भारी भ्रष्टाचार या भारी लापरवाही:तहसीलदार ने किए एक मामले में एक ही दिन में 2 आदेश

Bhopal Samachar
पिछोर। किसी भी विवाद का अंतिम निर्णय न्यायालय का माना जाता हैं,अगर विवाद होता हैं तो लोग न्यायालय की ओर दौड लगाते हैं लेकिन एक तहसील का निर्णय और आदेश विवाद की स्थिती बना रहे हैं,या तो इस निर्णय में भारी भ्रष्टाचार हुआ हैं यहा भारी लापरवाही।

इस फैसले से एक बात और सामने आ आई हैं,कि फैसला भ्रष्टाचार से भरा हैं और बाबूओ ने तहसीलदार के हस्ताक्षर करवाए हैं और फैसला अपने हिसाब से लिखा हैं। इस मामले में जब तहसीलदार से बात की तो उन्होने अपने आफिस के बाबूओ पर ही दोषारोपण कर दिया।

जानकारी के अनुसार पिछोर तहसील न्यायालय में पदस्थ रहे नायब तहसीलदार प्रभारी तहसीलदार पिछोर दिनेश चौरसिया ने 26 दिसंबर 2020 को प्रकरण। क्रमांक 0741/20/21/96 में फैसला देते हुए नामांतरण का आदेश जारी किया । मामले की पूरी जानकारी देते हुए एडवोकेट राकेश शास्त्री ने बताया कि राम रतन आदि बनाम शासन के बीच मामला तहसील न्यायालय में विचाराधीन था।

मृतक धनुआ जाटव कस्बा पिछोर की भूमि पर वारिसान नामांतरण रामरतन पुत्र धनुआ जाटव , कुसमा , प्रेम पुत्री गण धनुआ जाटव के पक्ष में नामांतरण आदेश जारी कर दिया ।

बात यहीं तक होती तो भी ठीक थी, लेकिन साहब ने इसी तारीख यानि 26 दिसंबर 2020 में प्रकरण क्रमांक 1052 / 20.21 / अ 6 उनमान लखनलाल आदि बनाम मध्यप्रदेश शासन में वसीयतनामा के आधार पर लखनलाल, बाबूलाल पुत्रगण रामरतन अहिरवार के पक्ष में नामांतरण आदेश जारी कर दिया ।

अब सवाल यह है कि तहसीलदार के प्रभार पर रहते हुए दिनेश चौरसिया ने एक ही सर्वे नंबर 2281/2,2281 / 4,2282 / 1 , 2284/1 , कुल किता 4 कुल रकबा 2.874 हेक्टेयर भूमि स्थित ग्रेट बाग पिछोर हिस्सा 1/2 भूमि पर, दोनों दावेदारों के हक में नामांतरण का आदेश कर दिया। दोनों पक्ष अपना आदेश लेकर घूम रहे हैं,लेकिन उनका नामांतरण नहीं हो पा रहा।

ऐसे कैसे हो सकता हैं
अब आपके मन में एक सवाल पैदा हो रहा होगा कि एक ही मामले के दो आदेश कैसे हो सकते हैं अगर अधिकारी एक दिन में एक मामले के देा फैसले कैसे कर सकता है। इतनी कमजोर मैमोरी तो नही हो सकती है। इस मामले में अपने राम का कहना हैं कि इस आदेश में बाबूओ की सेंटिंग थी और साहब को पैसे देकर साईन कराए हैं दोनो पक्षो के बाबूओ ने अपने अपने हिसाब से अपने अपने क्लाईंट का फैसला लिखा हैं। ।

अब इसमें गडबड यह हो गई कि एक ही केस में दो जगह सैंटिंग हो गई। आपस में बातचीत नही की गई,और गलती से फैसले की तारिख भी एक हो गई। ऐसा नही हो सकता हैं कि एक अधिकारी एक ही दिन में एक ही मामले के दो फैसले कर सकता है। इस मामले में साहब ने मीडिया को बयान दिया हैं कि बाबूओ ने कम्पयूटर पर गडबडी की होगी,जिसे में दिखवाता हूं।
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