Shivpuri News- पर्युषण पर्व: साढ़े 12 वर्ष के साधना काल ने प्रभू को वर्धमान से बनाया महावीर

Bhopal Samachar
शिवपुरी। संसार में कुछ धर्म ऐसे हैं, जो अपने आराध्य के कथन को स्वीकार करने पर जोर देते हैं, तो कुछ अपने आराध्य के जीवन जीने के ढंग को अपनी प्रेरणा बनाते हैं लेकिन जैन धर्म के प्रणेता भगवान महावीर के जो उपदेश हैं और जो जीवन उन्होंने जीया है उसमें लेशमात्र भी भिन्नता नहीं है। भगवान महावीर की कथनी और करनी में अद्भुत साम्यता है। किसी भी एंगल से प्रभू महावीर को हम देखें तो वह बोध देते हुए दृष्टिगोचर होते हैं।

उक्त उदगार पर्यूषण पर्व के छठवें दिन आराधना भवन में कल्पसूत्र का वाचन करते हुए प्रसिद्ध जैन संत कुलदर्शन विजय जी ने व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि साढ़े 12 वर्ष के साधना काल ने प्रभू को वर्धमान से महावीर बनाया। वहीं पोषद भवन में स्थानकवासी जैन समाज के धर्मावलंबियों के समक्ष मुनि कुलरक्षित विजय जी ने कल्पसूत्र का वाचन किया।

इसके पूर्व आचार्य कुलचंद्र सूरि जी के मुखारविंद से निकले मांगलिक पाठ का धर्मावलंबियों ने लाभ उठाया। धर्मसभा में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के पदाधिकारियों का भी चार्तुमास कमेटी के तेजमल सांखला, प्रवीण लिगा आदि ने बहुमान्य किया।

संत कुलदर्शन विजय जी ने भगवान महावीर के साधनाकाल की चर्चा करते हुए कहा कि प्रभू ने साढ़े 12 वर्ष के साधना काल में मात्र 365 दिन ही आहार ग्रहण किया और पूरे साधना काल में घनघोर तपस्या की। भगवान महावीर 6-6 माह तक निराहार रहे। उन्होंने जीवन चलाने के लिए जितना कम से कम आहार की आवश्यकता होती है, उतना ही आहार ग्रहण किया। महाराज श्री ने बताया कि कम खाने का शारीरिक महत्व भी है।

वैज्ञानिकों के अनुसार 16 घंटे तक जो लगातार भूखा रहता है, उसे कई बीमारियों से मुक्ति मिल जाती है। भगवान महावीर के साधना काल का प्रथम सूत्र था कम से कम आहार और अधिक से अधिक श्रृद्ध और विश्वास। यह विश्वास स्वयं पर और प्रभु पर होना चाहिए। साधनाकाल में भगवान महावीर पूरे समय मौन रहे। उनका मौन पर सर्वाधिक जोर है। भगवान महावीर का संदेश है कि बिना ज्ञान के मौन रहना सार्थक है।

ज्ञान की उपलब्धि होने पर ही उनकी देशना मुखरित हुई। भगवान महावीर का संदेश है कि साधना काल में कम से कम स्पीच और अधिक से अधिक शक्ति। महाराज श्री ने बताया कि बोलने से शक्ति का हस होता है। जितना आप कम बोलोगे उतनी आपकी स्ट्रेंथ बढेगी। साधना काल में भगवान महावीर का तीसरा सूत्र है- मिनिमम स्पीड और मैक्सिमम स्ट्रग्ल अर्थात मनुष्य को प्रमाद और आलस्य कम से कम करना चाहिए और संघर्ष अधिकतम करना चाहिए।

यह संघर्ष बाहर के शत्रुओं से नहीं बल्कि भीतर के कषायों और विकारों से होना चाहिए। साधना काल में प्रभु महावीर ने अनेक उपसर्ग सहे लेकिन वह लेशमात्र भी विचलित नहीं हुए। इससे पूर्व मुनि कुलदर्शन विजय जी ने कल्पसूत्र के माध्यम से भगवान के जन्म कल्याणक की कथा का बखान किया। उन्होंने कहा कि जिस आत्मा का अंतिम भव होता है और उसका मोक्ष पद सुनिश्चित हो जाता है उसका जन्म कल्याणक देवी-देवता और इंद्र आदि मनाते हैं।

है प्रभू ऐसा जीवन देना जिसमें आपकी भक्ति होती रहे

पोषद भवन में धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि कुलरक्षित विजय जी ने कहा कि जब तक मोक्ष पद की प्राप्ति नहीं होती, तब तक आत्मा की यात्रा जारी रहती है। उन्होंने बताया कि जब तक मोक्ष पद की प्राप्ति न हो तब तक हम ईश्वर से यही प्रार्थना और विनती करें कि है प्रभु ऐसा जीवन देना जिसमें आपकी भक्ति होती रहे। धर्मसभा में मुनि कुलरक्षित विजय जी ने श्रावक श्राविकाओं की जिज्ञासाओं का भी समाधान किया।
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