ऐसी सम्पत्ति अर्जित करो जो मौत के बाद भी काम आए मुनि श्री कुलचंद्र विजय जी- Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। सांसारिक लोग ऐसी धन संपत्ति अर्जित करते है जो हद से हद मृत्यु तक काम आती है। लेकिन ज्ञानी पुरुष ऐसी सम्पत्ति अर्जित करते हैं जो मृत्यु के बाद भी काम आती है। उक्त उद्गार संत कुलदर्शन विजय जी ने आराधना भवन में नव पद ओली आराधना के सातवें दिन ज्ञान की महिमा पर प्रकाश डालते हुए व्यक्त किए। उन्होंने अपने सारगर्भित उद्बोधन में बताया कि ईश्वर से यदि कुछ मांगना हो तो उनसे धन, संपत्ति, यश और भौतिक उपलब्धि के स्थान पर सद्बुद्धि मांगों। सद्बुद्धि को उन्होंने ज्ञान की संज्ञा दी है। धर्मसभा में आचार्य कुलचंद्र सूरि जी ने उपस्थित सभी लोगों को मांगलिक पाठ दिया।

धर्म सभा में बाल मुनि के नाम से विख्यात संत कुलदर्शन विजय जी ने कहा कि नॉलेज और ज्ञान पर्यायवाची शब्द नहीं है। नॉलेज से हम सिर्फ जानकारियां एकत्रित कर सकते हैं, जबकि ज्ञान वह होता हैए जो जीवन की दिशा बदल देंए जो जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाए। जीवन में गुणात्मक बदलाव हो और जिससे जीवन के दुर्गण जलकर राख हो जाएं। नॉलेज का संबंध जहां बुद्धि से है, वहीं ज्ञान का संबंध हृदय से है।

उन्होंने कहा कि संसार में आकर अधिकांश लोग संपत्ति एकत्रित करने में जुट जाते हैं लेकिन वह ऐसी संपत्ति एकत्रित करते हैं जो मृत्यु तक उनके साथ चलती है। जबकि ज्ञानी पुरुष ऐसी संपत्ति एकत्रित करते हैं जो मृत्यु के बाद भी काम आए। ज्ञान क्या है इसे स्पष्ट करते हुए संत कुलदर्शन विजय जी ने आसान भाषा में बताया कि सद्बुद्धि का नाम ज्ञान है। इसलिए ईश्वर से मांग करो तो सिर्फ सदबुद्धि की।

सद्बुद्धि से जीवन में सकारात्मक बदलाव शुरू हो जाते हैं। विचारों में बदलाव आता हैए उन्होंने जोड़ा कि यदि जीवन में परिवर्तन न आए तो समझो आप ज्ञान से दूर हो। ज्ञान के पहले लक्षण को उन्होंने बेलटर्न नाम दिया। परिवर्तन कैसे नापेघ् इसे भी उन्होंने स्पष्ट किया।

उन्होंने बताया कि आपकी वाणी, व्यवहार और स्वभाव में बदलाव आना चाहिए। लोगों को लगे कि वह सही व्यक्ति के पास बैठे हैं। ज्ञानी होने के दूसरे लक्षण बेलडन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आपके प्रत्येक धार्मिक कार्य में विशिष्टता होनी चाहिए और यह विशिष्टता एकाग्रता से ही आएगी। उन्होंने ज्ञानी पुरुष के तीसरे लक्षण को बेलवर्न की संज्ञा दी। उन्होंने कहा कि ज्ञानी पुरुष वही है।

जिसकी बुराइयां, अवगुण सद्गुण और कुकर्म जलकर राख हो जाएं। जब इन स्तरों तक व्यक्ति पहुंच जाता है तो चौथे लक्षण वेलकम का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे व्यक्ति का हर जगह स्वागत होता है। चाणक्य का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि वह कहते थे, राजा सिर्फ अपने देश में ही पूजा जाता है, जबकि विद्वान और ज्ञानी सब दूर आदर पाते हैं।
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