यह है शिवपुरी के रावण की कहानीः रिफ्यूजियों ने 70 साल पहले शुरू की थी परपंरा - Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी
। आज पूरे देश में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माने जाने रावण का दहन पूरे धूमधाम से किया जाता है। यह दहन की प्रक्रिया आज से नहीं अपितु बीते लंबे समय से चली आ रही है। शहर के आकर्षण का केन्द्र रहने वाले सिद्धेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण में रावण की विशाल रावण के पुतले का दहन किया जाता है।

बताया गया है कि रावण दहन की परंपरा लगभग 70  वर्ष पुरानी है। बताया गया है कि विभाजन के बाद पाकिस्तान और सिंध प्रांत को छोड़कर शिवपुरी आया पंजाबी समाज ने इसे सिद्धेश्वर मेला ग्राउंड में रावण दहन की परंपरा शुरू की।

पंजाबी परिषद ने बताया कि विभाजन के बाद पाकिस्तान और सिंध प्रांत से अपना सब कुछ छोड़कर शिवपुरी में बतौर रिफ्यूजी आए पंजाबी परिषद के लोगों ने जब शिवपुरी को अपना घर बनाया तो उन्होंने देखा कि यहां दशहरे पर रावण दहन का कोई बड़ा प्रोग्राम नहीं होता है।

इसी के बाद पंजाब प्रांत से आए इन लोगों ने सिद्धेश्वर मैदान को रावण दहन के लिए चुना। इसके बाद रावण दहन हर दशहरे पर बड़े प्रोग्राम के रूप में चालू हो गया। रावण दहन के कार्यक्रम से पहले पंजाबी परिषद के लोग रामरथ निकालते हैं जिसमें भगवान राम के अलावा सीताए हनुमान और लक्ष्मण बतौर स्वरूप शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए रावण दहन स्थल पर जाकर कार्यक्रम में सम्मिलित होते हैं।

केवल पंजाबी परिषद स्वयं अपने खर्चे पर करती है यह कार्यक्रम
पंजाबी परिषद इस आयोजन के लिए आपस में ही समाज के सभी लोगों से राशि एकत्रित करने का काम करती है। इस साल 45 फीट के रावण दहन के लिए एक लाख रुपए से अधिक की राशि खर्च की जा रही है।

जिसमें पंजाबी परिषद के सभी सदस्य अपनी इच्छा अनुसार राशि देते हैं। परिषद के पदाधिकारियों ने बताया कि उनके पूर्वजों द्वारा शुरू किए गए इस कार्यक्रम में आज भी नौजवान पीढ़ी की अच्छी.खासी दिलचस्पी है।

पंजाबी परिषद से जुड़े शहर के वरिष्ठ नागरिक राजीव विरमानी (68) ने बताया कि 1947 में हुए देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान की बन्नू, लकी, ऊकाड़ा और फ्रंटियर एरिया से कई सिख परिवार पाकिस्तान से दिल्ली आ गए।

राजीव विरमानी के दादाजी राम दत्ता मल विरमानी भी उनमें शामिल थे। वह अपने बेटे मुरारीलाल विरमानी के साथ पहले पाकिस्तान से दिल्ली पहुंचे और फिर वहां से निकटतम रिश्तेदार डॉ डीसी चौधरी और डॉक्टर राजेंद्र नाथ ढींगरा के कहने पर शिवपुरी आ गए। यहां सेवा कार्य कर समाजसेवियों से जुड़े और फिर पंजाबी परिषद द्वारा अब से तकरीबन 70 साल पहले रावण दहन की शुरुआत की गई। तब से लेकर अब तक कोरोना के सिर्फ 2 साल छोड़ दे तो हर साल रावण का दहन पंजाबी परिषद द्वारा किया गया।
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