शिवपुरी में सिंधियानिष्ठ भाजपाइयों का कॉन्फिडेंस कमजोर, जमीनी कार्यकर्ताओं को महाराज ब्रांड मंजूर नहीं - Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। भारतीय जनता पार्टी में राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों को आए हुए लगभग 11 माह हो चुके है। सिंधिया अवश्य भाजपा की रीति नीति में ढल चुके हैं और पार्टी के कार्यक्रमों में भी बराबर रूचि ले रहे हैं। यहां तक कि वह संघ प्रमुख से भी मिल आए हैैं।

राज्यसभा में भी सिंधिया ने किसान आंदोलन के संदर्भ में भाजपा का पक्ष पूरी प्रबलता से रखा और इसकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने भाषण में जमकर तारीफ की। लेकिन इसके विपरीत सिंधिया समर्थक भाजपा की मुख्य धारा में शामिल नहीं हो पाए हैं और पार्टी के अधिकांश कार्यक्रमों से भी उनकी दूरी बनी हुई है। उनकी भूमिका सिर्फ अपने गुट विशेष तक सीमित हो गई है। सिंधिया के दौरा कार्यक्रमों और उनके समाचारों का प्रसारण ही उनका एकमात्र उद्देश्य हो गया है।

भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की आईडियोलॉजी में जमीन आसमान का अंतर है। कांग्रेस में जहां व्यक्तिगत प्रतिबद्वता महत्वपूर्ण है। वहीं भाजपा में पार्टी के प्रति निष्ठा को सर्वोपरि माना जाता है। ऐसा नहीं कि भाजपा में गुटबाजी नहीं है। लेकिन गुटबाजी इस हद तक नहीं है कि एक गुट विशेष के कार्यकर्ता दूसरे गुट विशेष के कार्यकर्ता को विरोधी दल के कार्यकर्ता से अधिक दुश्मन मानते हों।

परंतु कांग्रेस में गुटीय निष्ठा भले ही संविधान में वर्णित न हो। लेकिन इसका पार्टी में आम चलन है। यहीं कारण है कि कांग्रेस में सिंधिया खैमे का कम से कम ग्वालियर चंबल संभाग में जमकर वर्चस्व था। सिंधिया के साथ उनके समर्थक कांग्रेस से भाजपा में तो आ गए हैं। लेकिन वह अपनी पुरानी आदत से मुक्त नहीं हो पाएं हैं। सिंधिया और उनके समर्थक मंत्रियों तक वह अपनी सीमित पहुंच बनाए हुए हैं।

कांग्रेस में सिंधिया समर्थकों का बाहुल्य था और पार्टी के लगभग 80 प्रतिशत कार्यकर्ता सिंधिया समर्थक थे। इनमें से अधिकांश सिंधिया के साथ भाजपा में आ गए हैं। हालांकि कुछ सिंधिया समर्थक निहितस्वार्थ के कारण अभी भी कांग्रेस से जुडे हुए हैं। लेकिन कांग्रेस से कब उनका मोह भंग हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। इतनी बड़ी संख्या में सिंधिया समर्थकों के भाजपा में आने के बाद भी पार्टी मेें उनकी आवाज इसलिए नहीं बन पा रही क्योंकि भाजपा की मुख्य धारा में वह अपने आप को समाहित नहीं कर पाए।

पार्टी संगठन से भी उनकी दूरी बनी हुई है और भाजपा के केवल उन मंत्रियों से उनकी नजदीकियां हैं जो सिंधिया समर्थक हैं। अधिकांश सिंधिया समर्थक सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक मंत्रियों के दौरा कार्यक्रमों को व्हाट्सएप और फेसबुक पर डालते रहते हैं। सिंधिया समर्थकों ने सत्ता में पकड़ तो अवश्य बना ली है और बड़ी संख्या में सिंधिया समर्थक प्रदेश सरकार मेें मंत्री भी बन गए हैं।

लेकिन पार्टी संगठन में उनकी पहुंच उतनी नहीं बन पार्ई है। जिला ईकाईयों का विस्तार भी इसलिए नहीं हो पा रहा क्योंकि सिंधिया समर्थकों को संगठन में लाने का दबाव तो है। लेकिन उनके रंग ढंग से भाजपा उन्हेें संगठन से नहीं जोडऩा चाहती। सिंधिया समर्थकों का आत्मविश्वास इसलिए भी डगमगा रहा है, क्योंकि उनके नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने पुराने निर्वाचन क्षेत्र से पराजय के पश्चात दूरी बना ली है। पूरे प्रदेश में उनके दौरा कार्यक्रम बन रहे हैं।

विशेषकर ग्वालियर पर सिंधिया अधिक ध्यान केन्द्रित किए हुए हैं। लेकिन गुना-शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र में अभी तक उनका कोई कार्यक्रम नहीं बना है। ऐसी स्थिति में सिंधिया समर्थक हताशा का भी शिकार हो रहे हैं और उन्हें समझ नहीं आ रहा कि नगरीय निकाय चुनाव में कैसे उनके हितों का संबर्धन होगा।
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