शिवपुरी। आज बुधवार को देव उठनी एकादशी मनाई जा रही है। पद्म और विष्णु पुराण के अनुसार आज ही के दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं। आज शाम को भगवान विष्णु का शालिग्राम के रूप में देवी तुलसी के साथ विवाह कराने की परम्परा है और यह परम्परा युगों से चली आ रही है।
तुलसी विवाह के साथ ही विवाहों पर लगी रोक हट जाती है और मांगलिक कार्यक्रमों का शुभारंभ हो जाता है। शाम को गोधूलि वेला में शालिग्राम और तुलसी विवाह घर-घर किया जाएगा। जहां देव उठो हर-हर बोलों के स्वर गुंजाएमान होंगे। तुलसी विवाह के समय गन्नों का मंडप बनाया जाएगा। जिसमें घंटे और शंखों की ध्वनि के साथ भगवान विष्णु को निंद्रा से उठाकर विवाह कराया जाएगा।
शिव पुराण- चार महीने योग निद्रा से जागते हैं भगवान विष्णु
शिवपुराण के मुताबिक, भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को मारा था। भगवान विष्णु और दैत्य शंखासुर के बीच युद्ध लंबे समय तक चलता रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु बहुत अधिक थक गए। तब वे क्षीरसागर में आकर सो गए।
उन्होंने सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव को सौंप दिया। इसके बाद कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी को जागे। तब शिवजी सहित सभी देवी-देवताओं ने भगवान विष्णु की पूजा की और वापस सृष्टि का कार्यभार उन्हें सौंप दिया। इसी वजह से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है।
वामन पुराण- 4 महीने पाताल में रहने के बाद क्षीर सागर लौटते हैं भगवान
वामन पुराण के मुताबिक, भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी थी। उन्होंनें विशाल रूप लेकर दो पग में पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरा पैर बलि ने अपने सिर पर रखने को कहा। पैर रखते ही राजा बलि पाताल में चले गए।
भगवान ने खुश होकर बलि को पाताल का राजा बना दिया और वर मांगने को कहा। बलि ने कहा आप मेरे महल में निवास करें। भगवान ने चार महीने तक उसके महल में रहने का वरदान दिया। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी तक पाताल में बलि के महल में निवास करते हैं। फिर कार्तिक महीने की इस एकादशी पर अपने लोक लक्ष्मीजी के साथ रहते हैं।
शिवपुराण- वृंदा के श्राप से भगवान विष्णु बने पत्थर के शालिग्राम
इस साल देवउठनी एकादशी 25 नवंबर को पड़ रही है। इस दिन तुलसी विवाह की भी परंपरा है। भगवान शालिग्राम के साथ तुलसीजी का विवाह होता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसमें जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा नामक अपनी भक्त के साथ छल किया था।
इसके बाद वृंदा ने विष्णु जी को श्राप देकर पत्थर का बना दिया था, लेकिन लक्ष्मी माता की विनती के बाद उन्हें वापस सही करके सती हो गई थीं। उनकी राख से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ और उनके साथ शालिग्राम के विवाह का चलन शुरू हुआ।
त्योहार में बदलाव
दीपक और रंगोली- समय के साथ इस पर्व में बदलाव होने लगा है। पहले धनतेरस से देव दीपावली तक (करीब 18 दिन) रोज आंगन में रंगोली बनाने के साथ दीए लगाए जाते थे। अब नौकरी और बिजनेस की व्यस्तता के चलते अब दीपावली के पांच दिन, फिर देवउठनी एकादशी पर और फिर कार्तिक पूर्णिमा पर दीपक जलाए जाते हैं। इस तरह ये त्योहार 7 दिनों में ही सिमट कर रह गया है।
तुलसी विवाह- पहले तुलसी विवाह पर्व पर पूरे दिन भगवान शालग्राम और तुलसी की पूजा की जाती थी। परिवार सहित अलग-अलग वैष्णव मंदिरों में दर्शन के लिए जाते थे। तुलसी के 11, 21, 51 या 101 गमले दान किए जाते थे और आसपास के घरों में तुलसी विवाह में शामिल होते थे। इसके बाद पूरी रात जागरण होता था।
देव प्रबोधिनी- देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु 4 महीने की योगनिद्रा से जागते हैं। इस परंपरा में पहले पंडितजी घर-घर जाकर भगवान विष्णु की पूजा कर के मंत्रोच्चार से भगवान को जगाते थे, लेकिन आजकल ये परंपरा नहीं है। घर के लोग ही भगवान की सामान्य पूजा के साथ गरुड़ घंटी बजाकर भगवान को जगाते हैं।