इस कारण मनाई जाती है देवउठनी ग्यारस, शादी विवाह ओर मांगलिक कार्यक्रमो के द्धार खुले

Bhopal Samachar

शिवपुरी। हमारे सनातन हिंदू धर्म में देवउठनी ग्यारस बहुत महत्वपूर्ण हैं। या यू कह लो के सृष्टि के संचालन में भी देवउठनी ग्यारस का अपना महत्वूर्ण योगदान हैं। यह एकादशी 24 एकादशियों में सबसे अधिक लाभकारी होती हैं और देवउठनी एकादशी में भगवान श्री विष्णु निद्रा से जागते हैं और तुलसी से उनका विवाह होता हैं। इस कारण आज से शादी विवाह का श्रीगणेश हो जाता हैं।

तो आइए जानते हैं देवउठनी एकादशी की कथा.
प्राचीन काल में जलंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ़ बड़ा उत्पात मचा रखा था. वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था. उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह विजयी बना हुआ था जलंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गए तथा रक्षा की गुहार लगाई। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया।

उन्होंने जलंधर का रूप धर कर छल से वृंदा का स्पर्श किया। वृंदा का पति जलंधर, देवताओं से पराक्रम से युद्ध कर रहा था लेकिन  वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया, जैसे ही वृंदा का सतीत्व भंग हुआ। जलंधर का सिर उसके आंगन में आ गिरा, जब वृंदा ने यह देखा तो क्रोधित होकर जानना चाहा कि फिर जिसे उसने स्पर्श किया वह कौन है।

सामने साक्षात विष्णु जी खड़े थे। उसने भगवान विष्णु को शाप दे दिया, 'जिस प्रकार तुमने छल से मुझे पति वियोग दिया है, उसी प्रकार तुम्हारी पत्नी का भी छलपूर्वक हरण होगा और स्त्री वियोग सहने के लिए तुम भी मृत्यु लोक में जन्म लोगे' यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई, वृंदा के शाप से ही प्रभु श्रीराम ने अयोध्या में जन्म लिया और उन्हें सीीता वियोग सहना पड़ा। जिस जगह वृंदा सती हुई वहां तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ।

लेकिन इस कथा में वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के बनोगे. यह पत्थर शालिग्राम कहलाया। विष्णु ने कहा, 'हे वृंदा! मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूं लेकिन तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी। 

जो मनुष्य कार्तिक एकादशी के दिन तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी' बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती है. शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का ही प्रतीकात्मक विवाह माना जाता है।

मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं, इसीलिए देवोत्थान एकादशी पर भगवान हरि के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है।

यह है देवउठनी ग्यारस की पूजा विधि
प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और उनसे जागने का आह्वान किया जाता है। इस दिन होने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं-

इस दिन प्रातःकाल उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए। घर की सफाई के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाना चाहिए।

एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल,मिठाई,बेर,सिंघाड़े,ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर उसे डलिया से ढांक देना चाहिए। इस दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाना चाहिए। रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्य को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का पूजन करना चाहिए। इसके बाद भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए और ये वाक्य दोहराना चाहिए- उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास।


 शिवपुरी में ऐसे मनेगी देवउठनी ग्यारस
देवउठनी एकादशी पर 8 नवंबर को मंदिरों में देव जागरण होगा। देव उठनी एकादशी के लिए मंदिरों में तैयारियां शुरू हो गई है। देव उठने के साथ ही शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाएगी। शहर में इस दिन तुलसी-सालिगराम का विवाह होगा। इस उपलक्ष्य में कई जगह आयोजन होंगे।

12 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के मुख्य स्नान पर्व पर रामेश्वर धाम में तीन दिवसीय मेला लगेगा। बड़ौदा क्षेत्र के ध्रुवकुंड पर भी परंपरागत मेला लगेगा।


देवउठनी एकादशी पारणा मुहूर्त :06:38:39 से 08:49:07 तक 9, नवंबर कोअवधि :2 घंटे 10 मिनट







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