निजी विद्यालयों की मनमानी: गरीब तबके के बच्चों से छीनता शिक्षा का अधिकार | SHIVPURI NEWS

Bhopal Samachar
शिवपुरी। गरीब तबके के बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से शासन द्वारा शिक्षा का अधिकार अधिनियम बनाकर सभी बच्चों को शिक्षित करने का कार्य प्रारंभ किया था। लेकिन शिवपुरी जिले में संचालित निजी विद्यालयों के संचालकों की मनमानी के चलते गरीब तबके के छात्र शिक्षा के अधिकार  से वंचित बने हुए हैं। ऐसा बताया गया है कि कक्षा एक के बाद में विद्यालय संचालकों द्वारा गरीब तबके के छात्रों से शुल्क के रूप में हजारों  रूपए की मांग की जा रही हैं।

यदि गरीब तबके के बच्चे के पालक विद्यालय का शुल्क देने में सक्षम ही होते तो शिक्षा के अधिकार के तहत विद्यालय में प्रवेश ही क्यों दिलाया जाता? इस प्रकार का एक मामला जनसुनवाई में भी पहुंच चुका हैं। जिसकी जानकारी जिले के अधिकारियों को होने के बाद भी जिले में पदस्थ अधिकारी अनभिज्ञ बने हुए हैं और निजी स्कूल संचालक आरटीई एक्ट के छात्रों से शुल्क बसूलने में लगे हुए हैं।

लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा ऐसे निजी विद्यालय संचालकों के विरूद्ध कोई ठोस कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही हैं? जिससे यह तथ्य उजागर होता है कि निजी विद्यालय संचालकों एवं शिक्षा विभाग के अधिकारियों की सांठ गांठ के चलते गरीब तबके के छात्रों का आर्थिक शोषण किया जा रहा हैं। जिससे गरीब तबके छात्र शिक्षा के अधिकार से वंचित बने हुए हैं।

शासन के लक्ष्य तक कैसे पहुंचेगा शिक्षा का अधिकार?

शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत जिले भर में 2100 गरीब तबके के छात्रों को विभिन्न निजी विद्यालयों में प्रवेश दिया जाना निर्धारित किया गया। वहीं शिवपुरी ब्लॉक में 646 बच्चों के आवेदन आए हैं। जिसमें महज 516 बच्चों के फार्म बैध पाए गए हैं। लेकिन कागजों में 516 बच्चे दर्ज बताए जा रहे हैं लेकिन इनकी जमीनी हकीकत यदि देखी जाए तो महज 200-300 बच्चे निजी विद्यालयों में प्रवेश अभी तक ले पाए होंगे।

शेष छात्र अभी तक  कागजी कार्यवाही में ही उलझे हुए हैं। विद्यालय संचालकों द्वारा राशन कार्ड, समग्र आईडी, चाईल्ड आईडी, आधार कार्ड, मजदूरी की किताब सहित अन्य दस्तावेजों की लगातार मांग की जा रही हैं। जिससे गरीब तबके के छात्रों के पालक विभिन्न कार्यालयों की खाक छानने के लिए विवश बने हुए हैं। जिससे शासन द्वारा निर्धारित लक्ष्य कैसे पूरा हो पाएगा?

कक्षा बदलते ही निजी विद्यालय बसूलने में लगे हैं शुल्क

जिले भर में संचालित निजी विद्यालय के संचालकों द्वारा शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत नर्सरी, कक्षा 1 में  प्रवेश तो इसलिए दे दिया जाता हैं जिससे गरीब तबके का छात्र निजी विद्यालय की ओर आकर्षित हो जाए। लेकिन कक्षा के 1 से अगली कक्षा में छात्र के पहुंचते ही कुछ निजी विद्यालय संचालकों द्वारा छात्र के परिजनों से हजारों रूपए शुल्क की मांग की जा रही हैं।

ऐसी परिस्थिति में गरीब छात्र के पालक हजारों रूपए का शुल्क विद्यालय में कैसे जमा कर पायेंगे? जबकि निजी विद्यालय संचालकों को शासन द्वारा शुल्क अदा किया जाता हैं। तब फिर निजी विद्यालय संचालकों द्वारा शिक्षा के अधिकार के तहत शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों के पालकों से शुल्क की मांग किस आधार पर की जाती हैं?

शासकीय विद्यालयों में जाने को विवश हैं दर्जनों छात्र

निजी विद्यालय संचालकों की मनमानी के चलते तथा हजारों रूपया शुल्क अदा न करने की परिस्थिति में जिला मुख्यालय पर ही दर्जनों गरीब तबके के छात्र शासकीय विद्यालयों की शरण में जाने को विवश हो रहे हैं। ऐसा एक मामला जनसुनवाई में जिलाधीश के समक्ष भी पहुंच चुका हैं। इन्द्राकॉलोनी निवासी सतीश जाटव के पुत्र को निजी विद्यालय संचालक द्वारा बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। जिससे वह शासकीय विद्यालय में जाने के लिए विवश हैं। शासन द्वारा बनाए गए नियम का निजी विद्यालय संचालकों द्वारा सरेआम उल्लंघन किया जा रहा हैं। लेकिन इसके बाबजूद भी जिला प्रशासन एवं शिक्षा विभाग के अधिकारी निजी विद्यालय संचालकों के विरूद्ध कार्यवाही करने से कतरा रहे हैं। 
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