हिंदी पत्रकारिता दिवस:1938 से शुरू हो चुकी थी शिवपुरी से पत्रकारिता,​​अंतराष्ट्रीय स्तर पर थी पहचान- Shivpuri News

Bhopal Samachar
संतोष शर्मा@ पोहरी। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व पोहरी जैसे छोटे से ग्राम से ग्राम स्वराज्य की भावना को लेकर एक नवयुवक जिसकी उम्र महज 19 वर्ष थी स्वतंत्रता आंदोलन में अपना योगदान देने को उत्साहित था, सन 1920 में अखिल भारतीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन नागपुर में किया गया जहां से उस युवक में देश प्रेम एवं आजादी के लिए कुछ कर गुजरने की सोच को और भी प्रखर कर दिया, उस नवयुवक ने छोटी सी उम्र में पोहरी के भटनावर में 12 जनवरी 1921 को महज सात विद्यार्थियों को संग लेकर एक विद्यालय की स्थापना कर दी, जिसका उद्देश्य बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ स्वावलंबी बनाना था।

ग्रामीण अंचल पोहरी से निकली 'रूरल इंडिया पत्रिका' ने स्वतंत्रता आंदोलन में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका

इस विद्यालय को जाति भेद से मुक्त रखते हुए सभी वर्गों के विद्यार्थियों को यहां शिक्षा समान रूप से प्रदान की जाती थी। जब शिक्षा एवं ग्रामीण विकास की परिकल्पना स्वतंत्रता आंदोलन से जुडी गतिविधियों के साथ अग्रसर हो रही थी इन सभी गतिविधियों को एक साथ संचालित करने वाले उस नवयुवा स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत ग्रामीण पत्रकारिता के जनक का नाम था पंडित गोपाल कृष्ण पुराणिक जी।

पंडित गोपालकृष्ण पुराणिक जी का जन्म आषाढ़ शुक्ल 12 संवत 1957 अर्थात 9 जुलाई 1900 के दिन शिवपुरी जिले की पोहरी तहसील के ग्राम छर्च में हुआ था। इनके पिता पं वासुदेव पुराणिक संस्कृत और ज्योतिष के बड़े विद्वान थे। इनके पिता नरहरि प्रसाद की मृत्यु तब हो गई थी जब गोपाल मात्र तीन वर्ष के थे। दादा वासुदेव ने पुत्र शोक से उबरने के साथ ही गोपाल को घर में ही संस्कृत की शिक्षा देना प्रारम्भ किया।

जब गोपाल सात वर्ष के थे, तब दुर्योग से इनके दादा का भी निधन हो गया। माता का निधन पहले ही हो चुका था। अनाथ हो जाने के कारण उन्हें पढ़ाई का अवसर नहीं मिला। किंतु वे घर में रखे पुराणों व श्रीमद् भगवत का निरंतर अध्ययन करते रहे। वे सार्वजनिक रूप से कथा का वाचन भी करते थे। लेकिन चढ़ोतरी अथवा दक्षिणा नहीं लेते थे। ऐसा करना वे ज्ञान का सौदा मानते थे। दादा की मृत्यु के बाद उन्होंने अकादमिक शिक्षा लेने की बहुत कोशिश की, लेकिन मार्ग नहीं सूझा। परिवार में दादा की मृत्यु के बाद कोई दूसरा सरंक्षक नहीं रह गया था। इस विपरीत अवस्था में वह स्वयं को अनाथ अनुभव करने लग गए थे।

समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता, महान कवि रविंद्रनाथ टैगोर जी को जब विद्या वाचस्पाति (डॉक्टरेट) की उपाधि से विभूषित करने के लिए शान्ति निकेतन में अलंकरण समारोह हुआ तो पदवी देते समय लेटिन में भाषण पढ़ा गया। तत्पश्चात जब टैगोर के भाषण का अवसर आया तो उन्होंने अपना भाषण तो संस्कृत में दिया ही, पिछले वक्तव्य में जो प्रश्न खड़े किए गए थे, उनके प्रतिउत्तर भी संस्कृत में दिए।

इस आयोजन के समाचार जब पुराणिक जी ने रेडियो पर सुने व अखबारों में पढ़े तो वे चकित रह गए। संस्कृत के महत्व और गौरव का उन्हें अनुभव हुआ कि "रविन्द्रनाथ चाहते तो अपना भाषण अंग्रेजी अथवा बांग्ला भाषाओं में दे सकते थे, लेकिन उन्होंने स्वयं और देश का स्वाभिमान ऊंचा बनाए रखने के लिए संस्कृत में भाषण दिया। उनके मस्तिष्क में इस वक्तव्य की छाप ऐसी पड़ी कि जब कालांतर में इस नोबेल पुरस्कार विजेता का स्वर्गवास हुआ तो उनकी स्मृति में उन्होंने संस्कृत में अनेक श्लोक लिखे। आदर्श विद्यालय में उन्होंने संस्कृत पढाने के लिए उच्चकोटि के विद्वान रखे और नियमित संस्कृत में प्रवचन का सिलसिला शुरू किया।

ग्रामीण स्तर पर कई गतिविधियों को संचालित करने वाले पं गोपाल कृष्ण पुराणिक जी की मुलाकात 13 सितंबर 1937 में श्री ठक्कर बापा से उनके देवरी ग्राम सुधार केन्द्र पर हुई, इस दौरान ठक्कर बापा जी ने कहा कि आप अपने ग्राम सुधार के कार्यक्रम को अपने तक सीमित न रखते हुए अन्य लोगों तक इसे क्यों नहीं पहुंचाते, उन्होंने जो शब्द कहे आप इस अमोल धन को अपनी तिजोरी में बंद करके अपने ही पास क्यों रख रहे हैं, बाहर लोगों की जानकारी के लिए इसे प्रकाशित करते।

पुराणिक जी ने इसे गंभीरता पूर्वक लिया तथा नवंबर 1938 से ही मुम्बई से रूरल इंडिया नाम से अंग्रेजी में मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ कर दिया, जिसका संपादन स्वयं पुराणिक जी ने किया। इस पत्रिका को भारत के विभिन्न प्रांतों में कृषि, शिक्षा एवं सहकारिता विभाग में मान्यता प्रदान की तथा विभागों में प्रसारित भी कराया गया।

आर्दश सेवा संघ का मुख्यालय भटनावर से पोहरी मार्च 1931 में स्थानांतरित किया गया जहां खादी बनाना, मधुमक्खी पालन के साथ छात्रों को हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत के साथ ही अनुशासन से जीवन जीने की कला सिखाई जाने लगी। इसके अलावा पंडित जी का विशेष ध्यान रूरल इंडिया पत्रिका के प्रकाशन की ओर रहता था यहां पत्रिका के लेख एवं संपादकीय कार्य संपन्न होते थे, वर्ष 1938 में शिवपुरी एवं ग्वालियर में प्रिंटिंग प्रेस न होने के कारण पत्रिका का प्रकाशन ईश्वरदास मेंशन, नाना चौक मुम्बई से किया जाता था।

पत्रिका के अंक केवल भारत देश ही नहीं अंग्रेजी में प्रकाशित रूरल इंडिया पात्रिका में महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, पट्टाभि सीतारमैया, विजयलक्ष्मी पंडित, गोविंद बल्लभ पंत, जवाहरलाल नेहरू, काका कालेलकर, हरिभाऊ उपाध्याय, भारतन कुमारप्पा जैसे चर्चित नेता लेख लिखते थे। इसके अलावा अन्य देशों के विद्यजन जैसे मिस्टर हूवर, एसटी मोजेज, राल्परिचर्ड कैथल, एव्ही मैथ्यू भी अपने लेख रूरल इंडिया में प्रकाशन हेतु उपलब्ध कराते थे। प्रोफेसर एनजी रंगा रूरल इंडिया पत्रिका के संचालक मंडल के अध्यक्ष थे। सत्तर के दशक में पाठकों की मांग पर इस पत्रिका में आठ पृष्ठ हिंदी में प्रकाशित किए जाने लगे।

रूरल इंडिया पत्रिका अपने प्रथम प्रकाशन से ही खासी प्रसारित हो गई थी क्योंकि ग्रामीण भारत के समाचार एवं लेखों के साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन से जुडे आंदोलनकारियों के लेख, उनकी गतिविधियां तथा अंग्रेजी हुकूमत द्वारा किये जा रहे अन्याय, अत्याचारों को भी प्रमुखता से प्रकाशित करने का साहस पंडित जी ही कर सकते थे। उनके द्वारा लगातार पत्रिका के माध्यम से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लेख प्रकाशित किये जा रहे थे।

पंडित जी की गतिविधियों को जहां एक ओर पोहरी के जागीरदार राव राजेन्द्र सीतौले साहब का भरपूर समर्थन था वहीं दूसरी ओर ग्वालियर रियासत के गृहमंत्री हसमत उल्ला ने 1934 से ही पंडित जी एवं आदर्श सेवा संघ के खिलाफ षडयंत्र करना प्रारंभ कर दिये थे, रूरल इंडिया पत्रिका प्रकाशन के उपरांत कुछ समय के लिये जागीरदार सितौले साहब का राजराजेन्द्र की उपाधी छीन ली गई तथा पंडित जी को भी ग्वालियर स्टेट से निष्कासित कर दिया गया, परंतु हसमत उल्ला की मृत्यू उपरांत सीतौले साहब को उपाधी वापस दी गई एवं पंडित जी को पुुन: पोहरी में अपनी गतिविधि संचालित करने का अवसर प्राप्त हुआ।

ग्रामीण पत्रकारिता के जनक के रूप में पंडित गोपाल कृष्ण पुराणिक जी लगातार 27 वर्षों तक संपादन के साथ ही व्यवस्थापक के रूप में कार्य करते रहे, इस दौरान कई समस्याओं का सामना हुआ किंतु अपने संकल्प को पूर्ण करने की शैली के चलते उन्होने न केवल समस्याओं जीत प्राप्त की अपितु और अधिक ऊजा के साथ आगे बढ़ने लगे। रूरल इंडिया पत्रिका में उनके अधिकांश लेख ग्रामीण विकास, आत्मनिर्भर भारत एवं अन्न भण्डार से प्रेरित रहते थे। रूरल इंडिया पत्रिका का विस्तार न केवल भारत देश में अपितु वर्मा, भूटान, ब्रिटेन आदि देशों में पढी जाती थी जिसके पाठक नियमितरूप से पत्रों के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया प्रेषित किया करते थे।

पोहरी जैसे छोटे से ग्राम से वैश्विक परिवेश की पत्रिका का संचालन एवं प्रसारण लगातार जारी रखना काफी बढी चुनौती थी जिसे पंडित गोपाल कृष्ण पुराणिक जी ही संभव कर पाये, उनके जीवन का मूल उद्देश्य ग्रामीण भारत को स्वालंबी एवं आत्मनिर्भर बनाने का था जिसमें वह काफी हद तक सफल रहे, 31 अगस्त 1965 को देहावसान के उपरांत विशाल जनसमूह उनके अंतिम दर्शन हेतु आदर्श विद्यालय परिसर में उमड पड़ा, महाविद्यालय हेतु चयनित स्थल पर उनका अंतिम संस्कार किया गया, पोहरी में उनके द्वारा स्थापित खादी, हाथ कागज, माचिस उद्योग वर्ष 1995-96 तक संचालित रहे तथा पत्रिका का प्रकाशन भी सतत रूप से जारी रहा।
G-W2F7VGPV5M