हियर, नियर, बीयर, टीयर और डियर: पांच अनमोल सूत्र जीवन को धर्ममय बनाते हैं- Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। आराधना भवन में पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजयजी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए महोपाध्याय मान विजय जी महाराज द्वारा लिखित धर्म संग्रह ग्रंथ के हवाले से बताया कि भगवान महावीर ने मानव जीवन को दुर्लभ बताया है और इस कीमती मानव जीवन को धर्ममय बनाने के लिए 5 अनमोल सूत्र दिए हैं। संत कुलदर्शन विजय जी ने विस्तार से इन सूत्रों की व्याख्या करते हुए काव्यात्मक अंदाज में इनका नामकरण हियर, नीयर, फीयर, टीयर और डीयर किया है। इन सूत्रों की व्याख्या संत कुलदर्शन विजय जी महाराज के श्रीमुख से ही सुनते हैं।

हियर (श्रवणकला) - उन्होंने बताया कि जीवन के विकास के लिए श्रवणकला में पारंगत होना आवश्यक है। हममें से अधिकांश लोग वाक शक्ति का बेजा उपयोग कर अपनी ऊर्जा का अपव्यय करते हैं। बोलने से संबंध बिगडऩे की आशंका रहती है और जीवन की शांति में विघन आता है। जबकि जो व्यक्ति श्रवणकला में निष्णात होता है, उसका जीवन प्रगतिमय होता है। श्रवणकला है क्या इसका जिक्र करते हुए संत कुलदर्शन विजय जी ने बताया कि हमें सुनना भी तटस्थ भाव से चाहिए। पूर्व धारणाओं और अनुभवों और अभिप्रायों को दूर रखकर सुनना चाहिए। सुनते समय सोच विचार नहीं होना चाहिए। लेकिन होता यह है कि हम वहीं दूसरों से सुनना चाहते हैं, जो हमारे मन मस्तिष्क में है।

दूसरे सूत्र नीयर (नजदीक) की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जितना हम देव, गुरू और धर्म के नजदीक रहेंगे, उतना जीवन विकास पथ पर अग्रसर होगा। लेकिन होता यह है कि हमारे जीवन में सुख बढ़ता है तो धर्म से हमारी दूरी बढ़ जाती है। जीवन की सार्थकता के लिए आवश्यक है कि हम पुण्यशाली की छत्र छायां में रहें।

तीसरे सूत्र फीयर की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि गुरू, माता-पिता और उपकारी को हमें कभी भुलना नहीं चाहिए और इनका नियंत्रण और भय हमेशा हमारे मन में रहना चाहिए। जब गुरू, माता-पिता और उपकारी के प्रति डर समाप्त हो जाता है तो जीवन पतन के मार्ग पर अग्रसर हो जाता है। उन्होंने इस संदर्भ में पाप भीरू शब्द का उल्लेख किया।

चौथे सूत्र टीयर (आंसू) की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि जीवन में आंसुओं का भी एक अपना महत्व है। आंसू आपके जीवन की भावना और संवेदनशीलता की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। चंदनवाला और गौतम स्वामी के आंसुओं ने उन्हें एक क्षण में जीवन के चरम लक्ष्य पर पहुंचा दिया। पाप के आंसू और पश्चाताप के आंसू जिसके जीवन में हैं उनकी धार्मिक प्रगति को कोई रोक नहीं सकता।

पांचवे सूत्र डीयर (प्रियतम) का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ईश्वर से हमारा प्रेम सबसे ऊपर होना चाहिए। ईश्वर हमारे जीवन में प्रियतम की भूमिका में हैं। जिसने परमात्मा को प्रियतम बना लिया, उसके जीवन की सार्थकता सुनिश्चित है।

जीवन की प्रगति में सबसे बड़ा बाधक है आलस्य

संत कुलदर्शन विजय जी ने एक कथा के माध्यम से अवगत कराया कि चाहे संसार के क्षेत्र में या आध्यात्मिक क्षेत्र में अथवा किसी भी अन्य क्षेत्र में व्यक्ति का विकास न होने का सबसे बड़ा कारण उसका आलस्य होता है। उन्होंने कहा कि यदि किसी व्यक्ति की गलत संगत नहीं है, उसका स्वभाव भी अच्छा है, उसे संस्कार भी अच्छे मिले हैं, इसके बाद भी उसकी उन्नति न होने का सबसे बड़ा कारण आलस्य है। जीवन का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य है। इस अवगुण से न तो व्यक्ति की व्यापार के क्षेत्र में उन्नति हो सकती है और न ही धर्म के क्षेत्र में।
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