शिवपुरी। लंबे समय के बाद क्षेत्रीय विधायक और प्रदेश सरकार की मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के भागीरथ प्रयासों से अवरूद्ध विकास को एक नई गति मिली है। सिंध और सीवेज प्रोजेक्ट के गलत क्रियान्वयन से और केन्द्र तथा प्रदेश में भिन्न सरकार होने के कारण शिवपुरी शहर विकास से कोसों दूर पहुंच गया था।
एक समय अपनी सुंदरता और पर्यावरण के कारण शिवपुरी की जो पहचान थी, वह धीरे.धीरे समाप्त होती जा रही थी। नगर पालिका अध्यक्ष भी अयोग्य हाथों में जाने से रहा सहा विनाश भी पूरा हो गया। नगर पालिका के कर्ताधर्ताओं का पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ अपने विकास पर केन्द्रित हो गया था। इसकी पीड़ा मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के मन में भी है।
पिछले दिनों शिवपुरी में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में इशारे.इशारों में उन्होंने यह कहा कि नगर पालिका का पिछला कार्यकाल कैसा रहा मैं उसे न तो दोहराना चाहती और न ही याद करना चाहती हूं। उन्होंने कहा कि यदि योग्य व्यक्ति नगर पालिका अध्यक्ष बन जाएगा तो विकास की गति किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होगी।
यह सत्य भी है शिवपुरी की गरिमा को पुनः स्थापित करने के लिए योग्य नपाध्यक्ष का चयन आवश्यक है और यह भी लगभग तय है कि मार्च 2021 में नगरीय निकाय के चुनावों की अधिकृत घोषणा हो जाएगी। ऐसे में विभिन्न राजनैतिक दलों को पूरा ध्यान योग्य व्यक्तियों को अध्यक्ष तथा पार्षद पद के प्रत्याशियों को टिकट देने की ओर होना चाहिएए नहीं तो शिवपुरी पुनरू दुर्दशा की ओर अग्रसर हो सकता है।
हर बार नगर पालिका अध्यक्ष पद के चुनाव में प्रत्याशी चयन के समय यह बहस चलती है कि टिकट पार्टी किसे दे। नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए दूसरी बार सामान्य महिला अध्यक्ष चुनी जाएगी। ऐसी स्थिति में पहले भी यह बहस चलती रही है कि टिकट किसे दिया जाए। क्या पार्टी में सक्रिय महिला नेत्री को टिकट दिया जाए अथवा नेताओं को उपकृत कर उनकी पत्नियों और रिश्तेदार महिलाओं को टिकट दिया जाए।
निश्चित रूप से पहले कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों ने पार्टी मेें कार्यरत महिला कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर नेताओं की पत्नियों को दावेदार बनाया था। इसकी मीडिया में आलोचना भी हुई थीं। लेकिन इस चुनाव में महत्वपूर्ण यह नहीं है कि अध्यक्ष पद का टिकट पार्टी में कार्यरत महिला को दिया जाए या नेताओं की पत्नियों को।
जहां तक विकास की प्राथमिकता है, यह प्रश्र महत्वपूर्ण भी नहीं होना चाहिए। न ही यह सवाल किया जाना चाहिए कि टिकट समाज विशेष को दिया जाए। टिकट की सबसे पहली प्राथमिकता यह होना चाहिए कि ऐसे योग्य प्रत्याशी को टिकट मिले, जिसके लिए अपने विकास से अधिक महत्वपूर्ण शहर का विकास हो।
अपनी तिजोरी भरने और स्वार्थो को पूरा करने के लिए नगर पालिका अध्यक्ष का पद बिल्कुल नहीं है। नगर पालिका अध्यक्ष का पद जनता के प्रति दायित्वों और कर्तव्यों का पथ है। प्रत्याशी चयन के लिए पार्टी नेताओं को अपनी दूरदर्शिता और पारखी नजर का इस्तेमाल कर उम्मीदवार चुनना चाहिए।
प्रत्याशी चयन का फैलाव पार्टी के दायरे से बाहर निकलकर समाज के दायरे तक होना चाहिए। अच्छा व्यक्ति यदि गैर राजनैतिक हो तो इसमें दिक्कत क्या है। ऐसे व्यक्ति को मनाना भी पड़ सकता है। लेकिन शिवपुरी शहर के विकास के हित में ऐसे किये जाने में दिक्कत क्या है।
पिछले कुछ वर्षो का उदाहरण इस बात का साक्षी है कि शिवपुरी के विकास में अग्रणी भूमिका यशोधरा राजे सिंधिया ने निर्वहन की है। उन्हांने कितना किया या नहीं किया। यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि विकास में उनकी रूचि और ललक रही है। भले ही सफलता परिस्थितियों के कारण न मिली हो। लेकिन सिर्फ सफलता के पैमाने के आधार पर उनका मूल्यांकन किया जाना गलत है।
सिंध परियोजना के क्रियान्वयन के लिए उन्होंने जो मेहनत की उसे कौन भुला सकता है। लेकिन अब तो परिस्थितियां उनके अनुकूल हैं। केन्द्र और प्रदेश में भाजपा की सरकार काबिज है। वह स्वयं प्रदेश केबिनेट में मंत्री हैं और शिवपुरी विधायक हैं। ऐसे में शिवपुरी के विकास में नेतृत्व की कमान निश्चित रूप से वह ही संभालेंगी।
भाजपा में प्रत्याशी चयन में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रहने वाली है। भाजपा प्रत्याशी का चयन दो कसौटी के आधार पर किया जाना चाहिएए एक तो प्रत्याशी यशोधरा राजे के प्रति निष्ठावान हो और दूसरे उसकी स्वयं की कोई महत्वाकांक्षा न हो। शहर का विकास उसकी प्राथमिकता हो।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो उसका रास्ता वर्तमान परिस्थिति में एक दम से स्पष्ट भी नहीं है। हां भाजपा प्रत्याशी चयन में खामियाजी का फायदा उसे मिल सकता है। ऐसी प्रतिकूल स्थिति में नगर पालिका अध्यक्ष पद पर कांग्रेस अपनी मजबूत दावेदारी योग्य प्रत्याशी के चयन के आधार पर ही स्थापित कर सकता है।
सिंधिया राज परिवार के टकराव से मुक्त रहेगा चुनाव
अभी तक नगरीय निकाय चुनाव में सिंधिया राज परिवार का आपसी टकराव देखने को मिलता था। राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से लोकसभा सदस्य होते थे और यशोधरा राजे भाजपा की शिवपुरी विधायक। एक ओर ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रत्याशी कांग्रेस से चुनाव लड़ते थे, वहीं यशोधरा राजे भाजपा की कमान संभालती थीं।
केन्द्र और प्रदेश में अलग.अलग दलों की सत्ता होती थी। लेकिन अब ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा से हंै और कांग्रेस स्थानीय नेतृत्व विहीन है। केन्द्र और प्रदेश में भी कांग्रेस की सत्ता नहीं है। ऐसी स्थिति मेें पहली बार सिंधिया राज परिवार के टकराव से मुक्त रहेगा नगर पालिका चुनाव।
एक समय अपनी सुंदरता और पर्यावरण के कारण शिवपुरी की जो पहचान थी, वह धीरे.धीरे समाप्त होती जा रही थी। नगर पालिका अध्यक्ष भी अयोग्य हाथों में जाने से रहा सहा विनाश भी पूरा हो गया। नगर पालिका के कर्ताधर्ताओं का पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ अपने विकास पर केन्द्रित हो गया था। इसकी पीड़ा मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के मन में भी है।
पिछले दिनों शिवपुरी में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में इशारे.इशारों में उन्होंने यह कहा कि नगर पालिका का पिछला कार्यकाल कैसा रहा मैं उसे न तो दोहराना चाहती और न ही याद करना चाहती हूं। उन्होंने कहा कि यदि योग्य व्यक्ति नगर पालिका अध्यक्ष बन जाएगा तो विकास की गति किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होगी।
यह सत्य भी है शिवपुरी की गरिमा को पुनः स्थापित करने के लिए योग्य नपाध्यक्ष का चयन आवश्यक है और यह भी लगभग तय है कि मार्च 2021 में नगरीय निकाय के चुनावों की अधिकृत घोषणा हो जाएगी। ऐसे में विभिन्न राजनैतिक दलों को पूरा ध्यान योग्य व्यक्तियों को अध्यक्ष तथा पार्षद पद के प्रत्याशियों को टिकट देने की ओर होना चाहिएए नहीं तो शिवपुरी पुनरू दुर्दशा की ओर अग्रसर हो सकता है।
हर बार नगर पालिका अध्यक्ष पद के चुनाव में प्रत्याशी चयन के समय यह बहस चलती है कि टिकट पार्टी किसे दे। नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए दूसरी बार सामान्य महिला अध्यक्ष चुनी जाएगी। ऐसी स्थिति में पहले भी यह बहस चलती रही है कि टिकट किसे दिया जाए। क्या पार्टी में सक्रिय महिला नेत्री को टिकट दिया जाए अथवा नेताओं को उपकृत कर उनकी पत्नियों और रिश्तेदार महिलाओं को टिकट दिया जाए।
निश्चित रूप से पहले कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों ने पार्टी मेें कार्यरत महिला कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर नेताओं की पत्नियों को दावेदार बनाया था। इसकी मीडिया में आलोचना भी हुई थीं। लेकिन इस चुनाव में महत्वपूर्ण यह नहीं है कि अध्यक्ष पद का टिकट पार्टी में कार्यरत महिला को दिया जाए या नेताओं की पत्नियों को।
जहां तक विकास की प्राथमिकता है, यह प्रश्र महत्वपूर्ण भी नहीं होना चाहिए। न ही यह सवाल किया जाना चाहिए कि टिकट समाज विशेष को दिया जाए। टिकट की सबसे पहली प्राथमिकता यह होना चाहिए कि ऐसे योग्य प्रत्याशी को टिकट मिले, जिसके लिए अपने विकास से अधिक महत्वपूर्ण शहर का विकास हो।
अपनी तिजोरी भरने और स्वार्थो को पूरा करने के लिए नगर पालिका अध्यक्ष का पद बिल्कुल नहीं है। नगर पालिका अध्यक्ष का पद जनता के प्रति दायित्वों और कर्तव्यों का पथ है। प्रत्याशी चयन के लिए पार्टी नेताओं को अपनी दूरदर्शिता और पारखी नजर का इस्तेमाल कर उम्मीदवार चुनना चाहिए।
प्रत्याशी चयन का फैलाव पार्टी के दायरे से बाहर निकलकर समाज के दायरे तक होना चाहिए। अच्छा व्यक्ति यदि गैर राजनैतिक हो तो इसमें दिक्कत क्या है। ऐसे व्यक्ति को मनाना भी पड़ सकता है। लेकिन शिवपुरी शहर के विकास के हित में ऐसे किये जाने में दिक्कत क्या है।
पिछले कुछ वर्षो का उदाहरण इस बात का साक्षी है कि शिवपुरी के विकास में अग्रणी भूमिका यशोधरा राजे सिंधिया ने निर्वहन की है। उन्हांने कितना किया या नहीं किया। यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि विकास में उनकी रूचि और ललक रही है। भले ही सफलता परिस्थितियों के कारण न मिली हो। लेकिन सिर्फ सफलता के पैमाने के आधार पर उनका मूल्यांकन किया जाना गलत है।
सिंध परियोजना के क्रियान्वयन के लिए उन्होंने जो मेहनत की उसे कौन भुला सकता है। लेकिन अब तो परिस्थितियां उनके अनुकूल हैं। केन्द्र और प्रदेश में भाजपा की सरकार काबिज है। वह स्वयं प्रदेश केबिनेट में मंत्री हैं और शिवपुरी विधायक हैं। ऐसे में शिवपुरी के विकास में नेतृत्व की कमान निश्चित रूप से वह ही संभालेंगी।
भाजपा में प्रत्याशी चयन में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रहने वाली है। भाजपा प्रत्याशी का चयन दो कसौटी के आधार पर किया जाना चाहिएए एक तो प्रत्याशी यशोधरा राजे के प्रति निष्ठावान हो और दूसरे उसकी स्वयं की कोई महत्वाकांक्षा न हो। शहर का विकास उसकी प्राथमिकता हो।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो उसका रास्ता वर्तमान परिस्थिति में एक दम से स्पष्ट भी नहीं है। हां भाजपा प्रत्याशी चयन में खामियाजी का फायदा उसे मिल सकता है। ऐसी प्रतिकूल स्थिति में नगर पालिका अध्यक्ष पद पर कांग्रेस अपनी मजबूत दावेदारी योग्य प्रत्याशी के चयन के आधार पर ही स्थापित कर सकता है।
सिंधिया राज परिवार के टकराव से मुक्त रहेगा चुनाव
अभी तक नगरीय निकाय चुनाव में सिंधिया राज परिवार का आपसी टकराव देखने को मिलता था। राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से लोकसभा सदस्य होते थे और यशोधरा राजे भाजपा की शिवपुरी विधायक। एक ओर ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रत्याशी कांग्रेस से चुनाव लड़ते थे, वहीं यशोधरा राजे भाजपा की कमान संभालती थीं।
केन्द्र और प्रदेश में अलग.अलग दलों की सत्ता होती थी। लेकिन अब ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा से हंै और कांग्रेस स्थानीय नेतृत्व विहीन है। केन्द्र और प्रदेश में भी कांग्रेस की सत्ता नहीं है। ऐसी स्थिति मेें पहली बार सिंधिया राज परिवार के टकराव से मुक्त रहेगा नगर पालिका चुनाव।