Shivpuri News- सिंधिया के भाजपा में जाने से विपक्ष लगभग समाप्त: केवल वही बचे जो महल विरोधी हैं

Bhopal Samachar
अशोक कोचेटा,शिवपुरी। स्व. माधवराव सिंधिया ने समूचे ग्वालियर-चंबल संभाग और शिवपुरी जिले में कांग्रेस को संजीवनी प्रदान की थी और उनके निधन के पश्चात उनके सुपुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने प्रदेश और केन्द्र में कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने के बाद भी शिवपुरी जिले में कांग्रेस को जीवित बनाकर रखा था।

लेकिन मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद शिवपुरी जिले में भी विपक्ष शून्यता की अवस्था में है। कांग्रेस में सिर्फ ऐसे लोग ही बचे हैं, जिन्हें सिंधिया के रहते भाजपा में अपना कोई भविष्य नहीं दिखाई देता। किसी भी लोकतंत्र में ऐसी स्थिति कभी भी सुखद नहीं कही जा सकती। इससे एक ओर जहां सत्ताधारी दल के निरंकुश होने का खतरा है, वहीं जनसुनवाई भी होगी इस पर भी शंका बनी हुई है।


शिवपुरी जिले की राजनीति में महल का प्रभाव हमेशा से बना रहा है। यहां की जनता की अधिकांश मानसिकता दलीय राजनीति से ऊपर उठकर महल के प्रति निष्ठा तक सीमित है। यहीं कारण है कि स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया और स्व. माधवराव सिंधिया ने जब-जब भी किसी भी दल से चुनाव लड़ा है, हर चुनाव में उन्हें विजयश्री हांसिल हुई है।

स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया और स्व. माधवराव सिंधिया भाजपा, निर्दलीय और कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में विजयी होते रहे हैं। इनकी उपस्थिति ने ही दलों में जान फूंकी है। 1971 में स्व. माधवराव सिंधिया ने अपनी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया की उंगली पकड़कर तत्कालीन भाजपा (जनसंघ) से चुनाव लड़ा और वह कांग्रेस लहर में भी शानदार बहुमत से चुनाव जीत गए।

लेकिन 1977 के बाद राजमाता विजयाराजे सिंधिया और माधवराव सिंधिया के राजनैतिक रास्ते अलग-अलग हो गए। 1977 में माधवराव सिंधिया ने गुना संसदीय सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़कर जनता पार्टी के कर्नल जीएस ढिल्लन को 77 हजार मतों से उस समय पराजित किया, जब समूचे उत्तर भारत में जनता पार्टी की लहर थी। 1980 में माधवराव सिंधिया कांग्रेस में आ गए और राजमाता विजयाराजे सिंधिया मूल दल में ही बनी रहीं।

स्व. माधवराव सिंधिया की कांग्रेस में उपस्थिति इतनी प्रभावी रही कि जिले के विधानसभा चुनाव में सिंधिया समर्थित सभी पांचों कांग्रेस विधायक चुनाव जीत गए। उस समय शिवपुरी से गणेश गौतम, पोहरी से हरिवल्लभ शुक्ल, कोलारस से पूरन सिंह बेडिया, करैरा से दाऊ हनुमंत सिंह और पिछोर से भैया साहब लोधी चुनाव जीत गए। जबकि इसके पहले जिले की राजनीति में कांग्रेस का कोई वर्चस्व नहीं था।

1985 में भी लगभग यहीं स्थिति रही। सिर्फ पोहरी से हरिवल्लभ शुक्ला का टिकट बदला गया और उनके स्थान पर स्व. गौतम शर्मा के सुपुत्र हिमांशु शर्मा को कांग्रेस ने टिकट दिया और वह विजयी रहे। लेकिन स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया के भाजपा में होने के कारण जिले में पक्ष और विपक्ष में कांग्रेस विधायक होने के बावजूद भी संतुलन बना रहा। 1980 में स्व. माधवराव सिंधिया गुना-शिवपुरी से सांसद बने।

लेकिन 1989 में स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने गुना-शिवपुरी की कमान संभाली और वह यहां से 1989, 1991, 1996 और 1998 में लगातार सांसद बनी। लेकिन सिंधिया के कारण कांग्रेस के विधायक भी जिले से जीतते रहे। 2001 में स्व. माधवराव सिंधिया के निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया राजनीति में आए और उन्होंने अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए कांग्रेस से चुनाव लड़ा।

उस समय शिवपुरी जिले में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे सिंधिया शिवपुरी से भाजपा विधायक थीं। कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया और भाजपा से यशोधरा राजे सिंधिया के मैदान में होने से शिवपुरी जिले की राजनीति में संतुलन की स्थिति बनी रही और कांग्रेस तथा भाजपा दोनों ही दल मजबूत बने रहे। केन्द्र में जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया मंत्री बने वहीं प्रदेश में यशोधरा राजे सिंधिया शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में शामिल हुई।

इससे दोनों के समर्थकों का हौंसला बुलंद रहा और उन्हें अपने-अपने आका से समर्थन और प्रोत्साहन मिलता रहा। 2018 के विधानसभा चुनाव में शिवपुरी जिले से ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण कांग्रेस को जहां तीन सीटों पर विजयश्री मिली। वहीं भाजपा ने दो विधानसभा सीटों पर कब्जा किया। लेकिन मार्च 2020 में सिंधिया ने जब कांग्रेस छोड़ी और वह भाजपा में शामिल हुए तो इससे कांग्रेस में शून्यता की स्थिति उत्पन्न हो गई। कांगे्रस में अब वे ही लोग बचे हैं।

जो मूल रूप से महल विरोधी हैं और जिन्हें सिंधिया के रहते हुए भाजपा में अपना भविष्य नहीं दिखाई दे रहा है। कुछ ऐसे महत्वाकांक्षी लोग भी हैं, जिन्हें लगता है कि भाजपा की अपेक्षा अब उन्हें कांग्रेस से आसानी से टिकट मिल जाएगा और भाजपा के खिलाफ यदि जनता में नाराजी हुई तो वह आसानी से जीत भी जाएंगे। लेकिन ऐसे अवसरवादी नेताओं और कार्यकर्ताओं को जोडऩे से कैसे कांग्रेस अपने भविष्य के प्रति निश्चिंत रह सकती है।

भाजपा में सिंधिया समर्थकों की बल्ले-बल्ले

भाजपा में सिंधिया का पदार्पण फिलहाल तो उचित ही प्रतीत हो रहा है। लंबे समय से सिंधिया देश की मुख्य धारा से दूर बने हुए थे और इससे इलाके के विकास में भी बाधा महसूस की जा रही थी। लेकिन अपने पिता की तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी मुख्य धारा से जुडऩे का निर्णय लिया है और जिसके परिणामस्वरूप वह न केवल राज्यसभा के सदस्य बनने में सफल रहे बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें अपने केबिनेट में शािमल कर नागरिक उड्डयन मंत्री भी बनाया है।

यहीं नहीं सिंधिया के विश्वसनीय सुरेश राठखेड़ा को प्रदेश सरकार में मंत्री पद मिला है तथा उनके कई समर्थकों को भाजपा संगठन में महत्वपूर्ण पद मिले हैं। पूर्व पार्षद आकाश शर्मा भाजयुमो के प्रदेश उपाध्यक्ष बनने में सफल रहे। वहीं हरवीर सिंह रघुवंशी, विजय शर्मा, केशव सिंह तोमर, महेंद्र सिंह यादव, महाराज सिंह लोधी को भाजपा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य बनाया गया है। अब कुछ सिंधिया समर्थक निगम मंडल के चैयरमेन बनने की उधेड़बुन में लगे हुए हैं। यह बात अलग है कि इससे मूल भाजपाईयों में असंतोष गहरा रहा है।
G-W2F7VGPV5M