शिवपुरी। शिवपुरी का मेडिकल कॉलेज लोगो को इलाज करने के बजाए आमजन को हवा में बीमारी दे रहा है,कॉलेज के कारण मवेशी भी बीमार होकर मौत का शिकार हो रहे है,हालाकि नगर पालिका इससे पूर्व मेडिकल कॉलेज को नोटिस दे चुकी है लेकिन कचरा प्रबंधन को लेकर मेडिकल कॉलेज लगातार लापरवाही बरत रहा है।
शिवपुरी मेडिकल कॉलेज से निकलने वाले बायोमेडिकल कचरे को पिछले कई सालों से खुले में डंप किया जा रहा है, जिससे मवेशियों और इंसानों में इंफेक्शन का खतरा बढ़ गया है। इस कचरे को न सिर्फ इंसान दो जून की रोटी के लालच में इकट्ठा कर रहे हैं, बल्कि मवेशी भी इसका सेवन करने में लगे हुए हैं।
खास बात यह है कि जो महिलाएं महीनों से इस कचरे का संधारण कर रही हैं, उन्हें मेडिकल कॉलेज के जिम्मेदारों ने निर्देशित किया है कि वह इस कचरे को आग लगा दिया करें। लेकिन मीडिया से चर्चा करते हुए प्रेम जाटव व रजको जाटव नाम की महिला ने स्वीकार की है। उनका कहना है कि वह मजबूरी के चलते पिछले छह-सात साल से इस कचरे को बीन-कर अपना गुजारा कर रही हैं।
मेडिकल कालेज ने खूंटी पर टांगा कानून
खास बात यह है कि बायोमेडिकल कचरे के निष्पादन के लिए एक निर्धारित कानून और प्रक्रिया है, परंतु इसके बावजूद भी मेडिकल कालेज द्वारा नियम और कानून को खूंटी पर टांग कर खुले में कचरे का निष्पादन करवाया जा रहा है। नियमों को खूंटी पर टांग कर सालों से कचरे के निष्पादन के बावजूद जिम्मेदार इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. डी. परमहंस ने मीडिया को बताया कि पहले जरूर हम कचरे को बाहर डंप कर रहे थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अगर अभी भी ऐसा कुछ है तो मैं दिखवा लेता हूं। वैसे मेरी जानकारी हम अब बाहर कचरा डंप नहीं कर रहे हैं, क्योंकि हमारा नपा से कान्टेक्ट हो चुका है।
हैं।
मेडिकल कालेज को नोटिस दे चुके हैं
नगर पालिका शिवपुरी के एसआइ योगेश शर्मा ने नईदुनिया को बताया कि मेडिकल कालेज द्वारा खुले में कचरा फेंकने के कारण हम उन्हें नोटिस दे चुके है,अभी हमारा मेडिकल कालेज से कोई कांटेक्ट नहीं हुआ है। अभी कचरा कलेक्शन की रेट को लेकर इश्यू है, लेकिन उम्मीद है जल्द ही यह इश्यू खत्म हो जाएगा। मेडिकल कालेज पर खुद का कचरा वाहन है, वह उस वाहन से कचरे को ट्रेंचिंग ग्राउंड तक भिजवा सकते हैं।
शिवपुरी मेडिकल कॉलेज से निकलने वाले बायोमेडिकल कचरे को पिछले कई सालों से खुले में डंप किया जा रहा है, जिससे मवेशियों और इंसानों में इंफेक्शन का खतरा बढ़ गया है। इस कचरे को न सिर्फ इंसान दो जून की रोटी के लालच में इकट्ठा कर रहे हैं, बल्कि मवेशी भी इसका सेवन करने में लगे हुए हैं।
खास बात यह है कि जो महिलाएं महीनों से इस कचरे का संधारण कर रही हैं, उन्हें मेडिकल कॉलेज के जिम्मेदारों ने निर्देशित किया है कि वह इस कचरे को आग लगा दिया करें। लेकिन मीडिया से चर्चा करते हुए प्रेम जाटव व रजको जाटव नाम की महिला ने स्वीकार की है। उनका कहना है कि वह मजबूरी के चलते पिछले छह-सात साल से इस कचरे को बीन-कर अपना गुजारा कर रही हैं।
मेडिकल कालेज ने खूंटी पर टांगा कानून
खास बात यह है कि बायोमेडिकल कचरे के निष्पादन के लिए एक निर्धारित कानून और प्रक्रिया है, परंतु इसके बावजूद भी मेडिकल कालेज द्वारा नियम और कानून को खूंटी पर टांग कर खुले में कचरे का निष्पादन करवाया जा रहा है। नियमों को खूंटी पर टांग कर सालों से कचरे के निष्पादन के बावजूद जिम्मेदार इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. डी. परमहंस ने मीडिया को बताया कि पहले जरूर हम कचरे को बाहर डंप कर रहे थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अगर अभी भी ऐसा कुछ है तो मैं दिखवा लेता हूं। वैसे मेरी जानकारी हम अब बाहर कचरा डंप नहीं कर रहे हैं, क्योंकि हमारा नपा से कान्टेक्ट हो चुका है।
हैं।
मेडिकल कालेज को नोटिस दे चुके हैं
नगर पालिका शिवपुरी के एसआइ योगेश शर्मा ने नईदुनिया को बताया कि मेडिकल कालेज द्वारा खुले में कचरा फेंकने के कारण हम उन्हें नोटिस दे चुके है,अभी हमारा मेडिकल कालेज से कोई कांटेक्ट नहीं हुआ है। अभी कचरा कलेक्शन की रेट को लेकर इश्यू है, लेकिन उम्मीद है जल्द ही यह इश्यू खत्म हो जाएगा। मेडिकल कालेज पर खुद का कचरा वाहन है, वह उस वाहन से कचरे को ट्रेंचिंग ग्राउंड तक भिजवा सकते हैं।