सहस्त्रबाहु अर्जुन जंयती पर कोरोना का ग्रहण, नहीं हुए कार्यक्रम, माल्यापर्ण कर वितरित किया प्रसाद - Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। शिवहरे एवं कल्चुरी समाज के कुलप्रवर्तक राजराजेश्वर भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन की जयंती आज समाजबुधंओं ने बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाई। हालांकि कोविड-19 के चलते प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया गया। जयंती के अवसर पर भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन चौराहा न्यू ब्लॉक हंसबिल्डिंग पर भगवान की प्रतिमा पर समाज के अध्यक्ष डॉ. रामकुमार शिवहरे ने माल्यापर्ण किया और समाज के वरिष्ठजनों और पदाधिकारियों के साथ सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए भगवान की आरती कर प्रसाद का वितरण किया गया।

प्रतिवर्ष समाज के लोग बड़ी संख्या में कार्यक्रम में सम्मलित होते थे। वहीं समाज का अन्नकूट कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता था। इस दौरान भजन संध्या के कार्यक्रम की प्रस्तुती भी स्थानीय कलाकारों द्वारा दी जाती थी। लेकिन इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते इस तरह के कोई भी कार्यक्रम आयोजित न करने का निर्णय समाजबंधुओं द्वारा लिया गया और समाजजनों ने अपने आराध्य देव की आराधना की। जयंती के अवसर पर शिवहरे समाज के जिलाध्यक्ष डॉ. रामकुमार शिवहरे ने समाजबंधुओं को भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन जयंती की शुभकामनाएं दी और अपील की कि वह कोविड के नियमों का पालन कर अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा करें।


धर्म रक्षार्थ और क्षत्रियों के उत्थान का प्रतीक है भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन जयंती
सहस्रार्जुन जयंती क्षत्रिय धर्म की रक्षा और क्षत्रियों के उत्थान के लिए मनाई जाती है। साहस्त्रबाहु के बल और शौर्य की अनेकों गाथाएं भी लिखी गई हैं। कार्तिक शुक्ल के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सहस्रबाहु जयंती मनाई जाती है। इस बार सहस्त्रबाहु जयंति 21नवंबर को है। भागवत पुराण में भगवान विष्णु व लक्ष्मी  द्वारा सहस्रबाहु महाराज की उत्पत्ति की जन्मकथा का वर्णन है।

साथ ही साहस्त्रबाहु  जी के बल और शौर्य की गाथाएं भी लिखी गई हैं। सहस्त्रबाहु  जी ने भगवान की कठोर तपस्या करके 10 वरदान प्राप्त किए थे। इसके बाद उन्होंने चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि धारण कर ली। सहस्त्रबाहु जी  को भगवान विष्णु का 24वें अवतार माना गया है। चंद्रवंशी क्षत्रियों में हैहय वंश सर्वश्रेष्ठ उच्च कुल का क्षत्रिय माना गया है। चन्द्र वंश के महाराजा कृतवीर्य जी  के पुत्र होने के कारण उन्हें कार्तवीर्य-अर्जुन भी कहा जाता है।

उनका जन्म महाराज हैहय की 10वीं पीढ़ी में माता पद्मिनी के गर्भ से हुआ है। सह्सत्रबाहु जी का जन्म नाम एकवीर तथा सहस्रार्जुन भी है। सह्सत्रबाहु जी भगवान दत्तात्रेय जी के भक्त थे और भगवान दत्तात्रेय की उपासना करने पर उन्हें सहस्र भुजाओं का वरदान मिला था इसीलिए उन्हें सहस्रबाहु अर्जुन के नाम से भी जाना जाता है। महाभारत, वेद ग्रंथों तथा कई पुराणों में सहस्रबाहु की कई कथाएं उनके शोर्य गाथा बताती हैं।

पौराणिक ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार कार्तवीर्य अर्जुन के हैहयाधिपति, सहस्रार्जुन, दषग्रीविजयी, सुदशेन, चक्रावतार, सप्तद्रवीपाधि, कृतवीर्यनंदन, राजेश्वर आदि कई नाम होने का वर्णन मिलता है। सहस्रार्जुन जयंती क्षत्रिय धर्म की रक्षा और क्षत्रियों के उत्थान के लिए मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार प्रतिवर्ष सहस्रबाहु जयंती कार्तिक शुक्ल सप्तमी को दीपावली के ठीक बाद मनाई जाती है। इसका हिंदू धर्म में बहुत महत्व है।
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