शिवपुरी। करैरा के जुझारू और निडर पत्रकार यूएनआई के प्रतिनिधि रहे सुरेंद्र तिवारी की दुर्घटना में मौत के 21 साल बाद आज उनकी धर्मपत्नी और सुपुत्रों ने उनकी पुण्यतिथि पर पत्रकारिता एवं साहित्य से संबंधित कार्यक्रम का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रसिद्ध साहित्यकार और वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद भार्गव उपस्थित थे। जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार अशोक कोचेटा ने की।
जिन्होंने सुरेंद्र तिवारी के साथ बिताए गए अपने अनुभवों को साझा कर पुरानी यादों को जीवित किया। विशिष्ट अतिथि के रूप में करैरा महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. लखनलाल खरे, रामस्वरूप शर्मा और प्रदीप श्रीवास्तव की गरिमामयी उपस्थिति रही।
समारोह में वक्ताओं ने स्व. सुरेंद्र तिवारी को याद करते हुए सार्थक पत्रकारिता पर एक उपयोगी बहस छेड़ दी। जिसमें मुख्य रूप से पत्रकारों के ज्ञान और उनकी संवेदनशीलता पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई। यह माना गया कि वर्तमान युग में पत्रकारिता के प्रति रूझान बढ़ा है। लेकिन यह भी सच्चाई है कि इसमें त्वरितता आने के साथ-साथ संवेदनशीलता की भावना कमजोर हुई है जो पत्रकारिता का मुख्य तत्व है।
स्व. सुरेंद्र तिवारी के पुत्रों ने उनकी मृत्यु के 21 साल बाद अपने पिता की स्मृति में जो शानदार और प्रेरणास्पद कार्यक्रम आयोजित किया। उसके लिए वह तथा उनका पूरा परिवार बधाई का पात्र है। समारोह में उपस्थित सभी अतिथियों और कवियों का शॉल श्रीफल तथा माल्यापर्ण से तिवारी परिवार द्वारा सम्मान किया गया। इसके बाद काव्य गोष्टी देर रात तक चली, जिसका आनंद श्रोताओं ने उठाया।
मां सरस्वती वंदना सुशांक मिश्रा द्वारा प्रस्तुत की गई। मुख्य अतिथि प्रमोद भार्गव ने स्व. सुरेंद्र तिवारी का स्मरण करते हुए कहा कि पत्रकारिता का उनमें जुनून था। उनके उदबोधन के पूर्व विशिष्ट अतिथि डॉ. लखनलाल खरे ने कहा कि मैंने कभी स्व. तिवारी को नहीं देखा है। लेकिन आज के कार्यक्रम को देखकर मैं महसूस कर रहा हूं कि वह कितने सच्चे और अच्छे पत्रकार थे।
खरें ने कहा कि आज की पत्रकारिता को देखकर मुझे दुख होता है। बड़े-बड़े अखबारों और संस्थानों से जुड़े पत्रकारों में न तो भाषा की समझ है और न ही ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा। देश और समाज में क्या चल रहा है इसकी भी उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं है। खरें ने कहा कि श्रेष्ठ पत्रकार वह होता है, जो साहित्यिक प्रतिभा से धनी होता है।
खरे के बाद जब मुख्य अतिथि प्रमोद भार्गव बोलने आए तो उन्होंने खरे के विचारों का समर्थन किया। लेकिन साथ ही जोड़ा कि आज के अधिकांश पत्रकार भाषाई दृष्टि से जहां दरिद्र हैं वहीं हिंदी की पत्रकारिता करने के बाद भी उनके मन में हिंदी के प्रति सम्मान नहीं है। अंग्रेजी की पत्रकारिता को हिंदी पत्रकारिता से जुडा होने के बावजूद वह श्रेष्ठ पत्रकार मानते हैं। भार्गव ने कहा कि जरूरी नहीं अच्छा पत्रकार होने के लिए ज्यादा पढा लिखा होना जरूरी हो। मुख्य बात यह है कि आपमें सीखने की लगन और जिज्ञासा होनी चाहिए।
अध्यक्षता करते हुए पत्रकार अशोक कोचेटा ने प्रारंभ में स्व. तिवारी के साथ बिताए गए क्षणों को याद किया और कहा कि उनसे मुझे पत्रकारिता में बहुत कुछ सीखने को मिला। खासकर निडरता और किस तेवर के साथ पत्रकारिता की जाती है। श्रेष्ठ पत्रकारिता क्या होती है। उन्होंने कहा कि जब पत्रकार संवेदनशील होगा तभी वह अपने आप को श्रेष्ठ पत्रकार कहलाने का हकदार होगा। लेकिन दुर्भाग्य है कि पत्रकारिता के विषय में यह माना जा रहा है कि वह पिछले 40-50 वर्षो में तेजी से आगे बढ़ी है।
प्रारंभ में स्व. तिवारी के ज्येष्ठ पुत्र सौरभ तिवारी ने अपने भावूक उदबोधन में अपने स्व. पिता और उनके साथियों को याद किया और कहा कि प्रतिवर्ष वह अपने पिता की स्मृति में ऐसा ही कार्यक्रम कराते रहेंगे।
पत्रकार ब्रजेश पाठक ने भी इस अवसर पर अपना उदबोधन दिया। आभार प्रदर्शन की रस्म शलभ तिवारी ने निर्वहन की। जबकि कार्यक्रम का श्रेष्ठ संचालन साहित्यकार सतीश श्रीवास्तव ने किया।