रक्षाबंधन: राखी के पवित्र धागे के बल पर भगवान विष्णु, राजा बलि के बंधन से मुक्त हुए थे - Rakshabandhan ki story

Bhopal Samachar
शिवपुरी। आज से 4 दिन बाद हिन्दूओ का प्रमुख त्यौहार रक्षाबंधन हैं। इस दिन बहने अपने भाईयो की सुख समृद्धि का कामना करते हुए कलाई पर रेशम का धागा बांधती हैं जिसे हम राखी कहते हैं। भाई भी अपनी बहनो की रक्षा करने का वचन देत हैं। क्या आपको जानकारी हैं कि रक्षाबंधन का त्यौहार कब और कैसे शुरू हुआ। हिन्दू पुराणो में इस पवित्र त्यौहार का कई जगह उल्लेख मिलता हैं,इस रेश्म की डोर के बल पर ही माता लक्ष्मी को राजाबलि से भगवान विष्णु को मुक्त कराया था।

पहले जानते है कौनसी तिथि को पढता हैं यह त्यौहार

रक्षाबंधन का त्यौहार प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाते हैं, इसलिए इसे राखी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम का उत्सव है। इस दिन बहनें भाइयों की समृद्धि के लिए उनकी कलाई पर रंग-बिरंगी राखियाँ बांधती हैं, वहीं भाई बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं। इस वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा 22 अगस्त रविवार के दिन हैं।

माता लक्ष्मी ने बांधी थी राजाबलि को संसार में सबसे पहले राखी

राजा बली बहुत दानी राजा थे और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त भी थे। एक बार उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। इसी दौरान उनकी परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु वामनावतार लेकर आए और दान में राजा बलि से तीन पग भूमि देने के लिए कहा। लेकिन उन्होंने दो पग में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया। इस पर राजा बलि समझ गए कि भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं।

तीसरे पग के लिए उन्होंने भगवान का पग अपने सिर पर रखवा लिया। फिर उन्होंने भगवान से याचना की कि अब तो मेरा सबकुछ चला ही गया है, प्रभु आप मेरी विनती स्वीकारें और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें। भगवान ने भक्त की बात मान ली और बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए। उधर देवी लक्ष्मी परेशान हो गईं। फिर उन्होंने लीला रची और गरीब महिला बनकर राजा बलि के सामने पहुंचीं और राजा बलि को राखी बांधी।

बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं, इस पर देवी लक्ष्मी अपने रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्हें ही लेने आई हूं। इस पर बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ जाने दिया। जाते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे। यह चार महीना चर्तुमास के रूप में जाना जाता है जो देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठानी एकादशी तक होता है।

भगवान श्रीकृष्ण के यहां द्रोपदी ने बांधी थी राखी

राखाी से जुडी एक सुंदर घटना का उल्लेख महाभारत में मिलता हैं। यह घटना सुदंर भी इसलिए है कि भाई बहन के स्नेह के लिए सगा होना भी आवश्यक नही हैं,महाभारत में यह कथा आती है कि पांडू पुत्र युधिष्टिर इंद्रप्रस्थ में राजसूर्य यज्ञ कर रहे थे। उस समय सभा में शिशुपाल भी मौजूद था। शिशुपाल ने भगवान श्रीकृष्ण का आपमान किया तो श्रीकृष्ण ने अपने सुर्दशन चक्र से उसका वध कर दिया।

लौटते हुए सुर्दशन चक्र से भगवान की छोटी उंगली कट गई ओर उससे रक्त बहने लगा। यह देख द्रोपदी आगे आई और उन्होने अपनी साडी का पल्लू फाडकर श्रीकृष्ण की उंगली पर लपेट दिया। इसी समय श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को वचन दिया कि वह एक एक धागे का ऋण चुकाते हुए द्रोपदी की रक्षा करने का वचन दिया।

इस बाद जब कौरवो ने भरी सभा में द्रोपती का चीरहरण करने का प्रयास किता तो भगवान श्रीकृष्ण ने चीर बढाकर द्रोपदी के चीर की लाज रखी। कहते है जिस दिन द्रोपदी ने श्रीकृष्ण की कलाई में साडी का पल्लू बांधा था वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था।
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