उपकारियों के प्रति जिनके मन में धन्यवाद का भाव नहीं वह होते हैं कृतघ्न : साध्वी मुक्ता श्रीजी -Shivpuri news

Bhopal Samachar

शिवपुरी। इस जीवन पर अनेक-अनेकों का उपकार है। किसी के सहयोग के बिना जीवन एक क्षण भी नहीं चल सकता। श्वांस भी यदि हम लेना चाहे तो उसके लिए भी हवा की आवश्यकता है। सूर्य का प्रकाश एक क्षण भी तिरोहित हो जाए तो हमारा भी प्राणांत हो जाएगा। ऐसे सभी उपकारियों के प्रति हमें दिल से धन्यवाद देना चाहिए। धन्यवाद के भाव में औपचारिकता नहीं बल्कि हार्दिकता होनी चाहिए।

उक्त उदगार प्रसिद्ध जैन साध्वी मुक्ताश्रीजी ने पौषद भवन में श्रृद्धालुओं की धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। साध्वी पुनीत ज्योतिजी ने बताया कि अहंकारी व्यक्ति के मन में धन्यवाद का भाव नहीं होता। उन्होंने जीवन में विनम्रता के महत्व को बताते हुए कहा कि कुछ पाने के लिए विनम्रता बहुत आवश्यक है। साध्वी पुनीत ज्योति जी इंदौर से पदबिहार करती हुई आज हीं शिवपुरी आई हैं। जहां उनका जैन धर्माबलंबियों ने शिवपुरी आगमन पर स्वागत किया। उनके प्रवचन पौषद भवन में 10 मार्च को सुबह 9 बजे से होंगे।

साध्वी मुक्ता श्रीजी ने अपने प्रवचन में देव, गुरू और धर्म की महिमा पर भी प्रकाश डाला और कहा कि सुबह उठते ही सबसे पहले हमेें अपने ईष्ट देव, गुरूजन, माता पिता और धर्म को नमन करना चाहिए। जिनके कारण हमारा जीवन एक सही राह पर चल रहा है। साध्वी जी ने कहा कि वक्त के साथ-साथ इंसान मेें कठोरता आ गई है और इसका मुख्य कारण यह है कि हम अपनी संस्कृति और संस्कारों से किनारा करते जा रहे हैं।

पहले घर से बाहर जाते थे तो अपने घर का भोजन और पानी ले जाते थे तथा बाजार का भोजन और पानी इस्तेमाल नहीं करते थे। लेकिन अब घर में भी हंै, तो होटलों का खाना खा रहे हैं और बाजार में विस्लेरी का पानी पी रहे हैं। यह कहावत सत्य है कि जैसा खाएं अन्न वैसा होवे मन।

बाहर का खाना खाने से इंसान के स्वभाव ेमें कठोरता आ गई है और विनम्रता खत्म होती जा रही है। घर में हमारे माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी प्रतिदिन हमारा जीवन सुगमता से चले इसलिए हर पल सहयोग और सहायता करते हैं, लेकिन हम इतने कठोर हो गए हैं कि उनके प्रति कृतज्ञता और धन्यवाद का भाव कभी मन में नहीं लाते।

बल्कि यदि कुछ कमी रह गई है तो शिकायत आवश्यक करते हैं। साध्वी पुनीत ज्योति जी ने अपनी सुशिष्या साध्वी मुक्ताश्रीजी की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि झुकता वह नहीं है जो अहंकारी होता है। बढ़ा हुआ पेट और बढ़ा हुआ अहंकार हमें लोगों के गले नहीं मिलने देता। जीवन को सुगम बनाना है तो आवश्यक है कि हम अहंकार को त्यागकर विनम्रता को अंगीकार करें।