दुबई में एक करोड का पैकेज टुकराकर हितेश भाई बनेंगे जैन संत, लेंगे सन्यास - Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। जैन तीर्थंकरों की परम्परा का अनुकरण करते हुए गुजरात के हितेश भाई करोड़ों की सम्पदा को त्याग कर प्रसिद्ध जैन मुनि आदर्श रत्न सागर जी महाराज के करकमलों से जैन दीक्षा ग्रहण करेंगे। शिवपुरी में हितेश भाई संत आदर्श सागर जी महाराज के टोले के साथ आए हुए हैं। 

जहां वह प्रतिदिन धार्मिक क्लास लेकर धर्मप्रेमियों को जैन धर्म के सिद्धांतों से अवगत करा रहे हैं। वह तमाम सुख सुविधाएं होने के बावजूद भी सन्यास क्यों ग्रहण कर रहे हैं, इस सवाल का वह दो टूक जबाव देते हैं कि जीवन में सुख पाने की इच्छा ने उन्हें संत बनने के लिए प्रेरित किया। हितेश भाई बताते हैं कि 30 साल की जिंदगी में उन्होंने सांसरिक रूप से बहुत कुछ पाया। 

टैक्स कंसलटेंट से लेकर फिलोस्पी को कैरियर बनाकर करोड़ों रूपए कमाए। लेकिन फिर भी मन में बैचेनी और उद्धग्रिता रही। तनाव बार-बार मन को घेरता रहा। गुस्से से मुक्ति नहीं मिली। इससे लगा कि भौतिक उपलब्धियों में सच्चा सुख नहीं है और सच्चा सुख पाने की इच्छा से वह धर्म क्षेत्र की ओर अग्रसर हुए। इस संवाददाता से चर्चा करते हुए हितेश भाई ने अपने मन की एक-एक बात स्पष्ट की। 

जैन उपासरे में प्रसिद्ध जैन संत आदर्श रत्न सागर जी महाराज के शिष्य श्री अक्षत सुरिश्वर जी महाराज के समक्ष अपने मन के उदगार व्यक्त करते हुए वह कहते हैं कि भगवान बुद्ध को बुढापा और मृत्यु देखकर जीवन की असारता का बोध हुआ। उन्हें बोध तब हुआ जब उन्होंने देखा कि सबकुछ होने के बाद भी जीवन में तनाव होता है और क्रोध से मुक्ति नहीं मिलती है। 

इससे मन में बचपन से ही सच्चा सुख पाने की भावना थी कि आखिर कोई न कोई रास्ता ऐसा होगा जो हमें सच्चा सुख दे सके। वह बताते हैं कि जब वह कक्षा 12 में पढ़ते थे, तो उन्होंने जैनाचार्य श्री नवरत्न सागर जी महाराज के दर्शन किए और उन्हें अपने मन की जिज्ञासा से अवगत कराया। इस पर आचार्य नवरत्न सागर जी महाराज ने कहा कि उन्हें जैन दर्शन के ग्रंथों का अध्यनन करना चाहिए।

इस पर उन्हें जैन ग्रंथों का अध्यन करने की प्रेरणा मिली। उन्होंने समरादित्य महाकथा ग्रंथ का स्वाध्याय किया तो इसमें बताया गया था कि किस तरकीब से क्रोध का शमन किया जा सकता है और सार यह था कि बिना साधु बने सुख संभव नहीं है। असली सुख भोग में नहीं त्याग में है। इससे जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल गईं। 

इसी कारण हितेश भाई ने जैनालॉजी में बीकॉम किया और फिर फिलोस्पर बन गए। अब मैं संसार में तो था, लेकिन संसार से दूरी भी बनी हुई थी। जैसे कीचड़ में कमल की स्थिति है, लगभग वहीं स्थिति हो गई थी। धीरे-धीरे जैन संतों से लगातार सम्पर्क और सानिध्य बना रहा। जिससे वैराग्य की भावना दिन प्रतिदिन प्रबल होती गई। 

अपने दायित्व निर्वहन की दृष्टि से दुबई आदि देशों की सरकार के आग्रह पर मैं वहां गया और मैंने कक्षा 5 से लेकर 80 वर्ष तक के वृद्ध व्यक्तियों को ऑनलाईन दर्शनशास्त्र पढ़ाना शुरू कर दिया। हितेश भाई यह तो स्पष्ट नहीं करते कि उनका इस काम का सालाना पैकेज क्या था। 

लेकिन यह अवश्य बताते हैं कि दुबई में वह मकान किराए के रूप में प्रतिवर्ष 40 लाख रूपया भुगतान करते थे। इससे समझा जा सकता है कि दर्शन शास्त्र के अध्यापक के रूप में उनका सालाना पैकेज एक करोड़ रूपए से कम कतई नहीं होगा। जब आचार्य नवरत्न सागर जी महाराज का देवलोक गमन हुआ तो हितेश भाई उनके शिष्य आदर्श रत्न सागर जी महाराज के सम्पर्क में आए और उनके समक्ष दीक्षा लेने की भावना प्रकट की। 

जैन संत का कहना था कि बिना परिजनों की इच्छा के वह दीक्षा नहीं देंगे। हितेश भाई ने अपने माता-पिता भागचंद जी और चम्पा बहन को दीक्षा की अनुमति देने के लिए कहा। लेकिन प्रत्येक माता पिता को लगता है कि वह अपने पुत्र को आईएएस, आईपीएस, डॅाक्टर और इंजीनियर बनाए। अपने पुत्र को संत बनाना कौन चाहता है। 

भगवान महावीर को भी माता-पिता ने दीक्षा की अनुमति कहां दी थी। जिस तरह से भगवान महावीर घर में रहकर भी वीराने हो गए। ठीक उसी तरह की स्थिति हितेश भाई की हुई। संसार में तो वह थे। लेकिन संसार से आत्मिक रूप से दूर भी चले गए थे। धीरे-धीरे माता-पिता को भी लगा कि उनका पुत्र अब इस दुनिया का नहीं रहा है। इसलिए उन्होंने सहमति दे दी। 

लेकिन अपने पारिवारिक दायित्वों को निभाने की चिंता भी हितेश भाई में थी और उन्होंने अपनी दीक्षा को भाई के लिए नया मकान दिलाने तक स्थगित रखा। इसके बाद वह सब कुछ छोड़कर गुरूचरणों में समर्पित हो गए और अब उनका लक्ष्य मौक्ष मार्ग है। हितेश भाई कहते हैं कि यही जीवन का चरम मार्ग है और इसीलिए जन्म लिया जाता है। 

14 जनवरी को दीक्षार्थी के माता-पिता उन्हें करेंगे गुरूचरणों में समर्पित 

13 जनवरी को हितेश भाई के माता-पिता शिवपुरी आ रहे हैं और वह 14 जनवरी को महा मांगलिक के अवसर पर अपने पुत्र को गुरूचरणों में समर्पित करेंगे और इस अवसर पर संत आदर्श रत्न सागर जी महाराज दीक्षा का मुर्हुत भी निकालेंगे। इस क्षण की दीक्षार्थी हितेश भाई काफी उत्सुकता से प्रतिक्षा कर रहे हैं।
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