आगामी उपचुनाव में सिंधिया को वरदान बनेगी बसपा, उपचुनाव में कांग्रेस के लिए बड़ा गड्डा खोद सकती हैं / SHIVPURI NEWS

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अशोक कोचेटा, शिवपुरी। प्रदेश में 27 विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए खासे प्रतिष्ठापूर्ण हैं। यदि इन चुनावों में सिंधिया ने बम्पर जीत हासिल की तो निश्चित रूप से भाजपा में उनका कद बढ़ेगा। उपचुनाव के दृष्टिगत ही भाजपा में इन दिनों सिंधिया को अच्छा महत्व दिया जा रहा है। जिससे भाजपा के अन्य नेता मन ही मन चिंतित भी हैं और उपेक्षित भी महसूस कर रहे हैं। वही आमतौर पर उपचुनावो में बसपा सक्रिय नही रहती हैं लेकिन इस बार सक्रिय हैं बसपा का सक्रिय रहना सिंधिया के लिए वरदान बन सकता हैं। बसपा इस चुनाव में कांग्रेस के लिए बडा गड्डा खोद सकती हैं।

उपचुनाव के परिणााम पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए भी प्रतिष्ठा से जुडे हुए हैं। लेकिन उनके लिए खोने को कुछ खास नहीं है। सभी सीटों पर कांग्रेस को विजय मिली तो तभी वह सत्ता में आ सकते हैं, जो कि वर्तमान की स्थिति में असंभव है। परंतु यदि उन्होंने 27 में से आधी सीटें भी जीत ली तो इससे न केवल सिंधिया की प्रतिष्ठा पर आंच आएगी बल्कि आगामी समय में कांग्रेस सौदेबाजी करने की स्थिति में भी आ जाएगी और वहीं खेल खेल सकती है जो भाजपा ने मार्च में कांग्रेस के खिलाफ खेलकर सत्ता पर कब्जा पाया था।

ऐसी स्थिति में उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी का महत्व प्रमुख माना जा रहा है। आम तौर पर बसपा उपचुनाव से दूर रहती है लेकिन इस समय उसमें उपचुनाव के प्रति दिलचस्पी देखी जा रही है। यह भाजपा के प्रति नर्म रवैये का संकेत है। उपचुनाव में यदि बहुजन समाज पार्टी मैदान में नहीं उतरती तो निश्चित रूप से यह भाजपा के लिए दिक्कत खड़ी करने वाली बात होगी।

ऐसी स्थिति में देखने वाली बात यह रहेगी कि क्या बसपा भाजपा और ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए संकटमोचक साबित होगी अथवा नहीं। भाजपा के प्रति वर्तमान में उसके नर्म रवैये को देखते हुए ऐसी आशा है कि बसपा उपचुनाव में मैदान में उतरकर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा सकती है। प्रदेश में सिंधिया के साथ 22 कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे के बाद भाजपा सत्ता में आई थी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बनने में सफल रहे।

शिवराज सिंह चौहान ने ग्वालियर में भाजपा सदस्यता सम्मेलन में साफगोई से यह स्वीकार किया कि इस समय वह मुख्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण हैं। उन्होंने यहां तक कहा कि 2018 में मैं सिंधिया के कारण ही मुख्यमंत्री नहीं बन पाया था और आज मुख्यमंत्री बना हूं तो उसका कारण भी सिंधिया हैं। इससे समझा जा सकता है कि भाजपा के लिए सिंधिया कितनी मूल्यवान निधि हैं।

भाजपा को लग रहा है कि सिंधिया के कारण ही वह 27 सीटों पर उपचुनाव में विजयश्री हांसिल कर पाएगी। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इन 27 विधानसभा सीटों में से आगर मालवा को छोड़कर सभी 26 विधानसभा सीटें जीती थीं। इनमें से 16 विधानसभा सीटें ग्वालियर चंबल संभाग की हैं। ग्वालियर चंबल संभाग की इन सीटों पर बसपा का बहुत अच्छा प्रभाव है। सभी 16 सीटों पर बसपा ने बड़ी मजबूत चुनौती पेश की।

उसके बाद भी कांग्रेस सभी सीटें जीतने में सफल रही तो इसका कारण इलाके की राजनीति मेें सिंधिया का अच्छा प्रभाव माना जा सकता है। लेकिन अब कांग्रेस सिंधिया विहीन होने के कारण उपचुनाव में बसपा की चुनौती के कारण वह पराक्रम दिखाने की स्थिति में नहीं है। जबकि भाजपा को सिंधिया के जनाधार का लाभ मिलेगा।

ऐसी स्थिति में राजनैतिक पर्यवेक्षकों का आंकलन है कि यदि बहुजन समाज पार्टी उपचुनाव में मैदान में उतरती है तो इसका जबरदस्त नुकसान कांग्रेस को संभावित है और भाजपा को इसका लाभ मिलेगा। उपचुनाव में बसपा की मौजूदगी सीधे-सीधे भाजपा को फायदा पहुंचाने की रहेगी, ऐसा माना जा रहा है। 27 सीटों में से आधी से अधिक सीटों पर बहुजन समाज पार्टी का अच्छा दखल है।

शिवपुरी जिले की करैरा और पोहरी सीटों पर भी पिछले चुनाव में बसपा ने बड़ी मजबूत चुनौती पेश की थी। पोहरी में तो बसपा प्रत्याशी कैलाश कुशवाह ने भाजपा प्रत्याशी प्रहलाद भारती को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था और करैरा में भी बसपा प्रत्याशी प्रागीलाल जाटव ने 40 हजार से अधिक वोट प्राप्त किए थे। करैरा विधानसभा क्षेत्र से बसपा प्रत्याशी एक बार चुनाव भी जीत चुके हैं।

इसलिए यह माना जा रहा है कि यदि बसपा चुनाव मैदान में उतरती है तो भले ही वह कोई भी सीट न जीत पाए लेकिन कांग्रेस के लिए बड़ा गड्डा खोद सकती है। ऐसी स्थिति का लाभ भाजपा और राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को निश्चित रूप से मिलेगा। कांग्रेस यहीं जानकर बसपा को चुनाव मैदान से दूर करने की रणनीति पर काम कर रही है।

लेकिन राजस्थान में जिस तरह से बसपा ने कांग्रेस के खिलाफ स्टेंड लेकर अपने विधायकों को सरकार के खिलाफ वोट देने का मेंडेट जारी किया था उससे बसपा के भाजपा के प्रति नरम रूक का अंदाजा लगाया जा सकता है। उपचुनाव इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं कि सिंधिया के पाला बदलने को जनता किस रूप में देखती है। उपचुनाव के परिणाम इससे जाहिर करेंगे कि सिंधिया के भाजपा मेें जाने को जनता ने स्वीकार किया है या नहीं।
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