भोपाल। इस बार की होली पर भद्रा काल का साया हैं,पूर्णिमा तिथि दो दिन पड़ रही है,लोगों में होली और होलिका दहन को लेकर संशय की स्थिति है। किसी भी मांगलिक कार्य में भद्रा योग का विशेष ध्यान रखा जाता है, क्योंकि भद्रा काल में मांगलिक कार्य या उत्सव का आरंभ या समाप्ति अशुभ मानी जाती है। होलिका दहन और रक्षाबंधन के त्यौहार पर भद्रा काल का साया रहता हैं। ज्योतिष के अनुसार क्या हैं भद्रा क्या केवल एक सयम या योग हैं या किसी कारण के तहत भद्रा की उत्पत्ति की गई थी। आखिर क्या होती है भद्रा काल और क्यों इसे अशुभ माना जाता है।
यम की है बहन भद्रा: सूर्य की है पुत्री
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भद्रा सूर्य देव की पुत्री और यमराज व शनिदेव की बहन है। शनिदेव की तरह ही इनका स्वभाव भी क्रोधी बताया गया है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही ब्रह्मा जी ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टी करण में स्थान दे दिया है। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया।
ऐसे हुई भद्रा की उत्पत्ति:भयंकर रूप वाली कन्या हैं।
ऐसा माना जाता है कि दैत्यों को मारने के लिए भद्रा गर्दभ (गधा) के मुख और लंबे पुंछ और तीन पैर युक्त उत्पन्न हुई। पौराणिक कथा के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य नारायण और पत्नी छाया की पुत्री व यमराज और शनिदेव की बहन है।
भद्रा, काले वर्ण, लंबे केश, बड़े दांत वाली तथा भयंकर रूप वाली कन्या है। जन्म लेते ही भद्रा यज्ञों में विघ्न-बाधा पहुंचाने लगी और मंगल-कार्यों में उपद्रव करने लगी तथा सारे जगत को पीड़ा पहुंचाने लगी। उसके दुष्ट स्वभाव को देख कर सूर्य देव को उसके विवाह की चिंता होने लगी और वे सोचने लगे कि इस दुष्टा कुरूपा कन्या का विवाह कैसे हो पाएगा? सभी देवों ने सूर्य देव के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया। तब सूर्य देव ने ब्रह्मा जी से उचित परामर्श लिया।
इस पर ब्रह्मा जी ने विष्टि से कहा कि -'भद्रे, बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में तुम निवास करो तथा जो व्यक्ति तुम्हारे समय में गृह प्रवेश तथा अन्य मांगलिक कार्य करें, तो तुम उन्ही में विघ्न डालो, जो तुम्हारा आदर न करे, उनका कार्य तुम बिगाड़ देना। इस प्रकार उपदेश देकर बृह्मा जी अपने लोक चले गए। तब से भद्रा अपने समय में ही देव-दानव-मानव समस्त प्राणियों को कष्ट देती हुई घूमने लगी। इस प्रकार भद्रा की उत्पत्ति हुई।
इस बार की होती पर है भद्रा काल का साया,यह हैं ज्योतिषाचार्य का गणित
होली कब है इस बात को लेकर भी इस बार लोगों के मन में संशय की स्थिति है। पूर्णिमा तिथि 17 मार्च से शुरू होकर 18 मार्च को दोपहर 12:52 मिनट तक रहेगी। इसके बाद प्रतिपदा तिथि लग जाएगी,और प्रतिपदा तिथि 19 मार्च को दोपहर 12:13 बजे तक रहेगी,रंगों की होली प्रतिपदा तिथि में ही खेली जाती है,ऐसे में कुछ लोग रंगोत्सव के लिए 18 मार्च को सही तिथि मान रहे हैं।
वहीं कुछ लोग उदया तिथि को मानते हुए 19 मार्च को. लेकिन इस मामले में ज्योतिष विशेषज्ञ कहते हैं कि पूर्णिमा तिथि में चूंकि चंद्रमा का महत्व होता है, इसलिए इसमें उदय काल का महत्व नहीं माना जाता। ऐसे में पूर्णिमा तिथि 17 मार्च को ही मान्य होगी,और 17 मार्च की रात को होलिका दहन के बाद 18 मार्च को प्रतिपदा तिथि में रंगों की होली खेली जा सकेगी।