मेडीकल कॉलेज तो बन गया, परंतु यहां न CBC की जांच और न ही कल्चर,आखिर क्या कर रहा है स्वास्थ्य विभाग

Bhopal Samachar

शिवपुरी। खबर जिले के सबसे बडे या यू कहे हाल की में अरवों रूपए की लागत से बने मेडीकल कॉलेज से आ रही है। जहां करोडों खर्च करने तो प्रशासन के पास पैसा है। परंतु छोटी छोटी आवश्यकताओं के लिए मरीजों को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। इस समय हालात यह है कि जिले में स्वास्थ्य व्यवस्थ्याए पूरी तरह चित है। उसके बाबजूद भी कोई भी इनका धनी धोरी बनने तैयार नहीं है।

एक ओर जहां डॉक्टर वैकल्पिक दवाओं के सहारे मरीजों का इलाज कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर लेबोरेटरी में मरीजों की जांच उपलब्ध नहीं हो पा रही है। जहां इलाज की चाह में आने वाले मरीजों को सीबीसी और कल्चर जैसी महंगी जांचे बाजार से करवानी पड़ रही हैं। कई गरीब मरीज तो पैसे के अभाव में इन जांचों को करा ही नहीं पा रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि शासन ने जिला अस्पताल में लगभग सभी प्रकार की लैबोरेट्री जांच नि:शुल्क मुहैया कर रखी है,परंतु हालात यह है कि 15 दिन से अधिक समय में जिला अस्पताल की लैबोरेट्री में ना तो सीबीसी जैसे महत्वपूर्ण जांच हो रही हैं और ना ही कल्चर संबंधी जांचों की कोई व्यवस्था है।

दर्जनों मरीजों द्वारा हर रोज जांच वाहर से करानी पड़ रही है और जब इस संबंध में पड़ताल शुरू की तो पता चला कि जिस अस्पताल में सीबीसी की जांच में उपयोग किए जाने वाला रिएजेंट खत्म हो चुका है जिसके कारण यह जांच नहीं की जा रही है।

इसके अलावा कल्चर जांच ना होने के संबंध में जानकारी जुटाई तो पता चला कि अस्पताल का फ्रिज खराब होने के कारण यहां जांच नहीं हो पा रही है क्योंकि विशेषज्ञों द्वारा जो टेस्ट लगाए जाते हैं उसके लिए 4 डिग्री तक का टेंपरेचर सेट किया जाता है, क्योकि 'अच्छी देख—रेख के चलते फ्रिज खराब है' इसलिए यह जांचें नहीं हो पा रहा है।

बता दें कि कल्चर जांच लगभग में दर्जनभर प्रकार की होती है, जिसमें यूरिन कल्चर, पस कल्चर, थ्रोटसोप कल्चर, ब्लड कल्चर, स्पूटम कल्सर आदि जांचे होती हैं। यह जांच डॉक्टर उस समय करवाता है जब मरीज को किसी दवा से फायदा नहीं होता कल्चर जांच से बीमारी के कीटाणु का पता चल जाता है और डॉक्टर यह तय कर पाता है कि मरीज को कौन सी दवा दी जानी चाहिए ताकि मरीज की बीमारी सही हो सके।

बाजार में कल्चर जांच के 400 से 500 रूपय लिए जाते हैं, वही सीबीसी टेस्ट से हमारे खून में कोशिकाओं विशेष रूप से लाल रक्त कोशिकाओं, प्लेटलेट्स, श्वेत रक्त कोशिकाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इससे एनीमिया इंफेक्शन या ल्यूकेमिया जैसी गंभीर बीमारियों का भी पता लगाया जा सकता है। इससे डॉक्टर यह तय कर पाता है कि मरीज को किस प्रकार की दवाई देना है।

बाजार में सीबीसी जांच के 120 से 150 सौ रुपए लिए जाते हैं, बात अगर जिला अस्पताल में होने वाली जांच की करें तो यह हर रोज औसतन दर्जनभर से अधिक कल्चर जांच लिखी जाती हैं। जो लोग बाजार से इस जांच को नहीं कराते हैं उनका इलाज नीम हकीम खतरे में जान के तर्ज पर चलता रहता है और उसे लंबे समय तक उपचार होने के बाद भी लाभ नहीं मिलता।

इस मामले पर डॉक्टर एमएल अग्रवाल, सिविल सर्जन जिला अस्पताल का कहना है कि उनके पास सिर्फ इमरजेंसी स्टाफ है, जिसके उपयोग वह आईपीडी के मरीजों के लिए कर रहे हैं, ओपीडी के मरीजों को यह सुविधा उपलब्ध कराने के लिए वह आज ही ऑर्डर कर रहे हैं कल्चर जांच नहीं होने की जानकारी उन्हें नहीं है वह इसके बारे में पता करेंगे।

वहीं मरीजों का कहना है कि डॉक्टर अस्पताल में सीबीसी जांच लिख तो रहे हैं लेकिन अस्पताल में सीबीसी जांच की कोई व्यवस्था नहीं है। इसलिए उन्हें वाहर से ही सीबीसी जांच करानी पड़ रही है।


यह समझ से परे है कि आखिर जिम्मेदार ऐसा खिलबाड मरीजों के साथ क्यों कर रहे है। क्या उन्हें पता ही नहीं कि अस्पताल में सीबीसी जांच नहीं हो रही है। फिर भी वह जांच के लिए मरीजों को बाहर का रास्ता दिखा कर सीबीसी जांच कराने के लिए कह रहे हैं।

सूत्रों की माने तो कुछ डॉक्टरों ने पैथलोजी संचालकों से कमीशन फिक्स कर रखा है। जिसके चलते अपने कमीशन के फैर में यह बाहर की जांच लिखाकर मरीजों को चूना लगाने में जुटे हुए है। ऐसा नहीं है कि इस व्यवस्था की सूचना किसी को भी नहीं थी। कई बार मीडिया में छपने और दिखाने के बावजूद भी अस्पताल में कहीं ना कहीं चूक हो ही रही। 
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