मैं ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया ईश्वर की शपथ लेता हूं। हारकर जीतने वाले को ज्योतिरादित्य कहते हैं

Bhopal Samachar
ललित मुदगल,शिवपुरी समाचार डॉट कॉम
। मैं ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया ईश्वर को साक्षी मानकर शपथ लेता हूं,जैसे ही दिल्ली में सांसद सिंधिया ने यह शब्द बोले वैसे ही शिवपुरी में उनके समर्थको में खुशी की लहर दौड गई और आतिशबाजी शुरू हो गई। मप्र में आम विधानसभा चुनाव में भाजपा का हारना,फिर कमलनाथ की सरकार का गिरना और सांसद सिंधिया का देश की कैबिनेट में जगह पाना शब्दो की ताकत का खेल रहा हैं,फिलहाल शिवपुरी में सांसद सिंधिया को चाहने वाले लोग कह रहे हैं जीतकर हारने वाले को कांग्रेस कहते हैं और हारकर जीतने वाले को सिंधिया कहते हैं।

3 शब्दो के फेर में गया शिव और कमलनाथ का शासन

माई का लाल शब्द आपको याद होगा, शिवराज के यह 3 शब्द मप्र की पूरी भाजपा पर भारी पड गए ओर मप्र के चुनावो में माई के लालो ने भाजपा को हरा दिया। इसी चुनाव में माफ करो महाराज भाजपा का ज्योतिरादित्य पर तंज वाला विज्ञापन भी भारी पडा। जनता ने कहा आ जाओ महाराज ओर कांग्रेस को विजयी बना दिया। फिर कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया का विवाद और कमलनाथ के 3 शब्द तो उतर जाओ। इन शब्दो ने कमलनाथ को कुर्सी से उतार दिया। इस पूरे खेल में शब्द सबसे बडी ताकत बनकर उभरे। मुझे भी यह खबर कम शब्दो में पूरी करनी हैं सिर्फ इतना ही किसी ने कहा है कि शब्द शब्द में अंतर कोई हीरा कोई पत्थर।

शिवपुरी गुना लोकसभा सीट ने तय किया हैं मप्र की राजनीति नही देश का भविष्य

अगर कहा जाए की शिवपुरी गुना लोकसभा सीट के कारण कमलनाथ सरकार का पतन हुआ हैं तो कोई अतोशोयक्ति नही होगी। शिवपुरी गुना लोकसभा सीट से सिंधिया राजवंश के सभी सदस्यो ने अपनी राजनीति की पारी शुरू की हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने साल 1957 में अपना पहला चुनाव लडा था।

ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता कैलाशवासी माधवराव सिंधिया ने भी अपना पहला चुनाव शिवपुरी गुना लोकसभा सीट से लडा था। सन 2002 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपना पहला चुनाव शिवपुरी गुना लोकसभा सीट लडा और रिकॉर्ड जीत हासिल कर संसद में पहुंचे। सिंधिया राजवंश में पहली बार ज्योतिरादित्य सिंधिया को 2019 में हुए चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस में कभी उनके शार्गिद रहे डॉ. केपी यादव ने ही उन्हें मात दी।

सिंधिया का चुनाव हारना 2019 के चुनाव की 5 सबसे बडी खबरो में एक एक थी। इस चुनाव के हारने बाद कांग्रेस में सिंधिया को लगातार कमजोर करने का प्रयास किया जाने लगा। सिंधिया ने जो वादे विधानसभा में किए थे उन्है लेकर लोग उनसे प्रश्न करने लगे थे। इसी एक प्रश्न का जबाब सिंधिया ने अतिथि शिक्षको को लेकर कहा था कि मांगे पूरी नही हुई तो मैं भी आपके साथ सडक पर उतर जाउंगा।

मप्र के नाथ कमलनाथ ने भी पलटवार करते हुए कहा कि उतर जाओ। बस यही से कमलनाथ और सिंधिया का शीत युद्ध शुरू हो गया ओर इस आग में घी डालने का काम दिग्गी राजा करते रहे। मप्र की राज्यसभा सीट से राज्यसभा का सांसद बनने के रास्ते में कमलनाथ ने कांटे बिछाने शुरू कर दिए। मप्र की कांगेस की कमान सौपने के मामले में भी सिंधिया के साथ बेरूखी की।

कांग्रेस से लगातर अपमान के कारण सिंधिया ने अपने समर्थक विधायको के साथ भाजपा का हाथ थाम लिया। मप्र में पुन:भाजपा की सरकार बन गई।अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया 2019 का लोकसभा का चुनाव नही हारते तो आज मप्र की राजनीति की यह दृश्य नही होता।

अगर भाजपा की बात करे तो भाजपा का जन्म भी शिवपुरी गुना लोकसभा सीट से हुआ हैं। उस समय भाजपा नही जनसंघ नाम था पार्टी का। उस समय कांग्रेस की जडे देश में गहरी थी,राजमाता विजयराजे सिंधिया शिवपुरी गुना लोकसभा सीट से चुनाव में विजय होकर देश की संसद में बैठकर भाजपा की विचार धारा को मजबूत करती थी,उस समय पूरे देश में जनसंघ 2 या 3 सांसद थें। कम शब्दो में लिखे तो शिवपुरी गुना लोकसभा सीट भाजपा की कोख रही हैं इसी सीट की ताकत से जनसघ रूपी पौधा आज विशाल वट वृक्ष बना हैं

हारकर जीतने वाले को अब ज्योतिरादित्य कहते हैं

एक फिल्म को मशहूर डॉयलॉग जीतकर हारने वाले को बाजीगर कहते हैं,लेकिन हारकर जीतने वाले का अब लोग सिंधिया कहते हैं। यह डॉयलॉग सिंधिया समर्थक नेताओ के मुंह से निकल रहे हैं और वह तंज कस रहे हैं कांगेसियो पर की तुम जीतकर भी हार गए और हम हारकर भी जीत गए.......
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