शिवपुरी। हिन्दू धर्म के त्यौहार में हमारी सनातन संस्कृति की झलक देखने को मिलती है,लेकिन समय के साथ भारतीय त्यौहारो और उन्है मानने की परंपराएं हमारे त्यौहारो के मूल तत्व का अनदेखा करते हुए आधुनिकता की ओर अग्रसर हो रही है। कहने का सीधा सा अर्थ है भारतीय त्यौहार से त्योहारों का मूल तत्व नई पीढ़ी से गायब हो रहा है इसलिए शिवपुरी शहर के इंग्लिश मीडियम स्कूल किड्स गार्डन स्कूल ने स्कूल में बच्चों के साथ मकर संक्रांति का त्यौहार धूमधाम से मनाया गया।
वैसे तो मकर संक्रांति त्यौहार का दान पुण्य के लिए जाना जाता है कि किड्स गार्डन स्कूल में छोटे बच्चों ने पहली बार मिट्टी की गाडी गडगडिया को देखा और उसकी डोर अपने हाथो में थामकर गडगडिया को चलाया थी। इस गाडी को देखकर बच्चे बड़े ही रोमांचित हुए। छोटे बच्चों ने लुप्तप्राय गड़गड़िया चलाई जिसमें विभिन्न प्रकार के लड्डू और मंगोड़े भर कर खुश होते हुए दिखाई दिए।
वही बडे बच्चो ने पतंग की डोर को अपने थामो में थमा और जमकर पतंगबाजी का आनंद लिया साथ में शिक्षकों ने भी पतंगबाजी में हाथ आजमाए। शिवपुरी जिले में अमूमन बच्चों की ग्रीष्मकालीन अवकाश में शहर के आसमान में पतंग उड़ती हुई दिखाई देती है लेकिन जब लोगों ने देखा की मकर संक्रांति के 2 दिन पूर्व शहर के आसमान में पतंग स्कूल के पास रहने ओर गुजरने वाले लोगो ने देखा तो वह अपने आप को जानने से नही रोक सके की आज पतंग कहां से और क्यो उड रही है।
किड्स गार्डन स्कूल की संचालक रूपाली गौतम ने कहा कि भारत की संस्कृति विविधताओं से भरी हुई है। आधुनिक समय में त्योहारों की पुरानी परंपराएं मोबाइल और हाइटेक कारणों से समाप्त होती जा रही है इसलिए नौनिहालों के मन में पुरानी परंपराओं के प्रति श्रद्धा उत्पन्न करने हेतु किड्स गार्डन स्कूल ने यह पहल की है। हम हर त्योहार को इसी तरह परंपरानुसार मनाएंगे और बच्चों को हमारे सांस्कृतिक वैभव से परिचित कराएंगे।
धनु के पन्द्रह, मकर पच्चीस, चिल्ला जाड़ा दिन चालीस
स्कूल के डारेक्टर श्री शिवकुमार गौतम ने बताया कि हमारी पुरानी कहावत है और यह हमारी ऋतुओं का गणित है कि धनु के पन्द्रह, मकर पच्चीस, चिल्ला जाड़ा दिन चालीस’। कहने का सीधा का अर्थ है कि मकर संक्रांति के 15 दिन पूर्व और 25 दिन बाद तक ठंड का मौसम रहता है। और ठंड के कारण बच्चे शारीरिक श्रम से दूर ना हो इसलिए हमारे बुर्जुगों ने बच्चों के लिए मिट्टी की गाडिया बनाई थी कि वह खेल खेल में शारीरिक श्रम करे।
आज के बच्चे भी शारीरिक श्रम नही करते है वह खिलौने रूपी गाड़ी जो अब रिमोट कंट्रोल से संचालित होती है उसे चलाते है उसमें बच्चो का श्रम नही होता है। संक्रांति पर चलने वाली मिट्टी का काठ की गाड़ियों को चलाने के लिए उन्हें खींचना पड़ता था जिससे बच्चे चलते थे जितनी देर या दूर तक गाड़ी चलेगी उतनी देर और दूर तक बच्चों का चलना होता था जिससे उनकी एक्साईज हो जाती थी। इस लिए इन ठंड के दिनो मे बच्चो को एक्साइज करवाने के लिए इस गाड़ी को चलाने का क्रम चलाया होगा।