महाशिवरात्रि एक दिन: महाकाल के प्राकट्य के दिन या पुरुष और प्रकृति के मिलन का दिन, पढ़िए- Shivpuri News

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पं विकास दीप शर्मा @ शिवपुरी। शिवरात्रि तो हर महीने में आती है लेकिन महाशिवरात्रि सालभर में एक बार आती है। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। इस बार साल 2023 में यह पर्व आज 18 फरवरी शनिवार को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में पड़ रहा है।

महाशिवरात्रि का महत्व इसलिए है क्योंकि यह शिव और शक्ति की मिलन की रात है। आध्यात्मिक रूप से इसे प्रकृति और पुरुष के मिलन की रात के रूप में बताया जाता है। शिवभक्त इस दिन व्रत रखकर अपने आराध्य का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मंदिरों में जलाभिषेक का कार्यक्रम दिन भर चलता है। लेकिन क्या आपको पता है कि महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है, इसके पीछे की घटना क्या है-

फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन शिवजी पहली बार प्रकट हुए थे। शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में था। ऐसा शिवलिंग जिसका ना तो आदि था और न अंत। बताया जाता है कि शिवलिंग का पता लगाने के लिए ब्रह्माजी हंस के रूप में शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग को देखने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। वह शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग तक पहुंच ही नहीं पाए। दूसरी ओर भगवान विष्णु भी वराह का रूप लेकर शिवलिंग के आधार ढूंढ रहे थे लेकिन उन्हें भी आधार नहीं मिला।

एक और कथा यह भी है कि महाशिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग विभिन्न ६४ जगहों पर प्रकट हुए थे। उनमें से हमें केवल १२ जगह का नाम पता है। इन्हें हम १२ ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं। महाशिवरात्रि के दिन उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में लोग दीपस्तंभ लगाते हैं। दीपस्तंभ इसलिए लगाते हैं ताकि लोग शिवजी के अग्नि वाले अनंत लिंग का अनुभव कर सकें। यह जो मूर्ति है उसका नाम लिंगो भाव, यानी जो लिंग से प्रकट हुए थे।

ऐसा लिंग जिसकी न तो आदि था और न ही अंत। फिर शिवलिंग से भगवान शिव ने दर्शन दिए। जिस दिन भगवान शिव ने दर्शन दिए, उस दिन फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। उसी दिन से भगवान शिव का प्रथम प्राकट्य महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा।
महाशिवरात्रि को पूरी रात शिवभक्त अपने आराध्य जागरण करते हैं। शिवभक्त इस दिन शिवजी की शादी का उत्सव मनाते हैं।

मान्यता है कि महाशिवरात्रि को शिवजी के साथ शक्ति की शादी हुई थी। इसी दिन शिवजी ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। शिव जो वैरागी थे, वह गृहस्थ बन गए। माना जाता है कि शिवरात्रि के 15 दिन पश्चात होली का त्योहार मनाने के पीछे एक कारण यह भी है।

शिव-पार्वती का विवाह अर्थात पुरुष और प्रकृति का मिलन

महाशिवरात्रि के दिन शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, इसलिए यह दिन बेहद खास होता है और शिवजी को यह दिन बहुत प्रिय है। माता पार्वती की कठोर तपस्या के बाद शिवजी ने उनको पत्नी रूप में स्वीकार किया था और इस शुभ दिन पर विवाह किया था। इसलिए रात में कई जगह शिव बारात भी निकाली जाती है लेकिन ज्यादातर लोग केवल महाशिवरात्रि को इसी वजह से जानते हैं!

पुरुष और प्रकृति का मिलन शिव और माता पार्वती का विवाह महाशिवरात्रि के दिन होना यह पौराणिक घटनाओं और पुराणों में का उल्लेख किया गया है लेकिन इस दिन का महत्व इसलिए भी है कि महाशिवरात्रि शिवरूप अर्थात पुरुष प्रकृति यानी पार्वती के मिलन का दिन भी माना जाता है।

इसी रूप में प्राचीन काल से शिव पूजा का महत्व चला आ रहा है, जिसका वर्णन सिंधु काल में भी देखने को मिलता है। पुरुष और प्रकृति के मिलन का दिन, जिसे सृष्टि के आरंभ का स्रोत माना गया है। महाशिवरात्रि का अन्य शिवजी के व्रतों और पूजा से भी ज्यादा महत्व रहा है। साल की १२ शिवरात्रि की पूजा का फल आप केवल महाशिवरात्रि के दिन विधि-विधान से पूजा करने पर प्राप्त कर सकते हैं।