क्या अंतर है कोरोना की को-वैक्सीन और कोविशिल्ड वैक्सीन में, और यह कितनी हो रही है डेड: शिवपुरी में प्रतिदिन 700 बुर्जुगों को टीके X-Ray @Lalit Mudgal

Bhopal Samachar
शिवपुरी समाचार डॉट कॉम। कोरोना से लडने के लिए कोरोना का टीका लगने लगा हैं। जिले में प्रतिदिन 700 बुजुर्गो को कोरोना का टीका लग रहा हैं,इस टीकाकरण में कुछ प्रतिशत वैक्सीन डेड भी हो रही हैं,देश में कोरोना से लडने के लिए 2 तरह की वैक्सीन,को-वैक्सीन और कोविशिल्ड वैक्सीन लगाई जा रही हैं,क्या है इनमे अंतर और क्यो हो रही हैं यह वैक्सीन डेड(खराब) आईए इस पूरे मामले का एक्सरे करते हैं।

पहले कम शब्दो में पढे जिले में हुए टीकाकरण की जानकारी

सरकार ने एक मार्च से बुजुर्गों और 45 से 59 साल तक के बीमारी से ग्रसित लोगों को निःशुल्क कोरोना वैक्सीन लगाने की शुरुआत की थी। 19 दिन में जिले में 14 हजार 573 लोग इस सुविधा के तहत कोरोना का टीका लगवा चुके हैं। जिले में हर दिन 750 से अधिक लोग कोरोना का टीका लगवा रहे हैं, जिसमें 700 से अधिक बुजुर्ग शामिल हैं।

पहले दिन चार केंद्रों से शुरू की गई टीकाकरण की प्रक्रिया के तहत अब शनिवार 20 मार्च को जिले के 66 केंद्रों पर टीकाकरण किया जाएगा। अभी तक जिले और तहसील स्तर पर कोरोना का टीका लगाया जा रहा था। अब ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित स्वास्थ्य केंद्रों को भी इसमें शामिल कर लिया गया है, जिनमें टीकाकरण आज से शुरू होगा। जिले में 96 साल तक के बुजुर्ग भी कोरोना का टीका लगवाकर सकारात्मक संदेश दे रहे हैं।

टीकाकरण में लग रही हैं 2 तरह की वैक्सीन,आईए जानते हैं।

जिले में को-वैक्सीन और कोविशिल्ड वैक्सीन का टीका कारण किया जा रहा हैं। अभी तक इसमें कोविशिल्ड के 34 हजार 940 डोज खपत हो चुकी है,वही कोवेक्सिन के पांच हजार 360 डोज की खपत हो चुकी है। को वेक्सिन के डोज सिर्फ जिला अस्पताल में ही लगाए गए हैं। को-वैक्सीन भारत बायोटेक की हैं और कोविशिल्ड वैक्सीन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया की हैं।

अब जानते हैं दोनो में अंतर medtalks.in के अनुसार

को-वैक्सीन:- को-वाक्सिन वैक्सीन को मृत कोरोनावायरस का उपयोग करके विकसित किया गया है - जिसे चिकित्सा भाषा में "निष्क्रिय" टीका कहा जाता है। निष्क्रिय अवस्था के तहत, वायरस इंजेक्शन लगाने के बाद किसी व्यक्ति के शरीर के अंदर लोगों को संक्रमित करने या उसकी नकल करने में सक्षम नहीं है। लेकिन वैक्सीन का एक शॉट प्रतिरक्षा प्रणाली को वास्तविक वायरस को पहचानने के लिए तैयार करता है और संक्रमण होने पर उससे लड़ता हैं।

कोविशील्ड:-कोविशिल्ड वैक्सीन वायरस - एडेनोवायरस का उपयोग करके विकसित किया गया है-जो कि चिम्पांजी के बीच आम सर्दी के संक्रमण का कारण बनता है। इसकी आनुवंशिक सामग्री SARS-CoV-2 कोरोनावायरस के स्पाइक प्रोटीन के समान है। स्पाइक प्रोटीन SARS-CoV-2 का हिस्सा है, जिसके उपयोग से वायरस मानव शरीर की कोशिका में प्रवेश करता है। कोविशिल्ड वैक्सीन को एडेनोवायरस के कमजोर संस्करण का उपयोग करके विकसित किया गया है।

कोविशिल्ड के अनुपात में कोवेक्सिन अधिक हो रही हैं डेड

जिले को कोविशील्ड के 46 हजार 550 डोज और कोवेक्सिन के छह हजार 300 डोज जारी हुए हैं। इसमें कोविशिल्ड के 34 हजार 940 डोज खपत हो चुकी है और 4.2 प्रतिशत डोज बेकार हो गए हैं। कोवेक्सिन में खराब होने का प्रतिशत इसका दुगुना है। कोवेक्सिन के पांच हजार 360 डोज की खपत हो चुकी है और इनमें खराब होने का प्रतिशत 8.6 प्रतिशत है। कोवेक्सिन के डोज सिर्फ जिला अस्पताल में ही लगाए गए हैं।

टीकाकरण की प्रक्रिया में इस कारण हो रही हैं वैक्सीन डेड(खराब)

कोरोना के टीके के कोविशिल्ड की एक वाइल (शीशी) में 10 डोज होते हैं। वहीं कोवेक्सिन की एक वाइल में 20 डोज होते हैं। जैसे-जैसे टीकाकरण का उस दिन का समय पूरा होने को आता है तो 10 लोग एकत्रित हुए बिना ही टीकाकरण करने वाले कर्मचारी वाइल को खोल देते हैं। ऐसे में यदि दो लोग ही टीके लिए बचे हैं, तो शेष 8 डोज खराब हो जाते हैं, क्योंकि वाइल खुलने के चार घंटे बाद खराब हो जाती है।

इस बात पर भी मंथन चल रहा है कि छोटी वाइल बनाई जाए, जिससे डोज खराब कम से कम हो। इसमें व्यवहारिक समस्या यह है कि वाइल का साइज छोटा होने पर इनकी संख्या ज्यादा हो जाएगी। इससे इनका ट्रांसपोर्ट मुश्किल होगा और इन्हें रखने के लिए भी रेफ्रिजरेटर में ज्यादा जगह की आवश्यकता होगी।
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