स्वीकार भाव के बिना आपका जीवन नहीं बन सकता स्वर्गः बाल मुनि- Shivpuri News

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शिवपुरी।
अपने जीवनकाल में जीवन को स्वर्ग या नर्क बनाना आपके हाथ में है। जीवन को स्वर्ग यदि बनाना है तो बिना स्वीकार भाव के यह संभव नहीं है। परिवर्तन परिस्थिति और परिणाम को जो व्यक्ति स्वीकार कर लेता है उसका जीवन स्वयमेव स्वर्ग बन जाता है। 

स्वीकार में सुख और इंकार में दुख है। उक्त उदगार शिवपुरी में चातुर्मास कर रहे आचार्य कुलचंद्र सूरि जी के सुशिष्य पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी जो कि बाल मुनि के नाम से विख्यात है ने आराधना भवन में आयोजित विशाल धर्मसभा में व्यक्त किए।

महज साढ़े 8 वर्ष की उम्र में जैन दीक्षा लेने वाले बालमुनि ने अपने उदबोधन में यह भी बताया कि समझने योग्य संसार और जानने योग्य जीवन है। छोड़ने योग्य प्रमाद, डरने जैसा कर्म, स्वीकारने जैसा धर्म, लेने जैसा संयम और जानने जैसा योग्य जीवन है। इसके पूर्व आचार्य कुलचंद्र सूरि जी ने सभी धर्मावलंबियों को मांगलिक पाठ का लाभ दिया।

संत कुलदर्शन विजय जी ने अपने निष्कर्ष की व्याख्या करते हुए बताया कि जीवन प्रतिपल बदल रहा है। आप एक क्षण पहले जैसे थे वैसे अब नहीं है। बदलाव की प्रक्रिया निरंतर चल रही है। इसी कारण सुख.दुख जीवन के पहलू हैं। आज आप सुखी है तो कल दुखी भी होंगे। इसे स्वीकार कर लिया तो जीवन स्वर्ग बन जाएगा। उसी तरह से परिस्थितियों को भी आप नहीं बदल सकते। उन्हें भी जीवन को स्वर्ग बनाना है तो स्वीकार करना होगा। जो कर्म किए हैं वह भुगतने होंगे। इसलिए परिस्थिति नहीं बल्कि अपनी मनोस्थिति को बदलो। जीवन को स्वर्ग बनाने के लिए उन्होंने तीसरा सूत्र दिया कि परिणाम को स्वीकारों। क्योंकि परिणाम आपके कर्मों का प्रतिफल है। हां परिणाम कब आएगा यह कह नहीं सकते। 

महाराज श्री ने बताया कि अधिकतर लोग तर्क करते हैं कि आज पापी व्यक्ति सुख प्राप्त कर रहा है जबकि धर्मात्मा दुखी है। जबकि सच्चाई यह है कि सभी को अपने.अपने कर्मों का फल मिलता है। पापी व्यक्ति यदि आज सुख पा रहा है तो यह उसके पूर्व के पुण्यों का उपार्जन है। इसलिए व्यक्ति को अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। आज यदि अच्छे कर्म करेंगे तो निश्चित रूप से आप का कल सुखमय रहेगा।

संसार को समझने वाले ही सन्यासी हो पाते हैं

आचार्य कुलदर्शन विजय जी ने बताया कि जीवन में यदि समझने योग्य कुछ है तो वह संसार है। संसार में जन्म लिया है तो इसके रीति रिवाजों का पालन तो करना होगा। रिश्ते भी निभाने होंगे। लेकिन संसार को समझ लिया तो हृदय से सांसारिक होना बंद कर दोगे। जानोगे कि संसार सिर्फ अभिनय का खेल है। हर व्यक्ति अपना पात्र निभा रहा है। संसार के सभी पहलुओं को जानोगे तो पता चलेगा कि नितांत स्वार्थ और समस्याओं से भरा हुआ संसार है। इसी से जीवन में संन्यास का जन्म होगा और जन्म लेकर लेने योग्य कुछ है तो वह संयम है। जानने जैसा कुछ है तो वह संसार है। डरने योग्य कुछ है तो वह हमारे कर्म तथा स्वीकारने जैसा कुछ है तो वह धर्म है। छोड़ने जैसा प्रमाद है।
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