अपनी आखिरी सांसे गिन रहा हैं पारागढ का ऐताहासिक किला,देवउठान के बाद प्रकट होती हैं भगवान विष्णु की मूर्ति

Bhopal Samachar
हार्दिक गुप्ता हैप्पी/कोलारस। जिले के कोलारस कस्बे से महज 10 किमी की दूरी पर अपने आप में विशाल इतिहास को समेटे और पुरातत्व सपदा को समेटे पारागढ का किला अपने देखरेख के अभाव में जमीदौंज होने की कगार पर हैं। इस किले के समीप बहती हुई सिंध नदी की धारा पर शयन मुद्रा में भगवान विष्णु की प्रतिमा पर्यटको को एक आलौकिक आंनद की अनुभुति प्रदान करती हैं। उक्त प्रतिमा वर्षाकाल में गायब होकर देवउठान को प्रकट होती हैं।

यह किला प्राकृतिक संपदा को समेटे जंगल के मध्य अपने बचे खुचे अस्तिव की लडाई लड रहा हैं। यह किला प्राकृति के बीच अपने आप में एक प्राचीन इतिहास संजोए हुए है। आला उदल की कहानियो मे भी पथरीगढ़ का युद्ध महत्वपूर्ण स्थान रखता है चारो तरफ जंगल,पहाडी व हरियाली से घिरे व प्रक्रति कि गोद में बसे पारागढ़ के किले के समीप से सिंध नदी गुजरी है जहां गर्मी में भी पानी की कल-कल करती जलधारा बहती है।



ऐतिहासिक किले के संरक्षण की दिशा में पहल न होने से यह किला आज अपने अस्तित्व को बनाए रखने में असफल नजर आ रहा है। पुरातत्व विभाग व स्थानीय प्रशासन की अनदेखी के कारण किले का सरंक्षण नहीं हो पा रहा जिससे किला धीरे-धीरे खंडर में तब्दील होने की कगार पर पहुंच गया है।

सिंध नदी की धारा पर शयन मुद्रा में विराज रहे है भगवान विष्णु

पारागढ़ किले के पास से बहती हुई सिंध नदी मे बीचोबीच चट्टान पर बनी हुई विष्णु भगवान का स्वरूप पर्यटको के लिए आकर्षण का केंद्र है यह सिर्फ गर्मी के मौसम मे देखने को मिलती है सिंध नदी का जलस्तर बढ़ने के कारण यह चट्टान पानी मे विलुप्त हो जाती है

जमीदौंज होते किले को बचा रहा हैं न्याय का देवता

पारागढ़ किले के अंदर स्थित कोलारस अंचल का एक मात्र शनिदेव मंदिर धर्मप्रेमियों की विशेष आस्था का केंद्र है। शनिदेव के दर्शन व पूजा करने को करने कोलारस सहित दूर-दूर से शनिदेव को मानने वाले हजारों की संख्या में कच्चे पथरीले व संकरे रास्तों का सफर तय कर यहां आते हैं। अगर इन न्याय के देवता का मंदिर इस किले में नही होता तो यह किला पूर्ण रूप से जमीदौज हो जाता।

शनिश्चरी अमावस्या के दिन यहां मेला लगता है।वहीं लोगों कि लोकप्रियता को देखते हुए कोलारस के अलावा ग्वालियर, मोहना, शिवपुरी, नरवर, झांसी, करैरा, पिछोर, बदरवास, खतौरा, ईशागढ़, पोहरी, अशोकनगर, गुना आदि क्षेत्रों से हजारों श्रद्धालु आते हैं।

आला उदल बड़े लडैया जिन्होंने जीता पथरीगढ़ का किला

जानकार लोग बताते है कि पथरीगढ़ किले का निर्माण पाडाशाह नामक एक धनवान सेठ ने कराया था इस कारण इसका नाम बाद में पारागढ़ पड़ गया। पारागढ़ किले का पहला शासक भूरा सिंह हुआ करता था। यह पथरीगढ़ के किले के नाम से विख्यात रह चुका हैं।

बताते है कि इसके बाद बारहवी शतावदी के उत्तरार्द्ध में यहां का शासक ज्वाला सिहं हुआ। आलखंड में हुए वर्णन के आधार पर इस बात का इतिहास बताता था कि यहां आला-ऊदल का युद्ध भी हुआ था। युद्व के चलते यहां रहने वाले लोग डर से यहां से पलायन कर गये।

खजाने की किदवंती ने किया इस किले को खंडित

किला और खजाना और किदवंतियो ने इस देश के कई किलो को ध्वस्त कर दिया। ऐसी ही किदवंती के कारण ही यह किला खंडर में तब्दील हुआ हैंं। वर्षा से खजाने पाने की लालच में लोग इस किले की मजबूत दिवारो को नुकसान पहुंचा रहे हैं। एकांत में होने के कारण भयमुक्त होकर खजाने के लालची लोगो ने इस किले को जमीदौज करने में बडी भूमिका निभाई हैं।

ध्यान दिया होता तो खूबसूरती मे सुमार होता किला

कोलारस से अधिक दूर न होने से यह प्रकृति प्रेमी व धर्म शनिदेव भक्तों के लिए एक मन पंसद जगह हो सकती है। केवल पत्थरों से बने इस किले मे सीमेंट व चूना का इस्तेमाल नहीं होने से यहां प्राचीन समय की ओर लौटाती कलाकृति की छाप भी साफ दिखाई देती हैं।

यदि पुरातत्व विभाग एंव इलाके के जनप्रतिनिधियों द्वारा किले मे बिखरी पडी प्राकृतिक सौर्न्दयता को जतन पूर्वक सहजा संवारा जाता तो यहां कि खूवसूरती को कमतर नहीं आंका जाता और शिवपुरी जिले का यह सबसे खूबसूरत स्थलों में शुमार हो जाता।

पर्यटको की पहुँच से दूर होता चला जा रहा परागढ़ का किला

बियावान जंगल मे स्थित किले का पहुंच मार्ग काफी कष्टकारी होने से पर्यटकों ने यहां से अपना मुंह मोड लिया है। वहीं बताया जाता है कि पारागढ़ किले में खजाना होने कि चर्चाओं के चलते यहां खुदाई भी की जाती रही है।एक समय था जब सिंध नदी के तट पर स्थित पारागढ़ किले की प्राचीन बनावट एंव हरे-भरे पेड पौधे देखने व पिकनिक मनाने लोगों कि टोलियां आती-जाती रहती थीं।

किले के अंदर बिखरे पडे हैं जैन मुर्तियो के अवशेष

बताया जा रहा हैं कि किसी समय यहां दर्जनो की संख्या में जैन मंदिर थे। मुगलो के आक्रमण में इन मंदिरो को खंडित किया गया था। इतिहास की इस घटना वर्णन किले के अंदर खंडित अवस्था में पडी जैन मुर्तिया अभी ग्वाही देती हैं। 
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