जीत के अंतर को बढाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। आम जन में इस चुनाव को लेकर भी कोई उत्साह नजर नही आ रहा है। दोनो दलो की ओर से किसी भी बडे नेता की सभा अभी तक नही हई है। कुल मिलाकर भाजपा में केपी यादव के नाम के कारण उत्साह नही हैं,उसे सिर्फ मोदी के नाम के चमत्कार की उम्मीद हैं।
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