SHIVPURI NEWS - पुरी की तर्ज पर महाप्रभु जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा

Bhopal Samachar

शिवपुरी। शिवपुरी शहर में पुरी की तर्ज पर महाप्रभु जगन्नाथ भगवान की रथयात्रा का आयोजन किया जा रहा है। इस यात्रा को भव्य बनाने के लिए तैयारी शुरू हो चुकी है। भगवान जगन्नाथ एक भव्य और आकर्षक रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण करेंगे,यह यात्रा शहर में स्थित मां कैला देवी,तात्या टोपे से शुरू होगी,रथ यात्रा के बाद महाप्रसाद की भी व्यवस्था रखी गई है।

कहां से आयेगी प्रभू की प्रतिमाएं और कैसी होगी रथ यात्रा
भगवान जगन्नाथ जी अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ एक सुंदर फूलों से सजी बग्गी पर सवार होंगे। वहीं रथ की दोनों तरफ 25—25 फीट लंबी रस्सी बांधी जायेंगी। जिसे भक्त अपने हाथों में थामते हुए चलेंगे। इसके अलावा प्रभू की प्रतिमाएं शिवपुरी शहर में स्थित पोहरी बस स्टेंड के पास में स्थित इस्कॉन  मंदिर से लाई जायेंगी। भगवान की प्रतिमाए 1-1 फीट की और काष्ठ की है। रथयात्रा के दिन तीनो प्रतिमाओं का स्पेशल श्रृंगार किया जाऐगा।  

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का रूट
शिवपुरी शहर में 6 जुलाई को भगवान जगन्नाथ,भाई बलभद्र,बहन सुभद्रा जी की रथ यात्रा शाम 4 बजे से शुरू हो जायेगी। सभी भक्तगण 3 बजे रथ यात्रा के लिए पहुंचे। वहीं प्रभु की रथ यात्रा का रूट,शिवपुरी में मौजूद मां कैला देवी-तात्या टोपे से शुरू होते हुए गुरुद्वारा,माधव चौक,कोर्ट रोड़,अग्रेसन चौराहा,एमएम हॉस्पिटल,पोहरी चौराहा से होते हुए मिलन वाटिका तक पहुंचेंगी।

रथ यात्रा के बाद महाप्रभु की महाप्रसादी
भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा के संपूर्ण होने के बाद प्रभु की पूजा-अर्चना,आरती,प्रभू को स्पेशल भोग लगाया जायेगा। इसके बाद 3 से 4 हजार भक्तजनों के लिए भंडारा भी रखा गया हैं,भगवान की रथ यात्रा के पूर्ण हो जाने के बाद सभी भक्तगण प्रसाद ग्रहण करें।

यह है पौराणिक कथा
जगन्नाथ रथ यात्रा के पीछे एक पौराणिक कथा है, जो पद्म पुराण में वर्णित है। कहा जाता है कि आषाढ़ महीने में भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने उनसे बाहर जाकर शहर देखने की इच्छा जताई थी। तब भगवान जगन्नाथ ने अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के लिए तीन रथ बनवाए। तीनों भाई-बहन उन रथों पर बैठकर नगर भ्रमण पर निकले और अपनी मौसी के घर, जिसे गुंडिचा मंदिर कहा जाता है, वहां सात दिन तक रहे। इस घटना के बाद से ही हर साल यह रथ यात्रा निकाली जाने लगी। इस रथ यात्रा में सबसे आगे भगवान बलराम का रथ होता है, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है।

जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी मान्यताएं
जगन्नाथ रथ यात्रा भारत की सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध धार्मिक परंपराओं में से एक है। माना जाता है कि इस यात्रा की शुरुआत 12वीं से 16वीं शताब्दी के बीच हुई थी, लेकिन इसकी उत्पत्ति को लेकर कई अलग-अलग कहानियां और मान्यताएं प्रचलित हैं।

एक मान्यता के अनुसार, यह रथयात्रा भगवान कृष्ण की अपनी मां देवकी की जन्मभूमि की यात्रा का प्रतीक है। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने अपनी मां के घर की याद में यह यात्रा आरंभ की थी, जो उनके जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण घटना को दर्शाती है।

दूसरी मान्यता के अनुसार, जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत राजा इंद्रद्युम्न ने की थी। राजा इंद्रद्युम्न को भगवान विष्णु के एक अवतार के रूप में माना जाता है और कहा जाता है कि उन्होंने इस यात्रा का आयोजन किया ताकि लोग भगवान जगन्नाथ की भव्य महिमा को देख सकें और उनकी भक्ति में शामिल हो सकें।

इसके अलावा, कुछ पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्रोत बताते हैं कि यह यात्रा स्थानीय जनजातियों और ओडिशा के लोगों की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं का हिस्सा थी, जिसे बाद में मंदिर और राजा-महाराजाओं ने आधिकारिक रूप दिया।

इस यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा को बड़े भव्य और सजावट वाले रथों में बिठाकर पूरे शहर में निकाला जाता है। यह यात्रा केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि समुदाय को जोड़ने, सामाजिक समरसता बढ़ाने और सांस्कृतिक विरासत को संजोने का भी माध्यम है।

यात्रा के दौरान भक्तजन भगवान की रथों को अपने हाथों से खींचते हैं, जिससे यह विश्वास जुड़ा है कि ऐसा करने से उनके सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें जीवन में सुख-शांति प्राप्त होती है। इसलिए यह यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि लोगों के विश्वास, भक्ति और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी है।

दर्शन करने से होगा पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति
भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ यात्रा पर निकलने से पहले 14 दिनों का एकांतवास रखते हैं। इसके बाद शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को वे दर्शन देते हैं।
पुरी की जगन्नाथ यात्रा भारत की सबसे पवित्र धार्मिक यात्राओं में से एक है, जो हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से शुरू होकर दशमी तिथि तक चलती है।

इस बार यह यात्रा 27 जून से शुरू होकर 8 जुलाई को समाप्त होगी। वहीं बता दें कि रथ यात्रा के दौरान, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने रथों पर सवार होकर मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक यात्रा करते हैं। यह उत्सव नौ दिनों तक चलता है और इस दौरान पुरी शहर जगन्नाथ के जयकारों से गूंज उठता है। लोगों का मानना है कि इस यात्रा में शामिल होना और भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने से जीवन के सभी दुख और परेशानियां दूर हो जाती हैं और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।