विनेगा आश्रम के प्रमुख संत बज्रानंदजी दिव्य ज्योति में विलीन, अंतिम संस्कार कल होगा / Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। शिवपुरी के प्रसिद्ध आश्रम विनेगा आश्रम के प्रमुख संत बज्रानंद जी महाराज का आज देर रात दिव्य ज्योति में लीन हो गए। संत महाराज की इस ज्योतिलीन खबर के बाद शहर में उनके भक्तो में शोक का महौल है। पिछले दो माह से जीवन और मौत से संघर्ष कर रहे संत बज्रानंदजी ने 22 और 23 मई की दरमियानी रात लगभग 1 बजे एमएम हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। पैरालायसिस अटैक से प्रभावित संत बज्रानंदजी का इलाज एक माह से अधिक समय तक दिल्ली के मैक्स हॅास्पिटल में चला। 

जहां उन्हें एयरलिफ्ट कर ले जाया गया था। लेकिन वहां उनके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ। इसके पश्चात उन्हें शिवपुरी के एमएम हॉस्पिटल के आईसीयू में भर्ती कराया गया। पिछले एक माह से उनके स्वास्थ्य में लगातार उतार चढ़ाव आ रहे थे और उनके अनुयायियों को आशा थी कि उनकी प्रार्थनाएं असर करेंगी और महाराज जी पूरी तरह से स्वस्थ्य हो जाएंगे।

लेकिन विधि को कुछ और ही मंजूर था। देर रात्रि उन्होंने अंतिम सांस ली और इस नश्वर शरीर को त्यागकर ब्रह्मलीन हो गए। संत बज्रानंदजी लगभग 65 वर्ष के थे और उनका पार्थिव शरीर आज विनेगा आश्रम में अंतिम दर्शनों के लिए रखा गया है। अंतिम संस्कार कल सुबह विनेगा आश्रम में होगा।

संत बज्रानंदजी बचपन से ही ईश्वर के उपासक थे। वह उत्तरप्रदेश के रहने वाले थे और साधु संतों की संगत के कारण उनके जीवन की दशा पहले से ही तय हो गई थी। बताया जाता है कि वह एक बड़े कास्तकार के इकलौते पुत्र थे। लेकिन सांसारिकता से उनको कभी लगाव नहीं रहा।

छात्र जीवन में अध्ययन करने के बाद वह पूरी तरह आध्यात्म जीवन मेें रंग गए और उन्होंने नर्मदा की भी परिक्रमा कई बार की। इसके बाद वह देश के जाने माने संत और यर्थाथ गीता के रचियता स्वामी अडग़ड़ानंदजी महाराज के सम्पर्क में आए और यह सानिध्य इतना गहरा और प्रभावी रहा कि वह दुनिया छोड़कर उनके पलवल स्थित घोड़ी आश्रम में जम गए।

शिवपुरी के विनेगा आश्रम में वह लगभग 21 वर्ष पूर्व आए। विनेगा आश्रम की स्थापना संत अडग़ड़ानंदजी के शिष्य संत निगमानंदजी नन्ने महाराज ने की थी। लेकिन 1996 में उनके देवलोक गमन के बाद आश्रम की व्यवस्था के लिए संत बज्रानंदजी को शिवपुरी भेजा गया।

संत बज्रानंदजी शांत प्रकृति के और अनुशासन को पसंद करने वाले संत थे। निष्काम कर्मयोग में उनका अटूट विश्वास था। अपने गुणों के कारण संत बज्रानंदजी के अनुयायियों की संख्या बहुत बढऩे लगी थी और इसके साथ ही आश्रम के कार्य में भी गति आने लगी थी।

विनेगा आश्रम आज जिस सुंदर और रमणीय रूप में नजर आता है वह संत बज्रानंदजी की मेहनत का परिणाम है। उन्होंने अपने भक्तों को हमेशा अनुशासित रहने का संदेश दिया। अपने प्रवचनों में वह प्राचीन भारत के गौरव का बखान करते थे और बताते थे कि अपनी संस्कृति और संस्कारों को बढ़ाकर ही भारत अपने पुराने गौरव को प्राप्त कर सकता है।

उनके कार्यकाल में आश्रम में अनेक धार्मिक गतिविधियां हमेशा संचालित होती रहती थी। 5 मई को प्रतिवर्ष उनके निर्देशन में आश्रम में नन्ने महाराज की स्मृति में विशाल भंडारा होता था। जिसमें 50 हजार से लेकर 1 लाख तक लोग जुड़ते थे और भंडारे के साथ-साथ सत्संग का लाभ भी प्राप्त करते थे।

इस अवसर पर देश के जाने माने संत अपने प्रवचन से भक्तों को कृतार्थ करते थे।  उनके परम भक्त विजय शर्मा बताते हैं कि जब कभी भी उन पर विपत्ति के बादल मंडराते थे तो महाराज जी पहले से उन्हें सचेत कर देते थे, जिससे बड़ी से बड़ी विपत्ति भी उनका बाल भी बांका नहीं कर पाई। इस संदर्भ में विजय शर्मा ने अनेक किस्से सुनाए।

महाराज श्री के देवलोक गमन पर वह बहुत भावूक हैं और उनके अश्रु थमने का नाम नहीं ले रहे। संत बज्रानंदजी का अंतिम संस्कार कल 24 मई को सुबह 7 बजे विनेगा आश्रम पर होगा । अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए कई संत शिवपुरी आ रहे हैं। जिनमें श्रीराम बाबा आदि प्रमुख हैं।
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