शिवपुरी। आदिवासी और पिछड़े क्षेत्रों में बच्चों को पोषित करने के लिए शासन तमाम योजनाएं लागू कर चुका है। इन योजनाओं का धरातल पर क्रियांवयन नजर नहीं आता है। यदि शासकीय योजनाओं की सही स्थिति देखना है तो वह किसी भी आदिवासी क्षेत्र में देखी जा सकता है। आदिवासी बाहुल्य ग्राम मझेरा में जब एक संस्था ने शिविर लगाकर 40 बच्चों की जांच की तो उनमें से 38 बच्चों को एनीमिया की शिकायत मिली। सिर्फ दो बच्चे ही ऐसे थे जिनमें हीमोग्लोबिन का स्तर ठीक था।
शक्तिशाली महिला संगठन द्वारा महिला बाल विकास विभाग के साथ मझेरा में जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें क्षेत्र के बच्चों और किशोरों की खून की जांच की गई। रवि गोयल और साहब सिंह धाकड़ ने बताया कि 40 बच्चों की यहां जांच हुई। इसमें इनके रक्त में हीमोग्लोबिन के स्तर की जांच की गई। सिर्फ एक बालिक नैंसी आदिवासी और एक बालक राजू आदिवासी का हीमोग्लोबिन स्तर 11.5 से अधिक था। शेष 38 बालक-बालिकाओं में रक्त की कमी पाई गई।
रवि गोयल ने इन्हें जागरूक करते हुए कहा कि एनीमिया का सबसे बड़ा कारण शरीर में आयरन की कमी होना है। जब शरीर में रेड ब्लड सेल्स धीरे धीरे खत्म होने लगते हैं और शरीर को जरूरत के अनुसार डाइट नहीं मिलती तो इससे खून की कमी होने लगती है। इस कमी को दूर करने के लिए हरी साग-सब्जी और अंडा, दूध, एवं लोहे की कड़ाही में खाना बनाना चाहिए। इससे एनीमिया दूर हो जाती है। स्वास्थ्य विभाग से मिलने वाली आयरन फोलिक एसिड की पिंक एवं नीली गोली का हर सप्ताह उपयोग करना चाहिए। इस मौके पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता रशीदा बानो, समंवयक विकास अग्रवाल भी मौजूद रहे।
बालिकाओं में होती है कमी, यहां बालक भी मिले एनीमिक
सामान्य तौर पर एनीमिया की समस्या किशोरियों और महिलाओं में अधिक होती है। मासिक धर्म के दौरान अत्यधिक रक्तस्त्राव होने पर यह परेशानी आती है। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं में भी एनीमिया बहुत होता है। लेकिन शिविर के दौरान जितनी बालिकाएं एनीमिक मिलीं, उनती ही संख्या में बालक भी एनीमिक मिले। बालकों में खून की कमी होने सीधे तौर पर यहां पोषण की समस्या बताता है। क्षेत्र में पोषण वितरण किस तरह से हो रहा है, इसकी स्थिति में इस रिपोर्ट से स्पष्ट होती है।