आप नहीं जानते आपका बच्चा शिक्षित तो हो रहा है लेकिन कम्पलीट ऐजूकेशन से वचिंत हैं: शिक्षाविद ऋषि पांडे

Bhopal Samachar
शिवपुरी। आपका बच्चा स्कूल में जाकर शिक्षित तो हो रहा हैं,लेकिन कम्प्लीट ऐजूकेशन से वचिंत हो रहा है। आज शिक्षा के मायने बदले हैं। हमारी संस्कृति में कई तरह की शिक्षाए दी जाती थी,जिसे हम पूर्ण शिक्षा कहते थे। आज की भाषा में हम कम्पलीट ऐजूकेशन कह सकते हैं। यह कहना हैं ऋषिकुल ग्लोवल पब्लिक स्कूल के डारेक्टर ऋाषि पांडे का।

शिवपुरी समाचार डॉट कॉम की संवाददाता खूशबू शिवहरे ने ऋषिकुल स्कूल के डारेक्टर से उनके स्कूल और और उसके शिक्षा पद्धति के विषय में बातचीत की। इस बातचीत को पढने से पूर्व आइए ऋाषि पांडे का पूरा परिचय करते हैं। 
नाम: ऋाषि पांडे 
पिता का नाम: श्री महेश पाडे
 मॉ: डॉ सुषमा पाण्डे 
शिक्षा: MECHANICAL ENGINEER, MSc, Bed
संस्था का नाम: ऋषिकुल ग्लोवल पब्लिक स्कूल शिवुपरी।

इस बातचती में शिक्षाविद ऋाषि पांडे से पूछा गया कि आप शिक्षा के क्षेत्र में क्यो आए तो उन्होने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में आने का कारण मेरी नानी रही हैं। लोगो के रगो मे खून बहाता हैं मेरी नानी की नसो में शिक्षा बहती थी। मेरी नानी श्रीमति रमा त्रिवेदी ने आजाद से पूर्व 10 क्लास कर लिया था।

उन्होने इंग्लिश,संस्कृत और हिन्दी से एमए किया था। वे उनका रिटायर्डमेंट डिप्टी डारेक्टर शिक्षा विभाग से हुआ था। आजादी के बाद उनकी नौकरी भिंड के एक गांव में एक स्कूल में शिक्षक के रूप में लगी। उस समय जब महिला घर से बहार नही निकलती थी वह स्कूल में पढाने जाती थी,इसका बहुत विरोध हुआ पर उन्होने हार नही मानी घूघट करके बच्चे को पढाती हैं।

जीवाजी विश्वविधालय ग्वालियर में संस्कृत में सबसे अधिक अंक देने वाले को गोल्ड मेडल दिया जाता हैं यह गोल्ड मेडल श्रीमति रमा त्रिवेदी के नाम से दिया जाता हैं। मैं अपनी नानी जो मेरी नजर में शिेक्षामुर्ति थी उनके शिक्षा के प्रति समर्पण को देखकर शिक्षा के क्षेत्र में आया हूॅ।

ऋाषि पांडे से पूछा गया कि आपके स्कूल में ऐजूकेशन का स्टेक्चर क्या हैं ऋाषि ने बताया कि हम अपने स्कूल में बच्चो को कंपलीट ऐजूकेशन देने का प्रयास कर रहे हैं। जिससे उसके पूरे व्यक्त्तिव का निर्माण हो सके। हम हाई क्लास ऐजूकेशन के साथ पर्यावरण की उपयोगिता,हमारी संस्कृति और विरासत को जानने पहचाने के लिए भी प्रेरित करते हैं,जिससे उसमें हमारी संस्कृति के मानव धर्म के गुण भी विकसित हो सके उनके बल के आधार पर वह अपने जीवन के टारगेटो को पूर्ण कर सके।

इस टारगेट को अचीव करने की परेशानी में ऋषि ने कहा कि वर्तमान समय में जो पैरेंटस है उनकी सोच केवल एक ओर है कि सिर्फ ब्रांड वाले स्कूल में ही हमारे बच्चो का भविष्य वेहतर हो सकता हैं,लेकिन पैरेंटस यह नही समझते कि वह अपने बच्चो के जीवन से क्या वचिंत कर रहे हैं,उनके बच्चे क्या मिस कर रहे हैं। जब दुनिया में लोग अशिक्षित थे तब भारतीय ने चांद तारो की दूरी की गणना उंगलियो से गिनकर कर ली थी।

बच्चो में इंग्लिश का ज्ञान होना कम्पलीट ऐजूकेशन नही हो सकती हैं। इंग्लिश तो जीवन यापन में सहायक हो सकती हैं। लेकिन व्यवारिक भाषा हमारी हिन्दी ही हैं और हमारी हिन्दी भाषा भावो को प्रकट करती है। कुछ स्कुल इंग्लिश के नाम पर आपके बच्चे की विचार धारा का परिवर्तन कर रहे हैं जो अपने समाज और राष्ट्र के लिए आगे चलकर घातक होगा।

अपनी सफलता के विषय पर ऋषि पांडे ने कहा कि सफलता शब्द हमारी सोच हैं,सफलता की कोई परिभाषा नही हैं। आप अपने आप में कितने सफल है यह आप तय कर सकते हैं,लेकिन आपकी सफलता की परिभाषा समाज ही देगा। आप कितने अच्छे मानव है और आप अपने मानव धर्म पर चल रहे हैं कि नही। कार्य को मै सफलता नही मानता एक अच्छा मानव बनाना ओर मानव धर्म पर चलने को मैं सफलता मानता हूं।

किस्मत पर विश्वास करते हैं कि कर्म पर,इस प्रश्न के जबाब में ऋषि ने बताया कि 90 प्रतिशत कर्म पर और 10 प्रतिशत किस्मत पर। किस्मत मार्गदर्शन करती हैं अच्छे और बुरे का निर्णय बुद्धि् के द्वारा कराती हैं। लेकिन उस निर्णय पर आपको चलना होता हैं। आप अपने लक्ष्य तक एक कदम चलकर नही पहुंच सकते उसके लिए आपको एग्राग होकर निरतंर चलना होगा यह कर्म हैं।

अपन सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देते हुए कि मैं आज उन्ही के प्रयास ओर मार्गदर्शन में यहां तक पहुंचा हुं,उन्होने मुझे पढाया-लिखाया और भरोसा किया। अपने जीवन की दिशा चुनने की आजादी दी,और मेरे उस निर्णय पर भरौसा कर उस पर चलने  प्रेरणा दी।

किताबी शिक्षा और नैतिक शिक्षा में अंतर बताते हुए कहा कि मानव में नैतिक शिक्षा होना बहुत आवश्यक हैं। किताबी शिक्षा केवल जानकारी दे सकती हैं लेकिन नैतिक शिक्षा पूरा मानव शास्त्र हैं। हमे नैतिक शिक्षा मानव धर्म सीखाती है। अच्छे संस्कार,दूसरो की मदद करना यह हमे नैतिक शिक्षा ही देती हैं। मानव के प्रति मानव की मदद के अतिरिक्त हमारी संस्कृति को बचाना पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार बनाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी हैं।
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