अशोक कोचेटा@ शिवपुरी। सन् 1980 के बाद शिवपुरी जिले की राजनीति में लगभग 40 वर्ष तक संतुलन की स्थिति बनी रही। देश और प्रदेश में भले ही सत्ता में कोई भी दल रहा हो। लेकिन शिवपुरी जिले की राजनीति का संतुलन कभी नहीं गड़बड़ाया। इस दौरान कांग्रेस से जहां स्व. माधवराव सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद के पद पर आसीन रहे।
वहीं भाजपा की ओर से राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने भी सांसद पद का दायित्व निर्वहन किया। कांग्रेस से केपी सिंह, गणेश गौतम, स्व. हिमांशु शर्मा, स्व. दाऊ हनुमंत सिंह, भैया साहब लोधी जैसे जाने पहचाने नाम विधायक पद पर रहे। वहीं भाजपा से यशोधरा राजे सिंधिया, प्रहलाद भारती, रणवीर सिंह रावत, नरेंद्र बिरथरे जैसे जाने माने नेताओं ने विधायक बनकर शिवपुरी की आवाज को विधानसभा में बुलंद किया।
नगर पालिका अध्यक्ष और जिला पंचायत अध्यक्ष जैसे अन्य प्रमुख पदों पर भी कांग्रेस और भाजपा के नेताओं आसीन रहे। यह संतुलन इसलिए नहीं गड़बड़ाया क्योंकि सिंधिया राजघराने के विपरीत धु्रव हमेशा अलग-अलग राजनीतिक दलों में रहे। कांग्रेस और भाजपा में स्थानीय स्तर पर स्तरीय नेतृत्व के कारण राजनीति में संतुलन की स्थिति कायम रही और इससे जनता के हितों की भी किसी भी राजनीतिक दल ने अनदेखी करने का दुस्साहस नहीं किया।
लेकिन मार्च 2020 के पश्चात जिले की राजनीति का संतुलन गड़बड़ा गया है और पलड़ा पूरी तरह से भाजपा की ओर झुक गया है। कारण यह रहा कि कांग्रेस नेतृत्व की अगुवाई करने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी पार्टी को अलविदा कहकर भाजपा में शामिल हो गए और उनके साथ-साथ उनके समर्थक भी भाजपा से आ जुडे। ऐसी स्थिति में जिले की राजनीति में भाजपा का एकाधिकार इसलिए भी हो गया है
क्योंकि स्थानीय स्तर पर कांग्रेस का कोई सशक्त नेतृत्व नहीं बचा है। हालांकि पूर्व मंत्री केपी सिंह पिछोर से विधायक हैं। लेकिन अपने दड़वे से बाहर निकलने में उन्हें कोई रूचि नहीं है और कांग्रेस की राजनीति में भी वह इस समय अनमने भाव से अपने दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं।
1971 में स्व. माधवराव सिंधिया अपनी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया की उंगली पकड़कर राजनीति में आए थे और वह जनसंघ के टिकट पर गुना संसदीय क्षेत्र से आरामदायक बहुमत से सांसद भी चुने गए। लेकिन 1975 में देश में जब आपातकाल लगा तब स्व. माधवराव सिंधिया ने जनसंघ से पल्ला झाड़कर कांग्रेस ज्वाईन कर ली। 1977 में वह गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विजयी हुए और इसके बाद उनकी राजनीति अपनी राजमाता विजयाराजे सिंधिया से विपरीत दिशा में अग्रसर हो गई।
1980 में स्व. माधवराव सिंधिया कांग्रेस टिकट पर गुना सीट से सांसद चुने गए और उनके प्रभा मंडल के कारण जिले की पांचों सीटों पर कांग्रेस विधायक काबिज हो गए। 1984 में स्व. इंदिरा गांधी के निधन के बाद माधवराव सिंधिया को कांग्रेस ने ग्वालियर संसदीय सीट से अटल बिहारी वाजपेयी का मुकाबला करने के लिए चुनाव लड़ाया और वह भारी बहुमत से चुनाव में विजयी रहे और 1984 में स्व. माधवराव सिंधिया के स्थान पर स्व. महेंद्र सिंह कालूखेड़ा गुना सीट से सांसद निर्वाचित हुए।
1984 में केन्द्र में राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने और उनकी केबिनेट में माधवराव सिंधिया रेल राज्य मंत्री बने। उनके रेल राज्य मंत्री बनने से शिवपुरी को गुना-ईटावा रेल लाइन की सौगात मिली। 1985 के विधानसभा चुनाव मं माधवराव सिंधिया के प्रभाव के कारण जिले की पांचों सीटों पर पुन: कांग्रेस उम्मीदवार विजयी रहे। लेकिन ऐसी स्थिति में भी भाजपा बराबर कांग्रेस से लोहा इसलिए लेती रही।
क्योंकि भाजपा के पास राजमाता विजयाराजे सिंधिया का प्रभावशाली नेतृत्व था। 1989 के लोकसभा चुनाव में राजमाता विजयाराजे सिंधिया गुना लोकसभा सीट से निर्वाचित हुई और केन्द्र में भाजपा के समर्थन से विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने। 1989 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। इस दौरान भाजपा जिले की राजनीति पर हावी रही। क्योंकि जिले की पांचों सीटों पर अब भाजपा का कब्जा था।
लेकिन कांग्रेस बराबर भाजपा से स्थानीय स्तर पर टक्कर लेती रही। स्व. माधवराव सिंधिया के निधन के बाद उनके सुपुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया राजनीति में आए और फिर स्थानीय स्तर पर राजनीति में संतुलन की स्थिति स्थापित हो गई। श्री सिंधिया गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र से लगातार चार बार कांग्रेस टिकट पर निर्वाचित हुए और उनके समर्थक भी इस दौरान विधायक बनते रहे। भाजपा की ओर से राजनीति की कमान यशोधरा राजे सिंधिया ने संभाली थी।
कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया और भाजपा से यशोधरा राजे सिंधिया के नेतृत्व का लाभ जनता को भी मिला। इस कारण शिवपुरी में सिंध पेयजल परियोजना, सीवेज प्रोजेक्ट आदि महत्वाकांक्षी योजनाओं को मंजूरी मिली। कांग्रेस और भाजपा में स्थानीय स्तर पर बराबर टक्कर होने के कारण दोनों दलों के कार्यकर्ताओं को सम्मान मिलता रहा और दोनों दल मनमानी करने की सोच भी नहीं सके।लेकिन सिंधिया के अब भाजपा मे जाने से राजनीति की धुरी पूरी तरह से भाजपा की ओर केन्द्रित हो गई है।
कांग्रेस महज औपचारिकता निर्वहन में है। इस दल में सशक्त नेतृत्व का अभाव है और इसमें अधिकांश ऐसे कार्यकर्ता हैं, जिन्हें भाजपा में टिकट की आस नहीं है और इसी कारण वह कांग्रेस में बने हुए हैं। कांग्रेस से भाजपा भी चिंतातुर नहीं दिख रही। यहीं कारण है कि नई भाजपा में अब पार्टी के समर्पित और पुराने कार्यकर्ता अपने आप को उपेक्षित महसूस करने लगे हैं और जनता भी विकल्पहीनता की स्थिति में है।