1993 में घटा था अप्रत्याशित घटनाक्रम: 28 पार्षद थे काग्रेंस के प्रत्याशी के साथ फिर भी जीत भाजपा प्रत्याशी की हुई- Shivpuri News

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शिवपुरी।
नगर पालिका अध्यक्ष पद के अप्रत्यक्ष पद्धति से हुए अंतिम चुनाव में भाजपा फूल छाप कांग्रसियों का सहयोग लेकर करिश्मा करने में सफल रही। जीत के सारे समीकरण कांग्रेस प्रत्याशी श्रीमति तृप्ति गौतम के पक्ष में थे। 39 पार्षदों में से 28 पार्षदों का समर्थन खुलकर उनके साथ था। भाजपा प्रत्याशी राधा गर्ग के पास मुश्किल से 11 पार्षद थे। जीत का आत्मविश्वास लेकर तृप्ति गौतम अपने समर्थक पार्षदों के साथ मतदान करने के लिए नगर पालिका परिसर में पहुंची।

लेकिन जब मत पेटी खुली तो सारे समीकरण पलट गए। कांग्रेस प्रत्याशी तृप्ति गौतम के समर्थक 12 पार्षदों ने उनके साथ बगावत करते हुए उन्हें 16 मतों पर समेट दिया। जबकि भाजपा प्रत्याशी राधा गर्ग 11 मतों से छलांग लगाकर सीधे 23 मत प्राप्त कर गई और उन्होंने जीत को वरण कर लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि नपा उपाध्यक्ष पद के चुनाव में भाजपा के हौसले बुरी तरह से पस्त पड़ गए और कांग्रेस के बगावती पार्षद अरुण प्रताप सिंह चौहान र्निविरोध रूप से उपाध्यक्ष बनने में सफल रहे।

1993 मेें देश और प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस का वर्चस्व था। देश के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह थे। इसके बावजूद भी शिवपुरी जिले की राजनीति गुटबाजी से मुक्त नहीं थी। गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर कांग्रेस राजनीति का चेहरा स्व. माधवराव सिंधिया थे। दिग्विजय सिंह समर्थक लॉबी उनका विरोध करती थीं। प्रदेश में मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह होने के कारण उनके हौसले भी बुलंद थे।

उस समय स्व. माधवराव सिंधिया के शिवपुरी जिले की राजनीति में मुख्य सिपहसालार पूर्व विधायक गणेश गौतम थे। कांग्रेस प्रत्याशी तृप्ति गौतम उनकी धर्मपत्नी थीं। नगर पालिका पार्षद पद के चुनाव में वह आदर्श नगर स्थित अपने वार्ड से चुनाव जीत गई थीं। उन्होंने भाजपा के पूर्व जिला महामंत्री ओमप्रकाश शर्मा ओमी की धर्मपत्नी को पराजित किया था।

पार्षद पद के चुनाव में स्व. सिंधिया के प्रभामंडल के कारण बड़ी संख्या में कांग्रेस पार्षद चुनाव जीतकर आए थे। भाजपा की राजनीति में उस समय यशोधरा राजे सिंधिया कुछ वर्ष पहले ही सक्रिय हुई थी और शिवपुरी में विधायक भाजपा के देवेंद्र जैन थे। पूर्व विधायक गणेश गौतम का कांग्रेस की दिग्विजय सिंह लॉबी विरोध करती थी। इसलिए जब स्व. माधवराव सिंधिया ने नपाध्यक्ष पद के चुनाव में तृप्ति गौतम को उम्मीदवार बनाया तो यह निर्णय दिग्विजय सिंह लॉबी को रास नहीं आया।

उस समय सिंधिया खेमे और गणेश गौतम विरोधी पार्षद परिषद में बड़ी संख्या में जीते थे। श्रीमती तृप्ति गौतम के नपाध्यक्ष पद का टिकट मिलने से उस समय के कांग्रेस पार्षद गणेशीलाल जैन, स्व. रामजीलाल कुशवाह, स्व. श्यामसुंदर गुप्ता, अरूण प्रताप सिंह चौहान, जगमोहन सिंह सेंगर, स्व. सुरेश भोज, हसीना बेगम, सरोज भार्गव आदि पार्षद मन में खिन्नता पाले हुए थे। उन्हें लग रहा था कि क्या स्व. सिंधिया के समक्ष गणेश गौतम के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।

हालांकि वे मुखर विरोध नहीं कर सके। लेकिन मन मेें टीस अवश्य पाले रहे। स्व. शीतल प्रकाश जैन भी जिन्हें अप्रत्यक्ष पद्धति के चुनाव में जोड़ तोड़ करने में महारत हासिल थी। वह भी खुलकर तृप्ति गौतम के विरोध में आ गई। लेकिन पार्षद सफदरबेग, हरचरण पाल, पहलवान सिंह यादव, लक्ष्मीनारायण शिवहरे आदि पार्षदों का समर्थन तृप्ति गौतम के पक्ष में रहा।
भाजपा ने समाजसेवी स्व. प्रमोद गर्ग की धर्मपत्नी स्व. श्रीमती राधा गर्ग को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया। उस समय स्व. राधा गर्ग के देवर स्व. विनोद गर्ग टोडू भी भाजपा की राजनीति में सक्रिय थे।

भाजपा प्रत्याशी श्रीमती राधा गर्ग के समर्थकों ने बड़ी मुश्किल से 39 में से 11 पार्षदों का समर्थन जुटाया। जबकि 28 पार्षदों के साथ कांग्रेस प्रत्याशी तृप्ति गौतम के हौसले बुलंद थे। लेकिन बगावती पार्षदों के इरादों को कोई भांप नहीं पाया। स्व. शीतल प्रकाश जैन, गणेशी लाल जैन, अरुण प्रताप सिंह चौहान और जगमोहन सिंह सेंगर ने अपने समर्थक पार्षदों को गुपचुप तरीके से एकजुट किया।

सिंधिया विरोधी कांग्रेस पार्षदों का जमावड़ा गणेश आश्रम में किया गया। लेकिन यह निश्चित लग रहा था कि जीत कांग्रेस प्रत्याशी तृप्ति गौतम की होगी। मतदान से पहले ही उन्होंने आतिशबाजी का इंतजाम कर लिया था। मतदान के लिए वह अपने 28 पार्षदों को लेकर नगर पालिका परिसर पहुंची। जीत का आत्मविश्वास उनके चेहरे पर चमक रहा था। जबकि राधा गर्ग हताशा की मुद्रा में थीं। लेकिन मत पेटी जब खुली तो सारे समीकरण पलट गए थे। राधा गर्ग को 23 मत और तृप्ति गौतम 11 मौतों पर सिमट गई थीं।

7 गणेश विरोधी और 5 दिग्विजय सिंह समर्थक पार्षदों ने की थी बगावत

बताया जाता है कि उस चुनाव में पूर्व विधायक गणेश गौतम के 7 विरोधी पार्षदों और 5 दिग्विजय सिंह समर्थकों ने बगावत कर कांग्रेस प्रत्याशी को हार के लिए मजबूर किया था। गणेश विरोधी पार्षदों का नेतृत्व गणेशी लाल जैन, श्याम सुंदर गुप्ता, रामजीलाल कुशवाह आदि पार्षदों ने किया। जबकि दिग्विजय सिंह समर्थक पार्षदों का नेतृत्व स्व. शीतल प्रकाश जैन, अरुण प्रताप सिंह चौहान और जगमोहन सिंह सेंगर आदि ने किया।
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