खोखली (आस्था) और दिखावे के बीच दम तोड़ रहा है गो-वंश:गोहत्या है (राक्षसी) प्रवृत्ति | kolaras News

Bhopal Samachar

कोलारस। भारतीय संस्कृति की दिव्यता और दैवत्व का परम प्रतीक (गौमाता) आज दुर्दशा  का शिकार है ! हिंदू मान्यताओं में गाय में छत्तीस करोड़ देवी-देवताओं का वास माना गया है किंतु,अफसोस... यही गौमाता आज झुण्डों में सडक़ों पर आवारा  भटक रही है ! सडक़ों पर घायल... खून से लतपथ गो-वंश ,इनके मृत शरीर  हमारी खोखली धार्मिक आस्था और इनके संरक्षण के नाम पर किए जा रहे राजनीतिक दिखावे की असलियत बयां कर रहे हैं।


समाचार पत्रों में आये दिन गो-वंश  की वाहन हादसों में मौत की खबरें सुनने में आती हैं ,लेकिन विडम्बना देखिए इन बेजुबानों की मौत पर किसी धार्मिक, समाजसेवी या राजनीतिक संगठन की प्रतिक्रियाएं तक नहीं आतीं  ;जो गो- माता के संरक्षण के लिए लडऩे का दिखावा करते हैं,बड़ी बड़ी बातें करते हैं!

कैसी बिडम्बना है कि एक ओर धार्मिक आस्था के नाम पर हम देश ,प्रदेश में गो हत्या पर प्रतिबंध और गोशालाएं स्थापित करने की मांग करते हैं, वहीं हमारे ही द्वारा त्यक्त छत्तीस करोड़ देवी -देवताओं को धारण किए गौएं सडक़ों  पर मारी-मारी फिर रहीं हैं ! हमने छत्तीस करोड़ देवी देवताओं और स्वर्ग की  सीढी को घर से बाहर निकाल फेंका... क्या यही हैं हमारी धार्मिक आस्थाएं हम गौ माता को पूजनीय मानते हैं, उसका संरक्षण भी चाहते हैं, किंतु उसका पालन करना नहीं चाहते!  

हर मंदिर में एक देवस्वरूप गाय क्यों नहीं रखी जानी चाहिए? गौ प्रेम का दिखावा करने वाले संगठनों, राजनीतिक दलों के  कार्यकर्ता एक -एक गाय पालने की जिम्मेदारी क्यों नहीं उठा लेते? आस्था व्यक्तिगत मामला है, फिर उसके पालन के लिये सरकार और गोशालाओं का मुंह ताकना कहाँ तक उचित है, हम हमारी व्यक्तिगत जिम्मेदारी से बच रहे हैं, बस ! केवल (गोशालाओं) से समूचे गोवंश की रक्षा उसी तरह संभव नहीं है, वैसे ही... जैसे हर वृद्ध को वृद्धाश्रमों में रखना  और साथ ही यह नैतिक भी नहीं है।

गो- वंश की दुर्दशा हमारी खोखली धार्मिक आस्था और गो-रक्षा के हिमायती होने का ढोंग करने वाले राजनीतिक (कालनेमियों ) के प्रपंच का जीवंत दस्तावेज है ! गो-वंश की रक्षा के लिए हमें भी जिम्मेदारी का अहसास करना होगा!

सवाल उठना लाजिमी है कि ऐसे हालात क्यों बने,इसकी पड़ताल के लिए हम अतीत में जाएं तो उस समय गाय के प्रति सम्मान का भाव अकारण नहीं था ! ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार कृषि और कृषि का प्रमुख आधार बैल था,जो गाय से प्राप्त होता था ! आज आधुनिक कृषि के ढांचे में गो-वंश की उपयोगिता का यही आधार चरमरा गया और नतीजा सामने हैं ! गो-वंश के आवारा झुण्डों में सबसे ब?ी संख्या नर गो-वंश (बछड़ो,सांडों, बैलों) की होती है।


आज  आवश्यकता इस बात की है कि गायों की उत्पादकता बढाऩे के लिए नस्ल सुधार कार्यक्रम प्राथमिकता के आधार पर चलाया जाए ! सतत् कृषि और पर्यावरणीय चुनौतियों के चलते जैविक कृषि और नवीकरणीय ऊर्जा जैसी आवश्यकताओं ने गो-पालन की नयी संभावनाओं को जन्म दिया है!

इस अवसर का लाभ उठाने के लिए सरकार ब्लॉक स्तर पर इसके अनुप्रयोगों के प्रदर्शन के लिए उपयुक्त मॉडलों का विकास कर लोगों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करे ! गो-वंश की रक्षा के लिए केवल (गोशालाओं) की नहीं, गो-वंश का अर्थव्यवस्था,  कृषि डांचे और जन जीवन में पुन: अंगीकरण और अंत:करण में सच्ची आस्था की जरूरत है।
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