संतोष शर्मा@शिवपुरी। कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों का भव्य आगमन हो चुका है, देश के प्रधानमंत्री द्वारा अपने जन्मदिन 17 सितंबर के अवसर पर नमीबिया से लाये गये 8 चीतों को आइसोलेशन में रखने हेतु बनाये गये पाॅच वर्गकिमी के बाडों में छोडा गया, इसके साथ ही 72 वर्षों पूर्व भारत देश से विलुप्त हो चुके चीतों के पहले अंतरमहाद्वीपीय पुनर्स्थापन योजना को सफलतापूर्वक संपन्न किया जा चुका है।
चीतों के आगमन के साथ ही शिवपुरी श्योपुर जिलों के पर्यटन क्षेत्र में नयी संभावनाओं को जन्म दिया है, जो कि व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ाने की ओर इशारा कर रहे हैं। दो माह बाद जब चीतों को खुले जंगल में जब छोड़ दिया जायेगा और कूनो राष्ट्रीय उद्यान के द्वार पर्यटकों का आना प्रारंभ होगा तो न केवल बड़े होटल, रेस्टोरेंट के व्यापार में तेजी आयेगी बल्कि छोटे दुकानदारों की आय में भी इजाफा होगा, सफारी वाहनों की मांग के साथ ही वाहन चालकों, सहायकों अथवा गाईड के लिये भी लोगों की आवश्यकता होगी जो क्षेत्रीय लोगों के रोजगार में वृध्दी ही करेगा।
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की द्वितीय श्रेणी में शामिल, विंध्यांचल पर्वत श्रंखलाओं के बीच स्थित कूनो अभ्यारण्य के बीचों बीच से होकर कूनो नदी बहती है जिसके आधार पर ही इसे कूनो राष्ट्रीय उद्यान नाम दिया गया, कूनो राष्ट्रीय उद्यान की सीमा शिवपुरी एवं मुरैना जिलों से लगी हुई हैं, इसमें प्रवेश के तीन मुख्य द्वार हैं
जिनमें शिवपुरी श्योपुर मार्ग पर स्थित सेसईपुरा गांव से होकर जाने वाला टिकटौली द्वार, पोहरी के नजदीक स्थित अहेरा द्वार तीसरा विजयपुर की ओर स्थित पीपलबाड़ी द्वार, कूनों में चीतों के लिहाज से सर्वाधिक अनुकूल मैदानी इलाका अहेरा एवं पीपलबाड़ी क्षेत्र में ही स्थित है जहां लम्बे लम्बे घास के विशाल मैदान स्थित हैं।
कूनो अभ्यारण्य को वर्ष 1981 में मप्र सरकार ने एशियाई लायन अर्थात गिर के शेरों को लाने के मकसद से 350 वर्ग किमी क्षेत्रफल में तैयार किया गया परंतु गुजरात सरकार एवं वन्य जीव विशेषज्ञों के द्वारा क्षेत्रफल को लेकर कुछ आपत्तियां दर्ज कराई गई, जिसके उपरांत शिवपुरी जिले के पोहरी वन परिक्षेत्र एवं विजयपुर वनपरिक्षेत्र का 400 वर्ग किमी का इलाका जोडकर 749.76 वर्ग किमी क्षेत्रफल का विस्तारित संरक्ष़्िात वन तैयार किया गया।
वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने शेरों को गिर से लाकर बसाये जाने हेतु महत्वपूर्ण निर्णय दिया परंतु गुजरात सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को दरकिनार करते हुए बब्बरी शेरों को देने से इंकार कर दिया गया। चीतों को भारत लाने की कार्ययोजना पर वर्ष 2010 से कार्य जारी था, दिसंबर 2018 में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा राजपत्र में कूनों को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा प्रदान किया।
जनवरी 2020 में चीतों को भारत लाये जाने की परियोजना को स्वीकृति मिलने के बाद कूनों को चीतों के पुनर्वास स्थल के रूप में सर्वाधिक अनुकूल पाया गया जिसके बाद इस दिशा में प्रयास किये गये। चीतों को अनुकूलन हेतु कुछ समय लिये 5 वर्ग किमी के इलाके में 12 फुट ऊंची जाली लगाकर बनाए गये 6 बाड़ों में रखा जायेगा, जिसके लिये बाडों के निर्माण कार्य का भूमिपूजन मप्र सरकार के वनमंत्री विजय शाह द्वारा जून 2021 किया गया था।
बाडों के चारों ओर निगरानी हेतु वाॅच टावर का निर्माण किया गया है साथ ही इन पर इंफ्रारेड कैमरों को लगाया गया है, कूनो पालपुर विश्रामग्रह पर एकीकृत नियंत्रण कक्ष का निर्माण किया गया है जहां से बाडों के अंदर मौजूद चीतों की गतिविधियों पर निगरानी के साथ ही उनके व्यवहार को भी रिकॉर्ड किया जाएगा, जिससे आने वाले अन्य चीतों को लाने में मदद मिलेगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि चीतों के आने के बाद इस क्षेत्र में पर्यटन आधारित व्यापारिक गतिविधियों में तेजी आयेगी।
कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों के आने के साथ ही पर्यटकों की संख्या में इजाफा होगा यह निश्चित है, जब अलग अलग खर्च करने की क्षमता के साथ बाहरी पर्यटक इस क्षेत्र में आएगा तो उसे रूकने एवं खाने के लिये उस स्तर के होटल की आवश्यकता भी होगी जो कि वर्तमान में उपलब्ध नहीं है, क्षेत्र में बड़े पैमाने पर भूमि खरीदने के लिये बाहरी होटल कारोबारियों का आना भी निश्चित है जिससे यहां जमीनों की कीमतों में उछाल देखा जा रहा है।
जब पूंजी का अधिक मात्रा में निवेश होगा तो क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिलना तय है, निर्माण सामग्री से जुडे कारोबारियों, निर्माण से जुड़े लोगों, मजदूरों को भी रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। चीता प्रोजेक्ट के चलते वाहनों एवं उन्हे चलाने के लिये मैन पावर की भी जरूरत रहेगी जो लोगों के रोजगार का जरिया बनेगा, छोटे छोटे होटल रेस्टोरेंट आदि भी आज से बेहतर स्थिति में पैसा कमाने की क्षमता को बढा पायेगें, कूनों के गेटों के नजदीक स्थित कस्बों को आने वाले समय र्में आर्थिक लाभ एवं विकास के अधिक अवसर प्राप्त होगें इसकी संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है।
शिवपुरी में स्थित माधव राष्ट्रीय उद्यान में शेरों को पुनः लाये जाने के प्रयास भी लगातार जारी हैं जिससे शिवपुरी एवं कूनों में सैलानियों का आना भी सुनिश्चित है, जिससे स्थानीय प्राचीन मंदिरों, वाटरफॉल, छत्री, सुरवाया गढ़ी तथा प्राकृतिक स्थलों के विकास पर सरकार द्वारा ध्यान दिया जाएगा, उन्हें विकसित करने के लिये अधिक धनराशि का आबंटन भी सुनिश्चित होगा।
बाहरी पर्यटकों के आने से होटल रेस्टोरेंट को तो बड़े पैमाने पर लाभ होगा ही साथ ही छोटे दुकानदारों, ऑटो टैक्सी चालकों, ड्राइवरों, पर्यटन के क्षेत्र में डिग्री डिप्लोमाधारी युवाओं, गाईड तथा सफारी वाहन हेतु चालकों को भी रोजगार मिलने की भरपूर संभावनाएं नजर आ रही हैं।